हार कर आज आ बैठा मै अकेला छत पर।कितना पुकारा तुमको और तुम्हारे नाम को।अब तो शायद मेरे चारों ओर हर पल गूँजता रहता है नाम तुम्हारा प्रतिध्वनि बन कर।पर पता नहीं वो प्रतिध्वनि क्या तुमसे टकरा कर लौटती है या बस यूँ ही चली आती है मन को दिलासा दिलाने।आज मन में कई प्रश्न लिये और विरह की व्याकुलता से अधीर होकर विवश सा मन एकांत की तलाश में चाँदनी रात में छत पर ले आया मुझे।शायद आज पूछना था कई प्रश्न उसे चाँद और सितारों से या कही ढ़ूँढ़ता था अक्स तुम्हारा चाँद की प्रतिछाया में।क्या पता क्यों मन के सामने मजबूर ये प्रेमी अपनी प्रेम लगन के साथ आ बैठा आज छत पर अकेला।
आसमां में चाँद की चाँदनी से फुलझड़ियों सी जगमगाहट मानों मेरे मन में दुबक कर बैठे उस प्रेमी को प्रकाश का मार्ग दिखाती और ये दिलाशा भी देती की कही उस मार्ग में मिल जाये तुम्हारी प्रियतमा तुमको,जिसको ढ़ूँढ़ता आज तू यहाँ तक आया है।चाँद मुझे देख कर बादलों में छुपने लगा।शायद उसे अंदाजा था कि मेरे प्रश्नों के समक्ष वो भी इक प्रश्न सा बन जायेगा और उसके ह्रदय से भी उठने लगेंगे वो प्रश्न जो दबे-दबे से थे इन चाँदनी रातों में न जाने कब से।उसे एहसास होगा अपनी चाँदनी से विरह के हर उस क्षण का जब मै अपनी प्रियतमा के संग होता था और शायद मन ही मन जलता रहता था चाँद।उसकी जलन ही तो थी जो मुझे विरह के दिनों में बहुत खलती थी।तब वो मुस्कुराता था और मै अपने आँसू पोंछता बस एकटक देखता रहता उसको।पर आज वो भी तन्हा है और मै भी अकेला।
यह चाँदनी रात न जाने यादों के कितने बंद दरवाजे पर दस्तक दे गया।और यादों के किसी महल में आज भी सम्भाल कर रखी हुई तुम्हारी यादें झाँकने लगी बाहर।भूल गया मै अपना प्रश्न जो मुझे पूछना था आज चाँद से मै तो अतीत की गहराईयों में ही गोते लगाता रहा।तुम्हारे साथ का एहसास ही कुछ ऐसा खुशनुमा था कि उनके संग ही सारी उम्र गुजारने को जी करता था।एकाएक चाँद का मुझको निहारना मानों जगा गया मुझे यादों की उस स्वप्न निद्रा से और फिर मन में उभरने लगे कई प्रश्न जो चाँद से करने थे।पहले मैने ईशारा किया उसको और मुस्कुराते हुए एक ही बार में कहता चला गया अपने दिल की सारी बात।मैने कहाँ "ऐ चाँद! मै जानता हूँ तेरी चाँदनी पहुँचती होगी वहाँ भी जहाँ मेरी प्रियतमा शायद अभी भी यादों के संग खेल रही होगी और अपने सिरहाने को आँसूओं से भिगोकर रो रही होगी।।क्या तू मेरा एक पैगाम उस तक पहुँचा सकता है कि मै भी न जाने कब से राह देख रहा हूँ उस साथी का जिसके साथ के बिना जीवन बिल्कुल अधूरा सा लगता है।"
कुछ पल बिल्कुल शांत और स्थिर सा चाँद शायद कुछ सोचता रहा और फिर कहने लगा "हाँ मै तुम्हारे इस पैगाम को तुम्हारी प्रियतमा तक पहुँचाउँगा पर तेरे दिल के दर्द और विरह को कैसे बतलाउँगा?मानता हूँ मेरी चाँदनी है पहुँचती हर उस जगह पर जहाँ मै बस ठहर कर देखता हूँ,छू नहीं पाता।पर आज भी है दूर मुझसे मेरी चाँदनी।तू तो है बहुत दूर सनम से पर मै तो साथ रहकर भी,देखकर भी छू नहीं सकता उसको,प्यार नहीं कर सकता उसको।"चाँद की इस उलझन को सुन दिल में मानों भावनाओं का कोई ज्वार सा उठने लगा जो छुना चाहता था चाँद की चाँदनी को और सौंपना चाहता था चाँद को उसकी प्रियतमा।पता न था आज छत पे चाँद से पूछा गया मेरा प्रश्न खुद मुझे मौन कर जायेगा और अपनी प्रियतमा को भूल कर चाँद की चाँदनी को ही ढ़ूँढ़ता रह जाऊँगा आजीवन।
लगा ऐसा कि मेरी हथेली पर टपक कर आँसूओं की बूँद आ रही है जो शायद विरह के आशिक उस चाँद की है।जो देखता है,निहारता है अपनी प्रिया को पर दिल की उलझने दिल में ही सीमट कर रह जाती है।बेचारा शर्मीला कह भी नहीं पाता दिल की बात।अब पता चला उन दिनों जब मै साथ होता था अपनी जिन्दगी के क्यों जलता रहता था ये चाँद।शायद उस जलन में छुपी हुई थी प्यास अधूरी अपनी प्रियतमा को पाने की।दुनिया के सभी प्रेमियों को उनका प्यार सौंप कर भी आज ये चाँद और चाँदनी क्यों इतने दूर है खुद से।क्या दूर से ही प्रेम का अमिट स्पर्श छू जाता है उनके दिलों को और शायद ये दूरी करती है इस अनोखे प्यार को पूरी।
आसमां में चाँद की चाँदनी से फुलझड़ियों सी जगमगाहट मानों मेरे मन में दुबक कर बैठे उस प्रेमी को प्रकाश का मार्ग दिखाती और ये दिलाशा भी देती की कही उस मार्ग में मिल जाये तुम्हारी प्रियतमा तुमको,जिसको ढ़ूँढ़ता आज तू यहाँ तक आया है।चाँद मुझे देख कर बादलों में छुपने लगा।शायद उसे अंदाजा था कि मेरे प्रश्नों के समक्ष वो भी इक प्रश्न सा बन जायेगा और उसके ह्रदय से भी उठने लगेंगे वो प्रश्न जो दबे-दबे से थे इन चाँदनी रातों में न जाने कब से।उसे एहसास होगा अपनी चाँदनी से विरह के हर उस क्षण का जब मै अपनी प्रियतमा के संग होता था और शायद मन ही मन जलता रहता था चाँद।उसकी जलन ही तो थी जो मुझे विरह के दिनों में बहुत खलती थी।तब वो मुस्कुराता था और मै अपने आँसू पोंछता बस एकटक देखता रहता उसको।पर आज वो भी तन्हा है और मै भी अकेला।
यह चाँदनी रात न जाने यादों के कितने बंद दरवाजे पर दस्तक दे गया।और यादों के किसी महल में आज भी सम्भाल कर रखी हुई तुम्हारी यादें झाँकने लगी बाहर।भूल गया मै अपना प्रश्न जो मुझे पूछना था आज चाँद से मै तो अतीत की गहराईयों में ही गोते लगाता रहा।तुम्हारे साथ का एहसास ही कुछ ऐसा खुशनुमा था कि उनके संग ही सारी उम्र गुजारने को जी करता था।एकाएक चाँद का मुझको निहारना मानों जगा गया मुझे यादों की उस स्वप्न निद्रा से और फिर मन में उभरने लगे कई प्रश्न जो चाँद से करने थे।पहले मैने ईशारा किया उसको और मुस्कुराते हुए एक ही बार में कहता चला गया अपने दिल की सारी बात।मैने कहाँ "ऐ चाँद! मै जानता हूँ तेरी चाँदनी पहुँचती होगी वहाँ भी जहाँ मेरी प्रियतमा शायद अभी भी यादों के संग खेल रही होगी और अपने सिरहाने को आँसूओं से भिगोकर रो रही होगी।।क्या तू मेरा एक पैगाम उस तक पहुँचा सकता है कि मै भी न जाने कब से राह देख रहा हूँ उस साथी का जिसके साथ के बिना जीवन बिल्कुल अधूरा सा लगता है।"
कुछ पल बिल्कुल शांत और स्थिर सा चाँद शायद कुछ सोचता रहा और फिर कहने लगा "हाँ मै तुम्हारे इस पैगाम को तुम्हारी प्रियतमा तक पहुँचाउँगा पर तेरे दिल के दर्द और विरह को कैसे बतलाउँगा?मानता हूँ मेरी चाँदनी है पहुँचती हर उस जगह पर जहाँ मै बस ठहर कर देखता हूँ,छू नहीं पाता।पर आज भी है दूर मुझसे मेरी चाँदनी।तू तो है बहुत दूर सनम से पर मै तो साथ रहकर भी,देखकर भी छू नहीं सकता उसको,प्यार नहीं कर सकता उसको।"चाँद की इस उलझन को सुन दिल में मानों भावनाओं का कोई ज्वार सा उठने लगा जो छुना चाहता था चाँद की चाँदनी को और सौंपना चाहता था चाँद को उसकी प्रियतमा।पता न था आज छत पे चाँद से पूछा गया मेरा प्रश्न खुद मुझे मौन कर जायेगा और अपनी प्रियतमा को भूल कर चाँद की चाँदनी को ही ढ़ूँढ़ता रह जाऊँगा आजीवन।
लगा ऐसा कि मेरी हथेली पर टपक कर आँसूओं की बूँद आ रही है जो शायद विरह के आशिक उस चाँद की है।जो देखता है,निहारता है अपनी प्रिया को पर दिल की उलझने दिल में ही सीमट कर रह जाती है।बेचारा शर्मीला कह भी नहीं पाता दिल की बात।अब पता चला उन दिनों जब मै साथ होता था अपनी जिन्दगी के क्यों जलता रहता था ये चाँद।शायद उस जलन में छुपी हुई थी प्यास अधूरी अपनी प्रियतमा को पाने की।दुनिया के सभी प्रेमियों को उनका प्यार सौंप कर भी आज ये चाँद और चाँदनी क्यों इतने दूर है खुद से।क्या दूर से ही प्रेम का अमिट स्पर्श छू जाता है उनके दिलों को और शायद ये दूरी करती है इस अनोखे प्यार को पूरी।
14 comments:
pyar ke liye sab kuchh to byan kar diya aapne..........bahut khub!! kya kahun...sabd nahi hain!!
काव्यात्मक शैली मुझे भी पसंद है!
दुनिया के सभी प्रेमियों को उनका प्यार सौंप कर भी आज ये चाँद और चाँदनी क्यों इतने दूर है खुद से? - बहुत खूब सत्यम जी - अच्छा लिखा है आपने.
बस कुछ वर्तनियों जैसे - तूमको - तुमको, गुंजता - गूंजता, ढ़ुँढ़ना - ढूंढना, छु - छू, इत्यादि में सुधार की जरूरत है.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
@श्यामल जी..धन्यवाद...मैने इन त्रुटीयों को सुधार लिया है..बहुत बहुत आभार बताने हेतु।
bahut achhe satyam .... itni achhi hindi kaha se sikhe tum
very nice....
बहुत खूबसूरत लिखा है ..
बहुत सुन्दर चित्रण किया है उलझन का।
bahut hi sundar kahani chaand aur chaandni ke dard ko kam karti gai
satyam ji chandni rat me ek virah se vyakul man kee kya dasha hoti hai iska bahut hi sundar shabdon me varnan kiya hai aapne aur itne sundar photo lagaye hain ki ye post sangrahniy ho gayee hai.aur aapke blog kee khoobsurati bhi bahut badh gayee hai.
काव्यात्मक शैली में उत्कृष्ट और मनभावन लेख...बधाई
चाँद के बहाने आपने अपनी कला का उत्कृष्ट नमूना दिखाया है सत्यम जी... लेकिन में अब कि बार आपसे उम्मीद करुँगी की आप किसी नए विषय पर भी अपनी कलम चलाएंगे इसी सुंदरता के साथ ... शुभकामनाओं के साथ
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी शनिवार (25-06-11 ) को नई-पिरानी हलचल पर..रुक जाएँ कुछ पल पर ...! |कृपया पधारें और अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें...!!
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी काव्यात्मक गद्य....
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