हरी हरी घासों पे लेटा,खुले आसमान के निचे संसर्ग की उन्मादकता का स्वागत करता मै।तुम्हारी नीली आँखों में गगन की सारी उड़ानों को ढ़ुँढ़ता और तुम्हारे स्पर्श से मेरे रोम रोम में हर्ष की इक नयी कली का मानों प्रस्फुटन होता।तुम्हारे साथ होने का ये आभास कही कोई कोरी कल्पना तो नहीं।खुद को विश्वास दिलाने के लिए बार बार मेरा तुमको किया गया स्पर्श इन मिलन के क्षणों का मूकदर्शक बन जाता।आँखे मूँद कर आज मन के दर्पण को पूर्णतः साफ कर बीते सभी पुराने अतीत की यादों को पोंछ देता और उस दर्पण से साफ साफ देखता सुनहरे भविष्य के आने वाले हर एक पल को जिसमें तुम्हारे साथ मै जिन्दगी के हर एक अधूरे ख्वाबों को गढ़ता जिन्हें पूरा करना अब मेरी जिन्दगी का एकमात्र लक्ष्य था।
सुबह सुबह चिड़ीयों का चहचहाना,कई मिन्नतों के बाद तुमको फिर से पाना और मन की बेसुध बाँसुरी से निकलता वो राग पुराना।सब के सब मिलन के इन क्षणों को एक अलौकिक स्वरुप देते और मेरा प्यार चुपचाप दिल के किसी कोणे से कुछ कहना चाहता।शायद तुम्हें अब साथ देखकर कुछ डर सा हो रहा था उसे क्योंकि जुदाई के हर एक दर्दभरे कल को उसने अपने अस्तित्व की संरचना का एक हिस्सा मान छुपा लिया था खुदमें।उसने ही बस महसूस किया था तुम्हारे विरह की अग्नज्वाल का जिसमें जलता जलता वो अब तो बेरस सा हो गया था।मिलन और जुदाई दोनों एक सा ही लगता था उसे पर आज तुम्हें देख फिर से मानों पा लिया उसने अपना खोया अस्तित्व।
लवों पे आते कितने बात और कितने बात दिल में ही दबे दबे घुटते रहते।पर हम तो कुछ ना कहते अब बस देखते रहते तुमको।तुम्हारे चेहरे पे आयी वो स्वर्णमयी स्याह लकीरें मेरे अंतरमन के सुसुप्त तारों को एकाएक झंकृत करती और तुम्हारे संग का एहसास बुझा देता मेरे मन के प्यास को जो न जाने कितनी सदियों से,कई युगों से तुम्हारे आने की आश लिए जी रहा था।तुम पूछती "क्या तुम्हें याद नहीं अपने प्यार की वो तमाम रातें"?और मै बेचारा कैसे बताता कि उन रातों की यादों के संग ही तो जी रहा था अब तक।तुम्हें क्या पता उन बिते हर एक रातों में तुम ना होकर भी मेरे कितने पास होती थी और मेरा प्यार कैसे तड़पता था तुम क्या जानों।मै तुमसे कहता "तुम्हें याद है सब"।तो तुम बस इतना कहती "हाँ हर एक बात और तुम्हारे प्यार का साथ सब याद है मुझे,कभी नहीं भूल सकती मै"।
आसमां से उतरता कोई फरिश्ता अपने हाथों में दुनिया की सारी खुशियाँ लेकर आता और धिरे से हमारी झोली में रख चला जाता।मै कुछ कदम बढ़ाता तुम्हारी ओर और तुम अब बिल्कुल करीब होती मेरे।माहौल में फूलों की सौरभता सा बिखर जाता यादों का हर एक मंजर जिसमें मिलन और विरह दोनों का समावेश होता।यादों का आईना चकनाचूर हो जाता और हर एक टुकड़े में कही तुम्हारे साथ और कही खुद को अकेला देखता मै।फिर रात आती और थोड़ी बदली बदली सी रंगत के संग एहसास दिलाती कि "अब तो तुम हो साथ मेरे"।
दूर दूर तक कुछ ना दिखता अपने प्यार के सिवा और राहों में बिछा होता सुनहरे प्रेम के प्रणय गीतों में सराबोर तुम्हारे संग का रंगीन चादर।फूल बिछे होते चाँदनी रातों में जब मै तुमसे फिर करता अपने प्यार की दो बातें और तुम बिना कुछ सुने कहती "मुझे तुमसे इतना प्यार क्यों है जानां?"हर पल बस तुम्हारे बारे में सोचती और हर दिन तुमसे मिलने की चाहत लिए दरवाजे पर निगाहें गड़ाये क्यों करती हूँ तुम्हारा इंतजार।और मै बस यही कह पाता "शायद ये प्यार अब कुछ विशेष है,जो विरह की अग्नज्वाल में तप तप कर स्नेह और अनुराग का मिश्रित स्वरुप बन कर प्रेम की प्रकाष्ठा का आलोप है।"इस विशिष्ट प्यार का ही तो परिणाम है कि एक बार फिर तुम हो साथ मेरे।
सुबह सुबह चिड़ीयों का चहचहाना,कई मिन्नतों के बाद तुमको फिर से पाना और मन की बेसुध बाँसुरी से निकलता वो राग पुराना।सब के सब मिलन के इन क्षणों को एक अलौकिक स्वरुप देते और मेरा प्यार चुपचाप दिल के किसी कोणे से कुछ कहना चाहता।शायद तुम्हें अब साथ देखकर कुछ डर सा हो रहा था उसे क्योंकि जुदाई के हर एक दर्दभरे कल को उसने अपने अस्तित्व की संरचना का एक हिस्सा मान छुपा लिया था खुदमें।उसने ही बस महसूस किया था तुम्हारे विरह की अग्नज्वाल का जिसमें जलता जलता वो अब तो बेरस सा हो गया था।मिलन और जुदाई दोनों एक सा ही लगता था उसे पर आज तुम्हें देख फिर से मानों पा लिया उसने अपना खोया अस्तित्व।
लवों पे आते कितने बात और कितने बात दिल में ही दबे दबे घुटते रहते।पर हम तो कुछ ना कहते अब बस देखते रहते तुमको।तुम्हारे चेहरे पे आयी वो स्वर्णमयी स्याह लकीरें मेरे अंतरमन के सुसुप्त तारों को एकाएक झंकृत करती और तुम्हारे संग का एहसास बुझा देता मेरे मन के प्यास को जो न जाने कितनी सदियों से,कई युगों से तुम्हारे आने की आश लिए जी रहा था।तुम पूछती "क्या तुम्हें याद नहीं अपने प्यार की वो तमाम रातें"?और मै बेचारा कैसे बताता कि उन रातों की यादों के संग ही तो जी रहा था अब तक।तुम्हें क्या पता उन बिते हर एक रातों में तुम ना होकर भी मेरे कितने पास होती थी और मेरा प्यार कैसे तड़पता था तुम क्या जानों।मै तुमसे कहता "तुम्हें याद है सब"।तो तुम बस इतना कहती "हाँ हर एक बात और तुम्हारे प्यार का साथ सब याद है मुझे,कभी नहीं भूल सकती मै"।
आसमां से उतरता कोई फरिश्ता अपने हाथों में दुनिया की सारी खुशियाँ लेकर आता और धिरे से हमारी झोली में रख चला जाता।मै कुछ कदम बढ़ाता तुम्हारी ओर और तुम अब बिल्कुल करीब होती मेरे।माहौल में फूलों की सौरभता सा बिखर जाता यादों का हर एक मंजर जिसमें मिलन और विरह दोनों का समावेश होता।यादों का आईना चकनाचूर हो जाता और हर एक टुकड़े में कही तुम्हारे साथ और कही खुद को अकेला देखता मै।फिर रात आती और थोड़ी बदली बदली सी रंगत के संग एहसास दिलाती कि "अब तो तुम हो साथ मेरे"।
दूर दूर तक कुछ ना दिखता अपने प्यार के सिवा और राहों में बिछा होता सुनहरे प्रेम के प्रणय गीतों में सराबोर तुम्हारे संग का रंगीन चादर।फूल बिछे होते चाँदनी रातों में जब मै तुमसे फिर करता अपने प्यार की दो बातें और तुम बिना कुछ सुने कहती "मुझे तुमसे इतना प्यार क्यों है जानां?"हर पल बस तुम्हारे बारे में सोचती और हर दिन तुमसे मिलने की चाहत लिए दरवाजे पर निगाहें गड़ाये क्यों करती हूँ तुम्हारा इंतजार।और मै बस यही कह पाता "शायद ये प्यार अब कुछ विशेष है,जो विरह की अग्नज्वाल में तप तप कर स्नेह और अनुराग का मिश्रित स्वरुप बन कर प्रेम की प्रकाष्ठा का आलोप है।"इस विशिष्ट प्यार का ही तो परिणाम है कि एक बार फिर तुम हो साथ मेरे।
5 comments:
बहुत खूबसूरत अहसासों से लबरेज बहुत ही प्यारी रचना.
beautiful post.....
बहुत ही प्यारी रचना....
romantic n beatiful lekh..!
bahut khoobsurat!!
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