Monday, May 30, 2011

जन्म दर जन्म भूल गया सब कुछ

विराट अथाह समुद्र के बीच में खड़ा मै।जहाँ चारों ओर बस दृश्य होता जलमंडल का कभी ना अंत होने वाला छोड़।पवन अपने वेग में समेट कर लाती संदेश इस जलमग्नता का और प्राणश्वासों की विलुप्तता का।अंधकार का सम्राज्य और भी भयावह बना देता इस सम्पूर्ण परिदृश्य को और इक लकड़ी के छोटे नामात्र टुकड़े पर अड़ा मेरा अस्तित्व मुझे मेरी तुच्छता का बोध कराता रहता।जीवन पथ का यह मार्ग कभी संकीर्ण कंदराओं से गुजरता तो कभी विस्तृत जलमंडल से।जहाँ मार्ग में आलोकित करता मेरा राह एक प्रकाश पुन्ज चाँद सा हर दम मेरे साथ चलता।एक क्षण को बुझ जाता हर दीप मन का पर ये चाँद प्रतिक्षण मेरे साथ होता।
भूलने की ये कहानी मुझे समझ ना आती और भूलता रहता जन्म दर जन्म अपनी सारी जन्मगाथाएँ।भूल जाता सारे रिश्ते जिन्हें सहेजते अपनी कितनी जन्मों की भावनाओं को दावँ पे रखता था मै और अपना सर्वस्व समर्पित करने के बाद भी कुछ और देने की इच्छा रहती थी मन में।उस ममता को भी भूल गया और उस ममतामयी काया को भी।जन्म दर जन्म ममतामयी काया का स्वरुप बदलता रहा और मै भूल गया अपनी बीती सभी जननियों को भी।


जीवन का सत्य जन्म और मृत्यु,जन्म में आनंद की महक और मृत्यु में जुदाई की कसक।इन सभी सांसारिक लक्षणों से मुक्त होकर मै आज आया हूँ  यहाँ।जानता हूँ कोई नहीं है यहाँ जो मेरा है,पता है कुछ नहीं है अपना जिसपर अधिकार जता सकता हूँ।पर ये तो बता दो मेरे परमपिता!"तुम कहाँ हो?"तुममे मिलना ही मेरी सम्पूर्णता है।तुम्हारे दर्शन ही मेरे नैनों की नैन पुतलियों की रौशनी है,जिनमें रिक्त है अब तक तुम्हारी प्रतिमूर्ति की छाया।अब तक बस बदलता रहा स्वरुप तुम्हारे कांतिमय काया का पर प्रभू आज इन नैनों की जिद के आगे विवश हूँ।वो तो बस तुम्हारे प्रकाश पुन्ज के प्रकाश से ही प्रकाशित होंगे वरना इन आँखों की रौशनी तो खो ही जायेगी।
नभ की ओर हाथों को फैलाकर,चारों दिशाओं को एक संग आधार बनाकर आज करना है तुम्हारा आह्वाहन।अंतर्मन से पुकारना है तुम्हें और लहु की हर बूँद का कतरा कतरा भी न्योछावर कर आज तुम्हारे वास्ते मर मिटना है।पता नहीं ये मेरी भक्ति है या समर्पण की शक्ति है पर ऐसा लगता है आओगे तुम।तुम्हारे आने पर नभ से सुगंधित पुष्पों की वृष्टि होगी।धरा खुशहाल होकर स्वागत गीत गायेगा और जलमंडल अपने खारे जल को विशुद्ध पावन बना कर तुम्हारे पावँ पखारने निकल पड़ेगा।सभी जीव,प्राणि तुम्हारे आगमन की उत्सुकता से ऐसा कोलाहल मचायेंगे जो एक संगीतमय वातावरण निर्मित करेगा।मेरा अस्तित्व जरा तुच्छ सा होगा इन विराट ब्रह्मांड के नायकों के समक्ष पर प्रभू जिसके दर्शन को सब नैन बिछायेंगे उसको तो मै अपने मन के मंदिर में ही देख लूँगा आँखें बंद कर।जिससे मिलने सम्पूर्ण संसार आगे बढ़ेगा उसे तो मै बस मन के नगर में एक कदम उतर कर ही पा लूँगा।
वास्तविक जीवन के वास्तविक परिचायक मेरे प्रभू तुम चिर काल से चिर काल तक मेरे पालक और संरक्षक हो।माँ-बाप,भाई-बहन अन्य सारे रिश्ते बस क्षणिक है,जिनके अस्तित्व को ताउम्र महसूस कर सकना संभव है पर जन्म दर जन्म याद रखना असम्भव।जन्म दर जन्म भूलता गया हर बात जिस बात में मै था,तुम थे और शायद कभी हम सब थे।भूल गया वो जगह जहाँ कभी मै और तुम हँसते थे,रोते थे और कई बार जागते और फिर सोते थे।बस याद रहा वो राह और राह में आलोकित वो प्रकाश पुन्ज,जो शायद तुम ही हो मेरे प्रभू।

Thursday, May 26, 2011

नई जिन्दगी की एक नयी सुबह

शंकाओं से भरी हुई वो सुबह,अनिश्चिताओं के हजारों किरणों को खुद में समेटे जगाता रहा मुझे।पुरानी जिन्दगी यादों के पन्नों में सीमट गयी और नयी जिन्दगी भविष्य के सपनों को कही दूर मुझे दिखाती दे गयी एक भोर।इस सुबह कोई ना था।सब अजनबी थे मेरे आसपास।बस अकेला मै और मेरी बदली हुई नयी जिन्दगी,जिसमें आशाओं के बादल हल्के हल्के घिर जाते थे कभी और एक नयी शुरुआत का आस्वासन दे जाते थे मुझे।कभी कोई शोर कानों से टकरा जाता और कभी कोई विचार मोड़ देता राह मेरी जिन्दगी का।
सोचता मै बैठा बैठा क्या संघर्ष की शुरुआत होने वाली है या संघर्ष का ही दूसरा स्वरुप है यह आया हुआ सुबह।इस भोर में बहुत कुछ नयापन है,उजड़े हुये स्वप्न घरौंदे है जिन्हें चुन चुन कर फिर से बनाना है मुझे अपने सुनहरे भविष्य का कल।लड़ना है मुझे रिश्तों की डोर के हर एक उस एहसास से जो कमजोर करता है मुझे।समझना है नये रंग और रुप को और खुद को भी रंग लेना है उस रंग में।देखना है आकाश की उन ऊँचाईयों को जो मेरे घर के छत से काफी दूर है।पाना है हर उस मुकाम को जो इस नयी दुनिया में बड़ा दिखायेंगे मुझे।


कल्पनाओं की मेरी नगरी से बिल्कुल अलग सा है यह नया संसार।भावनाओं की कमी और इंसानियत का थोड़ा अभाव है यहाँ।संवेदनाओं को रौंद कर ही शायद मिलती है यहाँ पहचान और पैसों के बिस्तर पर ही शायद पाते है सभी सुकुन यहाँ।कभी सोचता शायद ये दुनिया मेरे लिए नहीं,मेरे लिए तो वो पुरानी दुनिया ही भली थी।पर फिर जब पिछे मुड़ कर देखता तो दूर दूर तक बस खाली खाली सा नजर आता।शायद छुट गया काफी पिछे वो बचपन का जमाना कही किसी स्मृति में।अब तो एक जिम्मेवार व्यक्ति बन कर नई दुनिया की नागरिकता हासिल करनी है मुझे।
सारे शौक और मेरे सारे हसरत दम तोड़ते रहे,चिल्लाते रहे पर जिन्दगी के भागदौड़ में भागता भागता मै शायद बड़ी दूर निकल आया था।बस एक बार भी पिछे मुड़ कर देखने की फुरसत कहाँ थी अब तो।अब ना थी वो शाम की तन्हाईयाँ जिसमें चुपचाप एकांत में चलता मै मीलों की दूरी तय करता।खुद से बातें करता और अपने दिल की भी सुनता।ना था वो सुनहरा सुबह जब सबसे पहले उठकर सूर्यनमस्कार करता और फिर योग और ध्यान।अब तो बस मेरा वजूद किसी का गुलाम था।पहले तो एक दिन में कई काम होते थे मेरे,पर अब मेरा पूरा दिन बस किसी एक काम को ही करते करते गुजर जाता।


हाँ,एक बात थी इस नयी जिंदगी में बड़ी चैन की नींद नसीब होती थी पर यहाँ भी सपने तोड़ देते थे मेरी खुशियाँ और मेरी जिम्मेवारी फिर जगा देती थी मुझे।दुनिया तो था कहने को नया,पर जिन्दगी में कुछ भी ना था नया।बस रेस जो कभी खत्म ही नहीं होती।रोज सुबह,रोज शाम और फिर वही बेचैन की नींद जो चैन सी लगती।कभी ये जिंदगी ना देती समय सोचने को कुछ बस कहती बढ़ते जाओ।
एक एक कर टुट गया हर ख्वाब,दफन हो गयी मेरी सारी ख्वाहिशे और जलता रहा मेरे सपनों का वो घर जिसकी नींव मैने चैन के उस हर रात में रखी थी जब कल्पनाओं का आकाश ही मेरा छत था और मेरे विचार उनपे टिमटिमाते तारों से थे जो मेरी जिन्दगी के हर रात को जगमग जगमग करते थे।पर शायद इस नयी दुनिया में महत्व नहीं है मेरे विचारों और मेरी कल्पनाकाश का।यहाँ शायद मेरी भावनाओं की भी कद्र नहीं है जो अक्सर मुझे बहुत ही बड़ा स्थान दिलाते थे कभी पर अब यही मेरी कमजोरी से बन गये है।मेरी नयी जिन्दगी की एक नयी सुबह का यह सुबह शायद पहला और आखिरी ही है मेरे लिए।

Monday, May 16, 2011

"वक्त ने मुझे बड़ा बना दिया-पापा"

अपने सभी अरमानों को दबा लिया दिल में ही कही और किसी से ना कुछ कहा।कई ख्बाव जो पलते थे आपकी आँखों में दिन-रात उसे आपने मेरी आँखों को सौंप दिया।क्यों किया ऐसा आपने,बस मेरे लिए ना पापा!आप हरदम बस सोचते रहे हमारी खुशी के लिए और मै कुछ ना समझा आपके प्यार को।वो आपका प्यार ही तो था जो मुझसे बार-बार बातें कर मेरे बारे में पूछना और कुछ ज्यादा ना कह पाना।मेरे उज्जवल भविष्य के लिए दिन रात यहाँ से वहाँ आपका भाग-दौड़,कुछ ना समझ पाया मै।
बचपन से किताबों में पढ़ता आया माँ की ममता के बारे में।माँ की ममतामयी छाया में भूल गया शायद कि एक ऐसा दिल भी है,जो बहुत प्यार करता है मुझसे।आज जीवन के मायने बदल रहे है शायद अब मै बड़ा हो गया हूँ।उतना बड़ा की अब अपने जीवन के बारे में गम्भीरता से सोच सकूँ।मेरे लिए जीवन के कई रुप है परिवार,दोस्त,प्यार और कैरियर बहुत कुछ है।पर एक शख्स जिसकी हर आहट में मेरे कदमों का ही चिन्ह झलक जाता है,वो शख्स बस आप है पापा।जो बस मेरे लिए सोचते है,मुझसे बहुत प्यार करते है।पर शायद मै आपके इस प्यार की छतरी ओढ़े खुद को न जाने क्या समझ बैठता हूँ।अपने अस्तित्व की पहचान को ही गुमनाम कर बैठता हूँ।
आपका बार-बार कहना बेटा इस बार घर आना ऐसा प्रोग्राम है और मै तो अकड़ कर ही रह जाता।शायद क्या सोच लेता मै।समझ ना पाता क्यों जब बस एक हफ्ते ही हुये होते मेरे घर से आये आप मुझे फिर उसी उत्साह के साथ बुलाते।और इस अनोखे प्यार को तो मै अपनी सफलता का अवरोध मान लेता।शायद उस रोज जब मै सफलता की ऊँचाईयों को छू रहा होउँगा,यह निमंत्रण और प्यार फिर से पाने की इक अधूरी ख्वाहिश दिल में जगेगी।पर शायद समय कुछ बदल सा गया होगा उस वक्त।


कहा गया है कि "चीजों की कीमत मिलने से पहले और इंसान की कीमत खोने के बाद पता चलती है"।आँसू भी बरबस आँखों में तब आते है,जब आँसू पोंछने वाला बड़ी दूर जा चुका होता है।इंसान सोचता है समय को पकड़ लूँ अपने तो संग है ही पर शायद ये समय ही सभी अपनों को भी किसी भोर के सपने सा बना देता है।जिसके टुटने पर दिल को बहुत दुख होता है,क्योंकि भोर का सपना शायद भविष्य का सच होने वाला होता है।नहीं पता मुझे ये क्या है जिसके कारण जब आप सामने होते है तो कुछ ना कह पाता हूँ और ना दिखला पाता हूँ।पर एहसास बाद में कचोटने लगते है मन को और ऐसे ही जब बिल्कुल अकेला हो जाता हूँ,तो अपने उस परिवार की याद आ जाती है,जहाँ सब को मेरी चिंता रहती है,बस मेरी।
पूरी दुनिया में शायद बहुत कम लोग ही ऐसे है जो सोचते है मेरे बारे में।मेरी खुशियों में मेरे साथ होते है और मेरे दुख में छुप-छुप कर आँसू बहाते है।शायद समय उस दहलीज पे भी लाकर खड़ा कर दे एक दिन जब कोई गुमान ना हो खुद पे।वो जिद ना हो,वो चाहत ना हो और ना हो वो फरमाईश।जो मै अक्सर करता था आपसे और आप झट से पुरा कर देते थे उसे।कभी ये ना सोचते थे क्या गलत है और क्या सही,बस मेरे लाडले की खुशी है,सब ठीक है।


कभी कभी जो आपका दिल दुखा देता हूँ पापा बहुत अच्छा लगता है।खुश होता हूँ मै ये सोचकर कि आपको तो मेरी भावनाओं की कद्र ही नहीं।पर अब तक असमर्थ हूँ आपके भावनाओं को देख पाने में जिसमें कुछ नहीं है,कोई चाहत नहीं जीवन के उड़ानों का उसमें तो बस मेरी तस्वीर है बचपन से अब तक की।यादें है वो जो शायद अब याद नहीं आते।मेरी हर एक फरमाईश और ख्वाहिश से भरी हुई है आपकी भावनायें।जिसे मैने अपने जीवन में स्नेह का अभाव मान लिया था,वो तो बस मेरे प्रति स्नेह के अगाध पुष्पों से सजा हुआ है।आपकी वो बात "बेटे,मेरे जाने के बाद मेरी बहुत याद आयेगी तुम्हें देखना!"आज आपकी कोई कही हुई बात नहीं बस एहसास है जो अब भी उस काँधे को तरसता है जहाँ से देखता था मै सारी दुनिया।अब भी उन ऊँगलियों को पकड़ना चाहता है,जिसे थाम कर खुद को सबसे खुशनसीब समझता था।वो डाँट आपकी जिसे सुन बहुत बुरा लगता था,फिर सुनना चाहता हूँ।
जिन्दगी में जिस छावँ के तले पलता हुआ बचपन से अपनी जवानी गुजार दी वो छावँ ही अब मुझे जलन देता है,तपाता है मुझे और मेरे शरीर को और उसे छोड़ काफी दूर निकल जाता हूँ मै।वक्त के पहियों पर दिन-ब-दिन गुजरता रहता है हर पल और अपनी सभी ईच्छाओं को दफन करता जाता हूँ दिल में कही।वो बातें जो बिना आपसे कहे सार्थकता नहीं पाते थे,अब तो बस जुबान से दिल में ही दबे दबे रह जाते है।शायद अब जरुरत नहीं मुझे उस काँधे की,उन ऊँगलियों की जो अब भी बुलाते है मुझे रोज।अब तो मै खुद ही खड़ा-खड़ा देख लेता हूँ सारी दुनिया।


ऐसा लगता है "वक्त ने मुझे बड़ा बना दिया है-पापा"।शायद उतना बड़ा जहाँ से बस लम्बी-लम्बी ईमारते दिखती है।बस सितारों की रौनक दिखती है,पर वो दिल की चाहत नहीं दिखती जो अब भी गले से लगाने को बेकरार है मुझे।जो इतना बड़ा होने पर भी मुझे आज उतना ही छोटा समझता है जितना मै था कल तक।अब भी भीड़ में मै ढ़ुँढ़ता हूँ उस शख्स को जिसकी आँखों में मेरे लिए बस प्यार ही प्यार है।यकीनन वो मेरे पापा ही है,जो आज भी मेरी आँखों से देखते है मुझे और कभी-कभी जो ठोकर लगती है,गिरने को होता हूँ तो थाम लेते है मुझको।और मै कितना भी बड़ा होकर फिर से छोटा बहुत छोटा हो जाता हूँ उनके सामने.....। 

Wednesday, May 11, 2011

अब तो तुम हो साथ मेरे

हरी हरी घासों पे लेटा,खुले आसमान के निचे संसर्ग की उन्मादकता का स्वागत करता मै।तुम्हारी नीली आँखों में गगन की सारी उड़ानों को ढ़ुँढ़ता और तुम्हारे स्पर्श से मेरे रोम रोम में हर्ष की इक नयी कली का मानों प्रस्फुटन होता।तुम्हारे साथ होने का ये आभास कही कोई कोरी कल्पना तो नहीं।खुद को विश्वास दिलाने के लिए बार बार मेरा तुमको किया गया स्पर्श इन मिलन के क्षणों का मूकदर्शक बन जाता।आँखे मूँद कर आज मन के दर्पण को पूर्णतः साफ कर बीते सभी पुराने अतीत की यादों को पोंछ देता और उस दर्पण से साफ साफ देखता सुनहरे भविष्य के आने वाले हर एक पल को जिसमें तुम्हारे साथ मै जिन्दगी के हर एक अधूरे ख्वाबों को गढ़ता जिन्हें पूरा करना अब मेरी जिन्दगी का एकमात्र लक्ष्य था।
सुबह सुबह चिड़ीयों का चहचहाना,कई मिन्नतों के बाद तुमको फिर से पाना और मन की बेसुध बाँसुरी से निकलता वो राग पुराना।सब के सब मिलन के इन क्षणों को एक अलौकिक स्वरुप देते और मेरा प्यार चुपचाप दिल के किसी कोणे से कुछ कहना चाहता।शायद तुम्हें अब साथ देखकर कुछ डर सा हो रहा था उसे क्योंकि जुदाई के हर एक दर्दभरे कल को उसने अपने अस्तित्व की संरचना का एक हिस्सा मान छुपा लिया था खुदमें।उसने ही बस महसूस किया था तुम्हारे विरह की अग्नज्वाल का जिसमें जलता जलता वो अब तो बेरस सा हो गया था।मिलन और जुदाई दोनों एक सा ही लगता था उसे पर आज तुम्हें देख फिर से मानों पा लिया उसने अपना खोया अस्तित्व।
लवों पे आते कितने बात और कितने बात दिल में ही दबे दबे घुटते रहते।पर हम तो कुछ ना कहते अब बस देखते रहते तुमको।तुम्हारे चेहरे पे आयी वो स्वर्णमयी स्याह लकीरें मेरे अंतरमन के सुसुप्त तारों को एकाएक झंकृत करती और तुम्हारे संग का एहसास बुझा देता मेरे मन के प्यास को जो न जाने कितनी सदियों से,कई युगों से तुम्हारे आने की आश लिए जी रहा था।तुम पूछती "क्या तुम्हें याद नहीं अपने प्यार की वो तमाम रातें"?और मै बेचारा कैसे बताता कि उन रातों की यादों के संग ही तो जी रहा था अब तक।तुम्हें क्या पता उन बिते हर एक रातों में तुम ना होकर भी मेरे कितने पास होती थी और मेरा प्यार कैसे तड़पता था तुम क्या जानों।मै तुमसे कहता "तुम्हें याद है सब"।तो तुम बस इतना कहती "हाँ हर एक बात और तुम्हारे प्यार का साथ सब याद है मुझे,कभी नहीं भूल सकती मै"।
आसमां से उतरता कोई फरिश्ता अपने हाथों में दुनिया की सारी खुशियाँ लेकर आता और धिरे से हमारी झोली में रख चला जाता।मै कुछ कदम बढ़ाता तुम्हारी ओर और तुम अब बिल्कुल करीब होती मेरे।माहौल में फूलों की सौरभता सा बिखर जाता यादों का हर एक मंजर जिसमें मिलन और विरह दोनों का समावेश होता।यादों का आईना चकनाचूर हो जाता और हर एक टुकड़े में कही तुम्हारे साथ और कही खुद को अकेला देखता मै।फिर रात आती और थोड़ी बदली बदली सी रंगत के संग एहसास दिलाती कि "अब तो तुम हो साथ मेरे"।
दूर दूर तक कुछ ना दिखता अपने प्यार के सिवा और राहों में बिछा होता सुनहरे प्रेम के प्रणय गीतों में सराबोर तुम्हारे संग का रंगीन चादर।फूल बिछे होते चाँदनी रातों में जब मै तुमसे फिर करता अपने प्यार की दो बातें और तुम बिना कुछ सुने कहती "मुझे तुमसे इतना प्यार क्यों है जानां?"हर पल बस तुम्हारे बारे में सोचती और हर दिन तुमसे मिलने की चाहत लिए दरवाजे पर निगाहें गड़ाये क्यों करती हूँ तुम्हारा इंतजार।और मै बस यही कह पाता "शायद ये प्यार अब कुछ विशेष है,जो विरह की अग्नज्वाल में तप तप कर स्नेह और अनुराग का मिश्रित स्वरुप बन कर प्रेम की प्रकाष्ठा का आलोप है।"इस विशिष्ट प्यार का ही तो परिणाम है कि एक बार फिर तुम हो साथ मेरे।

Tuesday, May 3, 2011

जीवन के वीरान राहों में फिर तुम्हारा साथ चाहिए....

वो राह जीवन का जिसपर हम हमेशा साथ होते थे।मीलों साथ चलते और कुछ ना कहते थे।बस तुम्हारे साथ की खुशी ही तो मुझे लम्बे फासलों के दर्द को भी महसूस नहीं होने देती।रास्ते चलते,हम चलते और समय भी भागता रहता अपनी रफ्तार से बस थमी होती तो ये दिल की धड़कन।लगता ऐसा कि काश यूँही सफर चलता रहता और ना होती कभी भी शहर इस रात की।इस रात में हमदोनों बैठे होते चुपचाप एक दूसरे के सामने और पूछते दिल से दिल की बात।घंटों मौन रहने की आदत जो पहले ना थी मुझमें पर तुमने सीखाया था अपने जाने के बाद।कितने अधूरे और अप्रकाशित ख्वाब मेरे अब भी शायद दिल के किसी कोणे में पड़े इंतजार कर रहे थे स्वयं के पूरे होने का।
प्रिया! क्या तुम भूल गयी वो सारी बातें जो मैने बस तुमसे कहने के लिए सुंदर शब्दों में पिरोकर कागज के टुकड़ों पर बार बार लिखता और मिटाता दिन भर बनाता रहता और रात को तुमसे कहने की कोशिश में घंटों यूँही बिता देता।क्या ये शर्म थी मेरी या ह्रदय की अधीरता जो मै तुम्हें वो कभी ना कह पाता जिसे कहना शायद जरुरी था तुमसे।असंख्य शब्दों के शब्दकोश से बस दो चार गिने चुने ही शब्द चुन पाता जिसे तुम्हारी उपमा से अलंकृत करता।पर फिर भी मेरी विवशता न जाने क्या थी जो उन गिने चुने शब्दों में से भी बस कुछ शब्द ही कह पाता।शायद तुम्हारी उपमा के भाव से परे थे वो शब्द या मेरे लब्जों पे आके संकुचित हो जाते थे वे।वो दूर तक तुम्हारे साथ जाने के लिए मेरा दौड़ा दौड़ा आना और बस तुम्हारे पास आकर इतना कहना "क्या चलोगी तुम साथ मेरे"।इन शब्दों से मै पूछता था क्या वीरान जीवन के इस खामोश सफर में मेरा साथ दोगी तुम।इजहार प्यार का कर तो देता पर शायद तुम मेरे इस अंदाज को समझ ना पाती और बस इस पेड़ से उस पेड़ तक जाती और कहती "हो गया ना"।
यादों के पत्तें अब भी झरते रहते है उस पेड़ से जहाँ से तुम चलती थी साथ मेरे।और मेरी विवशता पे हँसते है वे सारे मौसम जिन्होनें देखा था मुझे साथ तुम्हारे सदियों से सदियों तक।मेरा तुम्हारे साथ चलते जाना और मँजिल पर आकर ये एहसास होना सफर तो खत्म हो गया।कई रोज उन वीरान राहों पे आहटे तुम्हारी आती थी मुझे लगता था कि आज फिर तुम साथ चलोगी मेरे इस पेड़ से उस पेड़ तक।पता है शायद जिन्दगी अब इस पेड़ से उस पेड़ तक ही सीमट के रह गयी है और प्यार के हर एक किस्से मानों इन राहों में ही खुद को ढ़ुँढ़ते फिर रहे हो।वे किस्से जो ना तो कभी कहे मैने तुमसे और ना ही सुना तुमने कभी।वो बस दिल की दहलीज से झाँक कर यादों के मौसम को देख लेते है कभी कभी और अपनी दास्ता बयां करते है खुद ब खुद मेरे दिल में।तुम्हारे साथ की कल्पना में हर पल गुजरे कल में रहना ही आज मेरी पहचान है,शायद वो भूत ही मेरा वर्तमान है।
पतझड़,बसंत और न जाने कितने मौसम ने कई बार मुझे भींगाया है,वो राह भी भींग जाता है और वो दोनों पेड़ जहाँ से चलकर जहाँ तक चलती थी तुम साथ मेरे वो भी अपने पत्तों के संग भींगते रहते है।पतझड़ के बाद नये पत्तें मानों भविष्य की रुपरेखा गढ़ते है और बिखरे हुए सूखे एक पत्तें को सम्भाल कर रख लेता हूँ मै अपने पास।उस एहसास को जो मुझे तुम्हारे साथ होने का झूठा दिलासा दिलाता है और भींग भींग कर पेड़ के सारे पत्तें मेरे अंतर्मन को भी कभी भींगो जाते है।आँखों से कभी बरस लेते है यादों के मोतियों को लुटाते और कभी हँस कर अपना गम भी छुपा लेते है सबसे।अब भी राह देखता है वो सूखता पेड़ शायद तुम्हारे स्पर्श का,अब भी वो राहें सूनसान ही रहती है शायद तुम्हारे बिना।बस एक बार ही उन राहों को आबाद कर दो तुम और वीरान राहों में फिर एक बार मेरे साथ चलो ना इस पेड़ से उस पेड़ तक।आज भी लगता है कि शायद मुझे जीवन के वीरान राहों में फिर तुम्हारा साथ चाहिए।