Saturday, April 16, 2011

तुम्हारे इंतजार की वो रात

चाँद गुमशुम,तारे खामोश और रात की आधी पहर का सन्नाटा और दिल की धड़कन का जोर-जोर से धड़कना,यादों की पालकी पर तेरी यादों का आना और ख्वाबों में तुमसे मिलने की आश लिए सोने की कोशिश करना।कभी चाँद को देखना,कभी तारों से भरी आकाश निहारना,बेवजह दिल को तसल्ली देना आज तो तुम आओगी।रात का पहर ढ़लता गया और मेरी आँखे तुम्हारे इंतजार में और भी जगी जगी सी रहने लगी।उन्हें लगता न जाने कब निंद आ जाये और तुमको देख ना पाऊँ आते हुए।सदियों से वो जो प्यास दिल में था कैद कही सुख ना जाये आँखों में आँसू बन के।
जैसे जैसे ये रात उदास होती गयी वैसे वैसे चाँद भी छुपता रहा मुझ दिवाने से।शायद वो जानता था कि वो तो बस कुछ घंटों में खो जायेगा पर ये दिल की सुनने वाला जागता रहेगा हरदम बस किसी के इंतजार में।कभी कोई मौन सा धुन मेरे कानों से टकरा जाता और कभी कोई आहट शायद कहती मुझसे तुम आ रही हो।ऐसे ही कुछ फासलों पे अक्सर लगता बस अब कुछ पल और फिर तो ये रात इंतजार की नहीं मिलन की रात होगी।


चाँद भी अब थक कर बादलों में खो गया,तारे भी मद्धम मद्धम से होने लगे पर हम अब भी बस नजरे गड़ाये करते रहे इंतजार तुम्हारा।तुमसे शायद यही करार था हमारे प्यार का।बस दर्द,उदासी और इंतजार इन्ही के संग तो जीने की आदत डाल रहा था मै तुमसे प्यार कर के।अकेला बिल्कुल अकेला हो गया मै।अब ना चाँद था ना तारे अब तो धिमे धिमे से रोशनी की पहली किरण आनी शुरु हो गयी थी।मै अभी भी बिल्कुल हतोत्साहीत ना था जानता था तुम तो आओगी ही।थोड़ी देर जो भी हो रही है शायद तुम्हारे आने में वो कही इस चाँद की तो कोई साजिश नहीं।कही तुम्हें देख अकेला वो अपनी चाँदनी समझ तुम्हें आवाज तो नहीं लगा बैठा।
पर प्रेयसी सुनो ना मै यहाँ हूँ न जाने कब से।कई रातों से यूँही तुम्हारे इंतजार में हूँ यहाँ।मै चाँद नहीं हूँ,मै रात नहीं हूँ,मै तो बस दिवाना हूँ तेरा जो अब रात और दिन में अंतर नहीं कर पा रहा तुमसे प्यार कर के।इंतजार की घड़ियाँ बस गिनता है उसे रात या दिन से क्या मतलब।ऊजाला हो या अँधेरा हो बस तुम्हारा इंतजार करता है।आवाज लगाता है,तुमको बुलाता है,और जब ना आती हो तो थक कर फिर निकल जाता है ढ़ुँढ़ने तुमको उस अजनबी रास्तें पर जहाँ पहली बार मिला था तुमसे।
हर रात कुछ खाश होती और तुम्हारे इंतजार की रात तो मानों जिंदगी के बारात की रात हो।कितनी खुशी,स्नेह और हर्ष से भर जाता है ह्रदय कैसे दिखाऊँ तुमको?मरने में भी जीने का मजा और जिंदगी के लिए इंतजार करना कितना कोमल एहसास था कैसे बताऊँ तुम्हें?वो रात भी अजीब था,पता नहीं मिलन की कल्पना से खुश था मन या विरह की अग्न में व्यथीत।पर मन की उत्सुकता तो तुम्हारे इंतजार को और भी विशेष रंग देता था।
तुम मत आना कभी।ऐसे ही हर रात मेरी जिंदगी में तुम्हारे इंतजार की रात होगी।और इक आश के संग जीता रहूँगा सारी उम्र।आज आओगी,कल आओगी,न जाने कब आओगी?पर सोचता हूँ जब तुम्हारे इंतजार में इतना मजा है तो तुमसे मिल कर तो शायद आनंद की प्रकाष्ठा ना पा लूँ।खुली आँखें क्या करे आँसूओं की धार ले आयी सहेज कर और बहने लगे सारे भाव दिल की आँखों से।हर बूँद पुकारता रहा तुम्हें और अब भी जिद करता रहा तुमसे मिलने की।ह्रदय अधीर होकर धड़कता रहा सारी रात और मन कभी इस पार,कभी उस पार होता रहा।एहसास होने लगा कि शायद अब तो  ये इंतजार ही जीने की वजह बन गयी और हम अब से हर रोज रात रात भर करते रहे तुम्हारा इंतजार।

14 comments:

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर वर्णन किया है अह्सासो का

रश्मि प्रभा... said...

ehsaason ko jivant ker diya hai

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति से भरा आलेख!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति से भरा आलेख!

मनोज कुमार said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

Udan Tashtari said...

प्रवाहमयी...

वाणी गीत said...

बेहद खूबसूरत एहसासों ने गद्य में भी काव्य की अनुभूति प्रकट की ...

Coral said...

bahut khub

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत सुन्दर काव्यात्मक गद्य....

hamarivani said...

अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

Ragini said...

lagta hai dil nikalkar rakh diya.....bahut badhiya

बाबुषा said...

Beautiful Satyam ! Beautifully expressed !

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत बढ़िया भाव!


सादर

Maheshwari kaneri said...

बहुत ही सुन्दर अहसास.....