Sunday, February 27, 2011

सपने ने डरा दिया था मुझे

पूरा जिस्म काँपने लगा,एक अजीब सी घबड़ाहट होने लगी,साँसे फूल गयी,और मै मानों दौड़ता भागता एक भयानक सपने को पीछे छोड़ जाग गया।बड़ा ही डरावना और भययुक्त था,वो सपना उस रात का।सपने में देखा मैने अपने वजूद का जुदा होना और तुम्हारा मुझसे दूर जाना।बिल्कुल असहाय सा चिल्लाता रहा,अपने जिंदगी को खुद से जुदा होते देखता रहा,और कुछ ना कर सका।अचानक ख्वाब टुटा और खुद को फर्श पर पाया,न जाने कैसे जुदा हो गया मुझसे तेरे प्यार का साया।जागने पर एहसास हुआ उस भयानक सपने के टुटने का और तसल्ली मिली तुम्हारे साथ होने का।
यथार्थ से बिल्कुल उल्टा और मीलों दूर होती है सपनों की नगरी।इंसान सपने संजोता है,खुश होता है,और उसके टुट जाने पर खुद भी टुट कर बिखर जाता है।इक स्वप्न निंद के आगोश में ही पैठ बनाता है,और दूसरा वो स्वप्न होता है जिसे इंसान अपनी जागती हुई आँखों से देखता है।रात का ख्वाब टुटता है और इंसान ये कह कर दिल को तसल्ली दे लेता है,कि वो तो बस मेरा एक भ्रम था।एक सैर थी मेरे स्थूल शरीर और विचारों की मिथ्याकाश में।पर जब टुटता है,व्यक्ति का दिवा स्वप्न तो वो बिल्कुल अधीर हो जाता है।क्योंकि न चाहते हुए भी उसे सत्य की चादर में समेटने की कोशिश करता है इंसान।
आज फिर टुट गएँ मेरे कई ख्वाब एक साथ और तुमसे जुदाई का डर सताने लगा।आज सच में मुझे बेवजह ही उस रात के सपने पर विश्वास होने लगा।कभी कभी प्यार का अनोखा एहसास होता और कभी जुदाई का भयावह डर सताता।बिल्कुल किसी असहाय प्रेमी की भाँति मेरा प्रेम भी अब समाज की कुंठित मान्यताओं की बलि चढ़ने वाला था।पर चाह कर भी तुमसे एक पल भी जुदा होना मेरे लिएँ गँवारा न था।तुम्हारा प्रीत भले आज कच्चे धागों में बदल गया हो,पर मेरे प्रीत की डोर तो अब भी बिल्कुल वैसी ही है,जेसी हुआ करती थी पहले।


बस गिने चुने दिन ही गुजार पाया था मै संग तुम्हारे और अचानक एक भयंकर तूफान सा ले के आया मेरी जिंदगी में आज का वो स्वप्न।जिन हाथों को थामा था मैने,जिन पलकों पर हौले से अपने कुछ अधूरे ख्वाबों को पनाह दी थी।जिन होंठों पर थे हमारे प्रीत के गीत।वो सब जुदा कर बैठा था मेरा वो भयानक स्वप्न।अभी तो अच्छे से एक बार तुम्हारी आँखों को भी नहीं देखा था।जिन आँखों की गहराई में ही कही डूबने की तमन्ना थी,उन्ही आँखों से बहते अस्क देख कर मै तो बिल्कुल लाचार हो गया था।जिन होंठों से तुम्हारे अपने प्रणय गीतों को सुनकर अपने आप में ही खो जाता था और खुद में उन्हें महसूस करने लगता था,उन होंठों से पीड़ा भरे स्वर कैसे सुन पाता मै?
यूँ तो टुट जाता है सपना,पर सच में अगर ऐसे ही रुलायेगा वो तुमको,तो मै खुद ही तोड़ दूँगा उसे।मिटा दूँगा अस्तित्व उसका और अगर वो ना मिटा तो मिटा दूँगा खुद का वजूद बस एक तुम्हारी खुशी के वास्ते।नहीं डरता मै सपनों की झुठी कहानियों से,नहीं भ्रमा सकता कोई ख्वाब मुझे और मेरे प्यार को।जिन लोगों का सदियों से सदियों का साथ हो उनके लिए कई बरस बिताना,तो बस दो पल बिताने जैसा है।तुम्हारे गोद में पड़ा हुआ मै समय के सारे बंधनों से आज दूर चला आया हूँ।एक साया मेरा और दूसरा तुम्हारा बस साथ अपने लाया हूँ।दूर तक नहीं कोई,बस तुम्ही मुझे दिख जाती हो।कभी पास हो और कभी दूर से मुझे बुलाती हो।
यकीन हुआ आज उस ख्वाब पर जो कई बरस पहले देखा था मैने और टुटने पर उसके दिल को एक सुकुन सा मिला था।पर आज जब नहीं हो तुम,ना इस जहाँ में और ना उस जहाँ में।तब उस झूठे ख्वाब पर भरोसा हो आया है।आज सच में छिन लिया है उसने मुझसे,तुमको और मेरे सपने ने डरा दिया है मुझे।अब बस यही सोचता हूँ ऐसे ही किसी सपने में फिर मिल जाती तुम और टुटते हुएँ उस सपने में ही बस कुछ टुकड़ों में ही फिर से जी लेता मै कई सदियाँ तुम्हारे साथ.......। 

Sunday, February 20, 2011

तुम्हारे वो गीत याद है मुझे

जब कभी सुनता हूँ वो गीत याद आने लगती हो तुम।उस गीत से जुड़ी है तुम्हारी यादें।साधारण सा इक गीत बस तुम्हारी होंठों का स्पर्श पाकर इक विशिष्ट सा हो गया था मेरे लिए।जमाने के लिए वो गीत होगा कोई मधुर संगीत सा पर मेरे लिए तो वो प्राण श्वासों से निकलने वाला जीवन संगीत था।जो हर पल मेरी धड़कनों के संग प्रवाहीत होकर मेरे वजूद का तुम्हारे प्रीत की लय पर समर्पित होना बताता था।जब कभी सुनता हूँ कही भी,किसी वक्त सारा माहौल बिल्कुल बदल जाता है और इक अदृश्य सी सुनहरी चादर ओढ़े तुम्हारी यादें मुझे अपने आगोश में लेने लगती है और सपनों की दुनिया में खड़ी कही तुम किसी परी सी अपने पास बुलाती हो।मै दौड़ा दौड़ा जाता हूँ तुम्हारे पास और जब तुम्हे छूने की सारी कोशिशे व्यर्थ हो जाती है,तभी जाग जाता हूँ निंद से।
संगीत से सनी गीत में कैद तुम्हारी यादें मेरे लिए प्रेम रस में डुबे वैसे गीत है,जिसे एक बार सुनने के बाद बार बार उसे ही सुनने को जी करता है।उस गीत से होती मेरी सुबह और मेरी शाम।उस गीत पे मानों लिखी हो हमारे प्रीत के सुनहरे गुजरे दिनों के नाम।वो गीत मानों मेरी रुह से समा जाती हो हौले से मेरे जेहनोदिल में और पुकारती हो मुझे "आ जाओ ना तुम"।
मन करता फिर खींच लाऊँ उन पलों को अतीत से और तुम्हें दुल्हन बना ले आऊँ अब तो।पर मेरी विवशता तब एहसास कराती है,उस गीत का होना....पर तुम्हारे ना होने का।


आज तुम नहीं हो,पर दो बोल तुम्हारे गीतों के याद है मुझे।जिसे मैने बड़ी संजीदगी से छुपा लिया था उस रात जब तुमने इन्हें गुनगुनाया था।तुम गाती थी और मै खो जाता था कही।उस वक्त पता नहीं चला कि न जाने कितना सम्मोहन था तुम्हारे उन गीतों में,जो अब से कई सालों बाद भी इक अनोखी डोर में बाँध कर रखेगा मुझे।शायद वही है वो दिल के तार जिनसे इन गीतों का मधुर स्वर तुम्हारे पास से मेरे पास आ जाता है कभी कभी।
गीत की हर पंक्ति पूछती है शायद मुझसे,कि क्या अब तुम्हें मन नहीं करता फिर से उन दिनों में लौटने को।पर बेचारे इन गीतों को क्या पता है हम इंसानों की लाचारी।हमारे विवशता को तो बस रात के सुनसान सन्नाटे और जिंदगी के खामोश सफर ही समझ सकते है।इन गीतों को क्या पता मौन का एकाकीपन।


काश कोई समझ सकता इस मौन की चुप्पी के पीछे का रहस्य।क्यों बोले वो,कितना बुलाया,कई बार आवाज लगाया।कितने दिनों तक लगातार तुम्हें पुकारता रहा,पर जब उसे विश्वास हो गया अब तो सब व्यर्थ है।हो गया शांत और रहने लगा मौन।
तुम्हारे वो गीत पूछते है मुझसे "आ जाओ ना,मै कब से राह देख रही हूँ"।पर तुम कहा कहती हो अब आने के लिए।काश कभी ऐसा होता उन गीतों से होकर तुम्हारी कही कुछ बातें भी मेरे कानों को छुकर निकल जाती।तब तो जीवन का मेरा संगीत पूर्णरुपेण और सार्थक हो पाता।तुम अपने उन गीतों से कभी मेरे पास आती और कुछ बातें कर फिर लौट जाती।


शायद उस वक्त जब मै अपने जीवन के अंतिम पलों में जी रहा होऊँगा।तुम्हारे ये गीत मुझे फिर लौटने को कहेंगे गुजरे दिनों में।थोड़ा दुख तो होगा पर इक संतुष्टि होगी मुझे मरने के बाद ही सही पर,उस क्षण गीत के संग उसके उस गायक से भी मुलाकात हो जायेगी मेरी।छोड़ गया था जो मुझे मेरे जीवन के सफर में तन्हा मुझे और मै तुम्हे भर लूँगा बाहों में और एक गुजारिश मेरे दिल की तब भी तुमसे होगी "सुनाओ ना वो गीत फिर से एक बार" और तुम फिर से कई सदियों पुरानी वो अपने प्यार का राग छेड़ देती और आँखों से आँसू बरसने लगते तुम्हारे और गला भी भर जाता और वो गीत तुम्हारी भर्रायी हुई आवाज में मानों इस जमाने से कहता "हमने अपना प्यार पा लिया,मर के ही तो क्या हुआ.....पर जिंदगी तो मिल गई ना............।  

Monday, February 14, 2011

प्यार की वो आखिरी रात

सहम गया था मै अंदर तक बस तुम्हारी एक बात सुनकर "मुझे भूल जाओ,हमारा साथ शायद इतना ही था अब कल से हम नहीं मिल सकते।"मानों ऐसा लगा कि कोई जोर का तूफान आया हो मेरे जीवन में जो अंदर तक जाने कहा तक मुझे झकझोर के रख दिया।कुछ भी कहने की स्थिती में था मै,सब कुछ तो कह दिया था तुमने ये कह कर "मुझे भूल जाओ।"
 हर रोज तुम मिलती और एक नये एहसास के साथ हमारे प्यार की मानों रोज एक नये सिरे से शुरुआत होती।कुछ तुम कहती,कुछ मै कहता।कुछ तुम सुनती,कुछ मै सुनता।ना ही समय की पाबंदी होती और ना ही कोई भी होता हमारे प्यार के बीच।पर आज क्यों इक मौन की नजर लग गयी थी हमारे प्यार के हलचल में।होंठ कुछ बोलते ना थे,पर बेचारे आँख खुद पर काबु ना रख पाये।बहने लगी धार आँसूओं की और भींग गया मेरा अंतरमन पूरे अंदर तक।

आज क्यों ना जाने बस दो पग की अपनी दूरी हजारों मीलों के फासलों जैसा लगा।सीमट गई सारी दूरी बस इक मेरे दायरे में और मै चाह के भी ना छु सका तुम्हे।इक अजीब सी खामोशी कही से के बस गयी थी हमारे प्यार के खिलखिलाते घर में।बस दो शब्दों ने तबाह कर दिया था अपने सपनों का रँगीला भविष्य।
 यादें झाँकती और हर पल नजरों के सामने वो सारी बाते तुम्हारी किसी चलचित्र की भाँति उमरने लगती।कानों में मेरे गूँजने लगता तुम्हारा वो स्नेहभरा प्रेम पूर्ण शब्द "मै तुमसे प्यार करती हूँ।"बस इतना सुनते ही रोमांचित हो जाता मेरा रोम रोम और घुलने लगती प्यार की इक भींगी खुशबु।ऐसा प्रतीत होता कि मै दुनिया का सबसे खुशनसीब हूँ जो मुझे कोई प्रेम करने वाला मिला है।कोई है जिसे बस मेरी चिंता है।मेरी खुशी में वो हँसती है,और गम में आँसू बहाती है।

हर रोज की भाँति आज शाम को भी तुमसे मिलने निकल पड़ा मै और तुम भी मेरे इंतजार में पहले से खड़ी थी।पर मुझे कहा ये पता था कि आज तुम्हारे इतने करीब होकर भी मै तुमसे बहुत दूर हो गया था।मैने तुम्हारे चेहरे पे उभरी हुई सिकन की लकीरे देख ली थी।मैने पूछा तुमसे क्या बात है,क्यों उदास हो तुम?कुछ देर तक तुमने कुछ ना कहा और फिर तुम्हारे दो शब्द "मुझे भूल जाओ" कही अंदर तक झकझोरते रहे मुझे।मुझे नहीं पता कि ये तुम्हारी विवशता थी या और कुछ।मेरे पास नहीं थे शब्द,कि मै तुमसे पूँछु कि तुमने क्यों कहा ये शब्द?

बस एक प्रश्न मेरे जेहन में छा सा गया।क्या भूल गयी तुम वो सारी वादे,कसमें अपने प्यार की।मै तुम्हारे लिए सबकुछ था और तुम थी मेरे लिए सबकुछ मेरी जिंदगी।पर जाने क्यों आज हमारा प्यार बिल्कुल मजबूर होकर रह गया था।खुद खुद बिना जाने कोई कारण तुम्हारी इस विवशता का मेरे पाँव मुड़ गये लौटने की राह में।आँखों में आँसू,दिल में तुम्हारा प्यार और यादों में गुजरा हुआ हर क्षण समेट लाया मै।
 उस रात जाने क्यों बड़ा बेबश हो गया था मै।चाह कर भी ना पूछ पाया तुमसे कुछ और।असमर्थ था किसी से क्या कहता अपनी प्यार की दास्ता।कभी बस ये सोच के कि तुमसे जुदा होकर मुझे रहना होगा।मेरा ह्रदय बड़ा भयभीत हो जाता।और आज उसी बुरे सपने में जी रहा था मै।तुम अब नहीं मिलोगी मुझसे,तुम अब नहीं बात करोगी मुझसे।कैसे रह पाऊँगा मै अब तुम्हारे बिन यही सोचता सोचता उस रात मै खुद में बिल्कुल बेबश सा होकर रह गया।वो आखिरी रात हमारे प्यार की मुझे मेरे जीवन का अवसान लगने लगा।एक समय पहली बार मिली थी तुम मानों जिंदगी मिल गयी थी।और आज बस तुम्हारे दो शब्दों ने मुझे और हमारे प्यार को लाकर खड़ा कर दिया प्यार के उस आखिरी रात में।