सच में कुछ बदलाव तो था इस बार की अपनी मुलाकात में।इस बार वो इंतजार न था और ना था वो प्यार जो मै तुमसे करता था।शायद मुझे भी आभास हो रहा था इसका पर पता नहीं क्यों वो एहसास फिर धड़कनों में समा ही नहीं पा रहा था।वो खुमारी जो झलकती थी मेरी आँखों से और मेरे दिल के धड़कनों के संग धड़कती रहती थी और जो मुझे दिवाना बनाती थी तुम्हारे प्यार का।अब मेरे जेहनोदिल में उतरती ही न थी।कुछ ऊबा ऊबा सा मै तुम्हारे बातों का जवाब देता और तुमसे बात कर ऐसा लगता कि अपने प्यार पर कोई एहसान कर रहा हूँ।
फिर रात होती वैसी ही चाँदनी और दिलकश जैसा हुआ करती थी कभी जब प्यार के मदहोश पलों में खोये रहते थे हम।आँखों में ना नींद होता और ना अपनी बातें कभी खत्म होने का नाम लेती।पर इस बार तो नींद से मानों मुहब्बत हो गई थी मुझे तुम्हारे न होने के दिनों में।बड़ी जल्दी मै सो जाता और तुम बस इंतजार करती रहती।मै वही हूँ,तुम वही हो पर शायद प्यार का तजुर्बा जरा बदल गया है।वो प्यार जो कभी नई रंगत लेकर आया था मेरी जिंदगी में आज बोझ सा महसूस हो रहा था।और उस बोझ तले दबा दबा सा मेरा प्यार फिर जुदाई का डर दे देता था कभी कभी।
पता था मुझे एक दिन फिर तुम चली जाओगी मुझसे काफी दूर और फिर चाह कर भी बुला ना पाऊँगा तुम्हें।किस अधिकार से आवाज दूँगा तुम्हें।क्या कहूँगा आओ फिर से एक एहसान कर दो खुद पे।तुम मुझसे इतना प्यार करती थी पर शायद मै प्यार के काबिल ही ना था।कई बार तुमने पूछा "क्या कारण है इस बदलाव का" और मै बस यही कहता "सब तो वैसा ही है,कहाँ कुछ बदला" और कोशिश करता अपनी असमर्थता को छुपाने की।
तुमने कहाँ कि शायद अब तक तुम प्यार को जान ही नहीं पाये हो,आज तक जो था वो बस आकर्षण था प्यार नहीं।और मै मौन रह कर शायद हामी भरता तुम्हारे इस बात पर।कभी जब तुम ना होती तो सोचता क्या सच में आज तक मुझे प्यार नहीं हुआ,अब तक जो हुआ वो बस आकर्षण था।फिर सोचता आखिर प्यार कैसा होता है?याद आता वो पहला मुलाकात,वो पहली बार जो हुई थी तुमसे बात।कितना खुश था मै कदम जमीन पर पड़ते ही न थे।लगता था कि सारी दुनिया अब बस मेरे दामन में सीमट आयी है।शायद वो प्यार के कुछ पलों को जीने की ईच्छा दे गया था मुझे उस पहली बात में और प्यार के झोंको ने मुझे बहा लिया था खुद में।
तुम आई तो ऐसा लगा सदियों से थमी मेरी साँस मानों फिर से चलने लगी हो,ऐसा लगा फिर से जीने का एक बहाना मिल गया हो।जिसे ढ़ुँढ़ता ढ़ुँढ़ता कई बार मै मौत की गलियों से घुम आया था तुम्हारे न होने पर।रात फिर हसीन होने लगी और और तारों ने गुफ्तगु करना चाहा पर मेरे दिवानेपन को देख सभी शर्मा गये और चाँद भी अपनी चाँदनी की सारी छटाये हमारे प्यार पर फैलाता रहा।छत पर मै और तुम एक दूसरे के सामने निहारते रहे अपने प्यार को और यादों के हर एक बीते पन्नों को पलट पलट कर मै तुम्हें दिखाता रहा गुजरी मुहब्बत की बातें।
पर आज क्यूँ फिर चली गई तुम बहुत दूर।उतनी दूर जहाँ तक ना मेरी आवाज जाती है और ना मेरी नजर।ढ़ुँढ़ता रहा कई रात यूँही अकेला छत पर तुम्हें।चाँद से पूछता क्या देखा तुमने उसे,पर वो मौन रह कर शायद ये कहता वो तो आज भी तेरे साथ है पर "तू ही बदल गया है रे!" देख एक बार फिर प्यार की नजरों से वो तेरे सामने ही है।और मै शायद अपनी ही भूल के बदले फिर खो देता तुम्हें।फिर जिन्दगी मायूस होकर पूछती तुमसे "क्यूँ आकर फिर चली गई तुम" और मै बेबश होकर अब इंतजार भी ना कर पाता,क्योंकि खो दिया था मैने वो अधिकार भी इस बार।
फिर रात होती वैसी ही चाँदनी और दिलकश जैसा हुआ करती थी कभी जब प्यार के मदहोश पलों में खोये रहते थे हम।आँखों में ना नींद होता और ना अपनी बातें कभी खत्म होने का नाम लेती।पर इस बार तो नींद से मानों मुहब्बत हो गई थी मुझे तुम्हारे न होने के दिनों में।बड़ी जल्दी मै सो जाता और तुम बस इंतजार करती रहती।मै वही हूँ,तुम वही हो पर शायद प्यार का तजुर्बा जरा बदल गया है।वो प्यार जो कभी नई रंगत लेकर आया था मेरी जिंदगी में आज बोझ सा महसूस हो रहा था।और उस बोझ तले दबा दबा सा मेरा प्यार फिर जुदाई का डर दे देता था कभी कभी।
पता था मुझे एक दिन फिर तुम चली जाओगी मुझसे काफी दूर और फिर चाह कर भी बुला ना पाऊँगा तुम्हें।किस अधिकार से आवाज दूँगा तुम्हें।क्या कहूँगा आओ फिर से एक एहसान कर दो खुद पे।तुम मुझसे इतना प्यार करती थी पर शायद मै प्यार के काबिल ही ना था।कई बार तुमने पूछा "क्या कारण है इस बदलाव का" और मै बस यही कहता "सब तो वैसा ही है,कहाँ कुछ बदला" और कोशिश करता अपनी असमर्थता को छुपाने की।
तुमने कहाँ कि शायद अब तक तुम प्यार को जान ही नहीं पाये हो,आज तक जो था वो बस आकर्षण था प्यार नहीं।और मै मौन रह कर शायद हामी भरता तुम्हारे इस बात पर।कभी जब तुम ना होती तो सोचता क्या सच में आज तक मुझे प्यार नहीं हुआ,अब तक जो हुआ वो बस आकर्षण था।फिर सोचता आखिर प्यार कैसा होता है?याद आता वो पहला मुलाकात,वो पहली बार जो हुई थी तुमसे बात।कितना खुश था मै कदम जमीन पर पड़ते ही न थे।लगता था कि सारी दुनिया अब बस मेरे दामन में सीमट आयी है।शायद वो प्यार के कुछ पलों को जीने की ईच्छा दे गया था मुझे उस पहली बात में और प्यार के झोंको ने मुझे बहा लिया था खुद में।
तुम आई तो ऐसा लगा सदियों से थमी मेरी साँस मानों फिर से चलने लगी हो,ऐसा लगा फिर से जीने का एक बहाना मिल गया हो।जिसे ढ़ुँढ़ता ढ़ुँढ़ता कई बार मै मौत की गलियों से घुम आया था तुम्हारे न होने पर।रात फिर हसीन होने लगी और और तारों ने गुफ्तगु करना चाहा पर मेरे दिवानेपन को देख सभी शर्मा गये और चाँद भी अपनी चाँदनी की सारी छटाये हमारे प्यार पर फैलाता रहा।छत पर मै और तुम एक दूसरे के सामने निहारते रहे अपने प्यार को और यादों के हर एक बीते पन्नों को पलट पलट कर मै तुम्हें दिखाता रहा गुजरी मुहब्बत की बातें।
पर आज क्यूँ फिर चली गई तुम बहुत दूर।उतनी दूर जहाँ तक ना मेरी आवाज जाती है और ना मेरी नजर।ढ़ुँढ़ता रहा कई रात यूँही अकेला छत पर तुम्हें।चाँद से पूछता क्या देखा तुमने उसे,पर वो मौन रह कर शायद ये कहता वो तो आज भी तेरे साथ है पर "तू ही बदल गया है रे!" देख एक बार फिर प्यार की नजरों से वो तेरे सामने ही है।और मै शायद अपनी ही भूल के बदले फिर खो देता तुम्हें।फिर जिन्दगी मायूस होकर पूछती तुमसे "क्यूँ आकर फिर चली गई तुम" और मै बेबश होकर अब इंतजार भी ना कर पाता,क्योंकि खो दिया था मैने वो अधिकार भी इस बार।
14 comments:
बहुत बढ़िया लिखा है.
सादर
सुन्दर भावमयी प्रस्तुति...
बहुत मर्मस्पर्शी और भाव पूर्ण लिखा है.
badhiyaa
बहुत बढ़िया भावमयी प्रस्तुति, विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
bahut accha....aabhar
kitne saare bhaw hain ismein ... raag anuraag shikayat udaasi manuhaar...
क्या बात है...बहुत खूब...लाजवाब....
sundar lekh ,hardik badhai
sadar
laxmi narayan lahare
"मै वही हूँ,तुम वही हो पर शायद प्यार का तजुर्बा जरा बदल गया है!"
समय के साथ पूरा का पूरा इंसान बदल जाता है भाई...!
भावपूर्ण...
सुंदर भावनात्मक प्रस्तुति !!
कवि-मन की खुबसूरत प्रस्तुति...
गज़ब का लिखा है आपने....पर प्यार तो ऐसा नहीं होता....कभी उससे दूर ही नहीं हो पता...जिससे वो प्यार करता है....शायद वो आपका आकर्षण ही था....जिसे आपने प्यार का नाम दे दिया था
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