शंकाओं से भरी हुई वो सुबह,अनिश्चिताओं के हजारों किरणों को खुद में समेटे जगाता रहा मुझे।पुरानी जिन्दगी यादों के पन्नों में सीमट गयी और नयी जिन्दगी भविष्य के सपनों को कही दूर मुझे दिखाती दे गयी एक भोर।इस सुबह कोई ना था।सब अजनबी थे मेरे आसपास।बस अकेला मै और मेरी बदली हुई नयी जिन्दगी,जिसमें आशाओं के बादल हल्के हल्के घिर जाते थे कभी और एक नयी शुरुआत का आस्वासन दे जाते थे मुझे।कभी कोई शोर कानों से टकरा जाता और कभी कोई विचार मोड़ देता राह मेरी जिन्दगी का।
सोचता मै बैठा बैठा क्या संघर्ष की शुरुआत होने वाली है या संघर्ष का ही दूसरा स्वरुप है यह आया हुआ सुबह।इस भोर में बहुत कुछ नयापन है,उजड़े हुये स्वप्न घरौंदे है जिन्हें चुन चुन कर फिर से बनाना है मुझे अपने सुनहरे भविष्य का कल।लड़ना है मुझे रिश्तों की डोर के हर एक उस एहसास से जो कमजोर करता है मुझे।समझना है नये रंग और रुप को और खुद को भी रंग लेना है उस रंग में।देखना है आकाश की उन ऊँचाईयों को जो मेरे घर के छत से काफी दूर है।पाना है हर उस मुकाम को जो इस नयी दुनिया में बड़ा दिखायेंगे मुझे।
कल्पनाओं की मेरी नगरी से बिल्कुल अलग सा है यह नया संसार।भावनाओं की कमी और इंसानियत का थोड़ा अभाव है यहाँ।संवेदनाओं को रौंद कर ही शायद मिलती है यहाँ पहचान और पैसों के बिस्तर पर ही शायद पाते है सभी सुकुन यहाँ।कभी सोचता शायद ये दुनिया मेरे लिए नहीं,मेरे लिए तो वो पुरानी दुनिया ही भली थी।पर फिर जब पिछे मुड़ कर देखता तो दूर दूर तक बस खाली खाली सा नजर आता।शायद छुट गया काफी पिछे वो बचपन का जमाना कही किसी स्मृति में।अब तो एक जिम्मेवार व्यक्ति बन कर नई दुनिया की नागरिकता हासिल करनी है मुझे।
सारे शौक और मेरे सारे हसरत दम तोड़ते रहे,चिल्लाते रहे पर जिन्दगी के भागदौड़ में भागता भागता मै शायद बड़ी दूर निकल आया था।बस एक बार भी पिछे मुड़ कर देखने की फुरसत कहाँ थी अब तो।अब ना थी वो शाम की तन्हाईयाँ जिसमें चुपचाप एकांत में चलता मै मीलों की दूरी तय करता।खुद से बातें करता और अपने दिल की भी सुनता।ना था वो सुनहरा सुबह जब सबसे पहले उठकर सूर्यनमस्कार करता और फिर योग और ध्यान।अब तो बस मेरा वजूद किसी का गुलाम था।पहले तो एक दिन में कई काम होते थे मेरे,पर अब मेरा पूरा दिन बस किसी एक काम को ही करते करते गुजर जाता।
हाँ,एक बात थी इस नयी जिंदगी में बड़ी चैन की नींद नसीब होती थी पर यहाँ भी सपने तोड़ देते थे मेरी खुशियाँ और मेरी जिम्मेवारी फिर जगा देती थी मुझे।दुनिया तो था कहने को नया,पर जिन्दगी में कुछ भी ना था नया।बस रेस जो कभी खत्म ही नहीं होती।रोज सुबह,रोज शाम और फिर वही बेचैन की नींद जो चैन सी लगती।कभी ये जिंदगी ना देती समय सोचने को कुछ बस कहती बढ़ते जाओ।
एक एक कर टुट गया हर ख्वाब,दफन हो गयी मेरी सारी ख्वाहिशे और जलता रहा मेरे सपनों का वो घर जिसकी नींव मैने चैन के उस हर रात में रखी थी जब कल्पनाओं का आकाश ही मेरा छत था और मेरे विचार उनपे टिमटिमाते तारों से थे जो मेरी जिन्दगी के हर रात को जगमग जगमग करते थे।पर शायद इस नयी दुनिया में महत्व नहीं है मेरे विचारों और मेरी कल्पनाकाश का।यहाँ शायद मेरी भावनाओं की भी कद्र नहीं है जो अक्सर मुझे बहुत ही बड़ा स्थान दिलाते थे कभी पर अब यही मेरी कमजोरी से बन गये है।मेरी नयी जिन्दगी की एक नयी सुबह का यह सुबह शायद पहला और आखिरी ही है मेरे लिए।
सोचता मै बैठा बैठा क्या संघर्ष की शुरुआत होने वाली है या संघर्ष का ही दूसरा स्वरुप है यह आया हुआ सुबह।इस भोर में बहुत कुछ नयापन है,उजड़े हुये स्वप्न घरौंदे है जिन्हें चुन चुन कर फिर से बनाना है मुझे अपने सुनहरे भविष्य का कल।लड़ना है मुझे रिश्तों की डोर के हर एक उस एहसास से जो कमजोर करता है मुझे।समझना है नये रंग और रुप को और खुद को भी रंग लेना है उस रंग में।देखना है आकाश की उन ऊँचाईयों को जो मेरे घर के छत से काफी दूर है।पाना है हर उस मुकाम को जो इस नयी दुनिया में बड़ा दिखायेंगे मुझे।
कल्पनाओं की मेरी नगरी से बिल्कुल अलग सा है यह नया संसार।भावनाओं की कमी और इंसानियत का थोड़ा अभाव है यहाँ।संवेदनाओं को रौंद कर ही शायद मिलती है यहाँ पहचान और पैसों के बिस्तर पर ही शायद पाते है सभी सुकुन यहाँ।कभी सोचता शायद ये दुनिया मेरे लिए नहीं,मेरे लिए तो वो पुरानी दुनिया ही भली थी।पर फिर जब पिछे मुड़ कर देखता तो दूर दूर तक बस खाली खाली सा नजर आता।शायद छुट गया काफी पिछे वो बचपन का जमाना कही किसी स्मृति में।अब तो एक जिम्मेवार व्यक्ति बन कर नई दुनिया की नागरिकता हासिल करनी है मुझे।
सारे शौक और मेरे सारे हसरत दम तोड़ते रहे,चिल्लाते रहे पर जिन्दगी के भागदौड़ में भागता भागता मै शायद बड़ी दूर निकल आया था।बस एक बार भी पिछे मुड़ कर देखने की फुरसत कहाँ थी अब तो।अब ना थी वो शाम की तन्हाईयाँ जिसमें चुपचाप एकांत में चलता मै मीलों की दूरी तय करता।खुद से बातें करता और अपने दिल की भी सुनता।ना था वो सुनहरा सुबह जब सबसे पहले उठकर सूर्यनमस्कार करता और फिर योग और ध्यान।अब तो बस मेरा वजूद किसी का गुलाम था।पहले तो एक दिन में कई काम होते थे मेरे,पर अब मेरा पूरा दिन बस किसी एक काम को ही करते करते गुजर जाता।
हाँ,एक बात थी इस नयी जिंदगी में बड़ी चैन की नींद नसीब होती थी पर यहाँ भी सपने तोड़ देते थे मेरी खुशियाँ और मेरी जिम्मेवारी फिर जगा देती थी मुझे।दुनिया तो था कहने को नया,पर जिन्दगी में कुछ भी ना था नया।बस रेस जो कभी खत्म ही नहीं होती।रोज सुबह,रोज शाम और फिर वही बेचैन की नींद जो चैन सी लगती।कभी ये जिंदगी ना देती समय सोचने को कुछ बस कहती बढ़ते जाओ।
एक एक कर टुट गया हर ख्वाब,दफन हो गयी मेरी सारी ख्वाहिशे और जलता रहा मेरे सपनों का वो घर जिसकी नींव मैने चैन के उस हर रात में रखी थी जब कल्पनाओं का आकाश ही मेरा छत था और मेरे विचार उनपे टिमटिमाते तारों से थे जो मेरी जिन्दगी के हर रात को जगमग जगमग करते थे।पर शायद इस नयी दुनिया में महत्व नहीं है मेरे विचारों और मेरी कल्पनाकाश का।यहाँ शायद मेरी भावनाओं की भी कद्र नहीं है जो अक्सर मुझे बहुत ही बड़ा स्थान दिलाते थे कभी पर अब यही मेरी कमजोरी से बन गये है।मेरी नयी जिन्दगी की एक नयी सुबह का यह सुबह शायद पहला और आखिरी ही है मेरे लिए।
11 comments:
वो सुबह कभी तो आएगी....!
हर सुबह शाम में ढल जाता है
हर तिमिर धूप में गल जाता है
ए मन हिम्मत न हार
वक्त कैसा भी हो
बदल जाता है ….
बहुत सुन्दर लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बेहतरीन प्रस्तुती!
बहुत सुन्दरता से भावों को पिरोया है आपने...!!
। अरे निराशा क्यों………जैसी भी सुबह मिले उसका स्वागत करना चाहिये।
...बेहतरीन प्रस्तुती!
very nice post !!
।रोज सुबह,रोज शाम और फिर वही बेचैन की नींद जो चैन सी लगती।कभी ये जिंदगी ना देती समय सोचने को छ बस कहती बढ़ते जाओ।BAHUT HI SAARTHAK,JINDAGI KI SACHCHAI KO BAYAAN KARATI HUI POST.BADHAAI SWEEKAREN
PLEASE VISIT MY BLOG.THANKS
।रोज सुबह,रोज शाम और फिर वही बेचैन की नींद जो चैन सी लगती।कभी ये जिंदगी ना देती समय सोचने को छ बस कहती बढ़ते जाओ।BAHUT HI SAARTHAK,JINDAGI KI SACHCHAI KO BAYAAN KARATI HUI POST.BADHAAI SWEEKAREN
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''नर हो न निराश करो मन को ''...
समय ...अच्छा भी बहुत जल्दी आएगा ...
komal bhav prastuti.
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