वो राह जीवन का जिसपर हम हमेशा साथ होते थे।मीलों साथ चलते और कुछ ना कहते थे।बस तुम्हारे साथ की खुशी ही तो मुझे लम्बे फासलों के दर्द को भी महसूस नहीं होने देती।रास्ते चलते,हम चलते और समय भी भागता रहता अपनी रफ्तार से बस थमी होती तो ये दिल की धड़कन।लगता ऐसा कि काश यूँही सफर चलता रहता और ना होती कभी भी शहर इस रात की।इस रात में हमदोनों बैठे होते चुपचाप एक दूसरे के सामने और पूछते दिल से दिल की बात।घंटों मौन रहने की आदत जो पहले ना थी मुझमें पर तुमने सीखाया था अपने जाने के बाद।कितने अधूरे और अप्रकाशित ख्वाब मेरे अब भी शायद दिल के किसी कोणे में पड़े इंतजार कर रहे थे स्वयं के पूरे होने का।
प्रिया! क्या तुम भूल गयी वो सारी बातें जो मैने बस तुमसे कहने के लिए सुंदर शब्दों में पिरोकर कागज के टुकड़ों पर बार बार लिखता और मिटाता दिन भर बनाता रहता और रात को तुमसे कहने की कोशिश में घंटों यूँही बिता देता।क्या ये शर्म थी मेरी या ह्रदय की अधीरता जो मै तुम्हें वो कभी ना कह पाता जिसे कहना शायद जरुरी था तुमसे।असंख्य शब्दों के शब्दकोश से बस दो चार गिने चुने ही शब्द चुन पाता जिसे तुम्हारी उपमा से अलंकृत करता।पर फिर भी मेरी विवशता न जाने क्या थी जो उन गिने चुने शब्दों में से भी बस कुछ शब्द ही कह पाता।शायद तुम्हारी उपमा के भाव से परे थे वो शब्द या मेरे लब्जों पे आके संकुचित हो जाते थे वे।वो दूर तक तुम्हारे साथ जाने के लिए मेरा दौड़ा दौड़ा आना और बस तुम्हारे पास आकर इतना कहना "क्या चलोगी तुम साथ मेरे"।इन शब्दों से मै पूछता था क्या वीरान जीवन के इस खामोश सफर में मेरा साथ दोगी तुम।इजहार प्यार का कर तो देता पर शायद तुम मेरे इस अंदाज को समझ ना पाती और बस इस पेड़ से उस पेड़ तक जाती और कहती "हो गया ना"।
यादों के पत्तें अब भी झरते रहते है उस पेड़ से जहाँ से तुम चलती थी साथ मेरे।और मेरी विवशता पे हँसते है वे सारे मौसम जिन्होनें देखा था मुझे साथ तुम्हारे सदियों से सदियों तक।मेरा तुम्हारे साथ चलते जाना और मँजिल पर आकर ये एहसास होना सफर तो खत्म हो गया।कई रोज उन वीरान राहों पे आहटे तुम्हारी आती थी मुझे लगता था कि आज फिर तुम साथ चलोगी मेरे इस पेड़ से उस पेड़ तक।पता है शायद जिन्दगी अब इस पेड़ से उस पेड़ तक ही सीमट के रह गयी है और प्यार के हर एक किस्से मानों इन राहों में ही खुद को ढ़ुँढ़ते फिर रहे हो।वे किस्से जो ना तो कभी कहे मैने तुमसे और ना ही सुना तुमने कभी।वो बस दिल की दहलीज से झाँक कर यादों के मौसम को देख लेते है कभी कभी और अपनी दास्ता बयां करते है खुद ब खुद मेरे दिल में।तुम्हारे साथ की कल्पना में हर पल गुजरे कल में रहना ही आज मेरी पहचान है,शायद वो भूत ही मेरा वर्तमान है।
पतझड़,बसंत और न जाने कितने मौसम ने कई बार मुझे भींगाया है,वो राह भी भींग जाता है और वो दोनों पेड़ जहाँ से चलकर जहाँ तक चलती थी तुम साथ मेरे वो भी अपने पत्तों के संग भींगते रहते है।पतझड़ के बाद नये पत्तें मानों भविष्य की रुपरेखा गढ़ते है और बिखरे हुए सूखे एक पत्तें को सम्भाल कर रख लेता हूँ मै अपने पास।उस एहसास को जो मुझे तुम्हारे साथ होने का झूठा दिलासा दिलाता है और भींग भींग कर पेड़ के सारे पत्तें मेरे अंतर्मन को भी कभी भींगो जाते है।आँखों से कभी बरस लेते है यादों के मोतियों को लुटाते और कभी हँस कर अपना गम भी छुपा लेते है सबसे।अब भी राह देखता है वो सूखता पेड़ शायद तुम्हारे स्पर्श का,अब भी वो राहें सूनसान ही रहती है शायद तुम्हारे बिना।बस एक बार ही उन राहों को आबाद कर दो तुम और वीरान राहों में फिर एक बार मेरे साथ चलो ना इस पेड़ से उस पेड़ तक।आज भी लगता है कि शायद मुझे जीवन के वीरान राहों में फिर तुम्हारा साथ चाहिए।
प्रिया! क्या तुम भूल गयी वो सारी बातें जो मैने बस तुमसे कहने के लिए सुंदर शब्दों में पिरोकर कागज के टुकड़ों पर बार बार लिखता और मिटाता दिन भर बनाता रहता और रात को तुमसे कहने की कोशिश में घंटों यूँही बिता देता।क्या ये शर्म थी मेरी या ह्रदय की अधीरता जो मै तुम्हें वो कभी ना कह पाता जिसे कहना शायद जरुरी था तुमसे।असंख्य शब्दों के शब्दकोश से बस दो चार गिने चुने ही शब्द चुन पाता जिसे तुम्हारी उपमा से अलंकृत करता।पर फिर भी मेरी विवशता न जाने क्या थी जो उन गिने चुने शब्दों में से भी बस कुछ शब्द ही कह पाता।शायद तुम्हारी उपमा के भाव से परे थे वो शब्द या मेरे लब्जों पे आके संकुचित हो जाते थे वे।वो दूर तक तुम्हारे साथ जाने के लिए मेरा दौड़ा दौड़ा आना और बस तुम्हारे पास आकर इतना कहना "क्या चलोगी तुम साथ मेरे"।इन शब्दों से मै पूछता था क्या वीरान जीवन के इस खामोश सफर में मेरा साथ दोगी तुम।इजहार प्यार का कर तो देता पर शायद तुम मेरे इस अंदाज को समझ ना पाती और बस इस पेड़ से उस पेड़ तक जाती और कहती "हो गया ना"।
यादों के पत्तें अब भी झरते रहते है उस पेड़ से जहाँ से तुम चलती थी साथ मेरे।और मेरी विवशता पे हँसते है वे सारे मौसम जिन्होनें देखा था मुझे साथ तुम्हारे सदियों से सदियों तक।मेरा तुम्हारे साथ चलते जाना और मँजिल पर आकर ये एहसास होना सफर तो खत्म हो गया।कई रोज उन वीरान राहों पे आहटे तुम्हारी आती थी मुझे लगता था कि आज फिर तुम साथ चलोगी मेरे इस पेड़ से उस पेड़ तक।पता है शायद जिन्दगी अब इस पेड़ से उस पेड़ तक ही सीमट के रह गयी है और प्यार के हर एक किस्से मानों इन राहों में ही खुद को ढ़ुँढ़ते फिर रहे हो।वे किस्से जो ना तो कभी कहे मैने तुमसे और ना ही सुना तुमने कभी।वो बस दिल की दहलीज से झाँक कर यादों के मौसम को देख लेते है कभी कभी और अपनी दास्ता बयां करते है खुद ब खुद मेरे दिल में।तुम्हारे साथ की कल्पना में हर पल गुजरे कल में रहना ही आज मेरी पहचान है,शायद वो भूत ही मेरा वर्तमान है।
पतझड़,बसंत और न जाने कितने मौसम ने कई बार मुझे भींगाया है,वो राह भी भींग जाता है और वो दोनों पेड़ जहाँ से चलकर जहाँ तक चलती थी तुम साथ मेरे वो भी अपने पत्तों के संग भींगते रहते है।पतझड़ के बाद नये पत्तें मानों भविष्य की रुपरेखा गढ़ते है और बिखरे हुए सूखे एक पत्तें को सम्भाल कर रख लेता हूँ मै अपने पास।उस एहसास को जो मुझे तुम्हारे साथ होने का झूठा दिलासा दिलाता है और भींग भींग कर पेड़ के सारे पत्तें मेरे अंतर्मन को भी कभी भींगो जाते है।आँखों से कभी बरस लेते है यादों के मोतियों को लुटाते और कभी हँस कर अपना गम भी छुपा लेते है सबसे।अब भी राह देखता है वो सूखता पेड़ शायद तुम्हारे स्पर्श का,अब भी वो राहें सूनसान ही रहती है शायद तुम्हारे बिना।बस एक बार ही उन राहों को आबाद कर दो तुम और वीरान राहों में फिर एक बार मेरे साथ चलो ना इस पेड़ से उस पेड़ तक।आज भी लगता है कि शायद मुझे जीवन के वीरान राहों में फिर तुम्हारा साथ चाहिए।
7 comments:
bahut hi badhiyaa
achhi rachna...sabdo ko pirona to koi aapse sikhe...
सुंदर भावाभिव्यक्ति।
सच में अपनों का साथ जीने की दिशा ही बदलता है ....
मोहसिन रिक्शावाला
आज कल व्यस्त हू -- I'm so busy now a days-रिमझिम
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...
बहुत सुंदर भाव..!!! ढेरों शुभकामनाएँ..!!!
very nice...
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