tag:blogger.com,1999:blog-27329698109983096932024-03-13T05:30:12.296+05:30*गद्य-सर्जना*विचारों को शब्दों में पिरोने का मेरा प्रयास....गद्य के माध्यम से फिर से जीवंत मेरा विश्वास....Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.comBlogger39125tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-63465178208251731482023-10-11T21:15:00.001+05:302023-10-11T21:15:28.431+05:30"तुम बस सर्वनाम नहीं हो"- गद्यात्मक काव्य<p><br /></p><p dir="ltr">लिखता रहूँ, बेपरवाह सा यूँहीं रात भर तुम पर,<br />
मेरी आँखों से शायद नींद कुछ पल रूठ बैठी है....</p>
<p dir="ltr">उसके नाजुक, कोमल मखमली पांव में बड़ी ही मासूमियत से बंधे पायल की छम-छम, घुंघरू की रुनझुन और शांत, घुप्प उदासी में सराबोर किसी वीरान जंगल में बहते झील के पानी की कल-कल की सुरीली धुन मानो सुरों की कोई अंतहीन प्रतिस्पर्धा छेड़ बैठे थे। वह खो गया था किसी अलौलिक तिलिस्म में उसकी आँखों की गहराइयों से होकर गुजरी थी उसकी अनकही मोहब्बत। उसके समक्ष शायद स्वर्ग की कोई रूपवती, कौमार्यता के सदृश, जीवंत यौवन का पर्याय अप्सरा ही उतर आई थी। उसने कहा खुद से, कोई जवाब नहीं मिला। उसने पूछा पूरी कायनात से उसकी जादुई सुंदरता का रहस्य। चांद भी शरमा कर कही बादलों की ओट में छुप गया।</p>
<p dir="ltr"> वह रात भर जाग कर तारे गिनता रहा। उसने पूरे आसमान में हर तारे में उसे देखा, बादलों की बनी हर टूटी, फूटी, अधूरी रेखा चित्रों में भी उसे बस उसी का चेहरा दिखता रहा। उस रात उसने खुद को घोषित कर दिया पागल। हाँ वो पागल ही तो हो गया था उसकी एक झलक पाकर। बेपरवाह रात की घनघोर खामोशी को चीरता उसके प्रेम गीत का सुरीला राग अब मानों अपने अल्हड़पन का काल्पनिक किस्सा हर किसी को सुनाना चाहते थे। </p>
<p dir="ltr">चांद की चटकीली चांदनी उसके चेहरे को ऐसे प्रकाशित कर रही थी मानो वह पूरे ब्रह्मांड में सबसे विशिष्ट हो गया था। उसने प्रेम के संसार में खुद के प्रवेश को अभूतपूर्व विशेषणों से अलंकृत कर खुद को प्रेमी कहता हर गली,मोहल्लों में शोर करने को उतावला हो गया था। उसे बदनामी का डर नहीं था, ना ही अपने प्रेम पर किसी के नजर लग जाने का आंतरिक भय। शायद उसने लगा दिया था काला टिका अपने प्रेम के माथे की दाहिनी ओर कपाल पर कही।</p>
<p dir="ltr">उसके अंतर का संगीत गूंजने लगा उसके भीतर से निकल कर ब्रह्मांड के कोने-कोने में। उसके अल्फाज भी स्वछंद होकर पड़ लगाकर उड़ने लगे थे। वह कहने की कोशिश करने लगा। अपने दिल में महफूज दबी हुई दिल्लगी की बात सब से। सभी जड़, चेतन, जीवित , मृत, शशरीर, आत्मा सब ने सुना उसके सुरीले प्रणय निमंत्रण को। वह मस्तिष्क के हर द्वार पे कुंडी लगाकर हृदय मार्ग से ही गुजरता बेधड़क, बेपरवाह सा कहने लगा।</p>
<p dir="ltr">"तुम बस सर्वनाम नहीं हो, तुम मेरी जिंदगी की वह विशेषण हो, जिसको पाकर मेरा नाम अपनी संज्ञा पाता है। तुम्हारा होना ही मेरी पहचान है, तुम्हारे बिना तो सब बेजान है। तुम बस कोई जादुई कविता नहीं हो, तिलिस्मी गीत नहीं हो। तुम शब्दों की झील में थोड़ी रंगहीन,कुछ उजली सी, साफ-साफ दिखती मेरी ही परछाई हो। तुम्हारे ही होने से अक्षरों में जान है, शब्दों में अर्थ है और मुझ निरक्षर के पास भी स्वचिन्तन और अंतर्दर्शन की अपार ताकत है।" </p>
<p dir="ltr">उसने शायद नहीं सुना उसके प्रेममयी मनुहार को। वह फिर न दिखी दुबारा। उसने एकाएक छलांग लगा दिया त्रेता युग में। वह राम की व्याकुलता लिए जंगल-जंगल भटकता फिरने लगा अपनी खोई हुई सीता की खोज में। वह दौड़ने लगा बाणों के संग, हवा से भी तीव्र गति से। उसने पीछे छोड़ दिया कई युगों को। वक्त की दहलीज पर रेंगते रहे हमेशा की तरह दिन,महीने और साल। उसने फिर इंतजार किया रात के आने का, अनंत आकाश के असंख्य तारों से भर जाने का। चांद से फिर उसकी सुंदरता और दिव्यता का रहस्य पूछे जाने पर बादलों की ओट में शरमा कर छिप जाने का। वह रात भर फिर करता रहा बात आसमान के अनगिनत तारों से। सभी मायूस थे, किसी को नहीं थी खबर उसकी वो जो कुछ दिन पहले हर तारे में उसे दिखने लगी थी। </p>
<p dir="ltr">उसने आंखों को बंद कर लिया। वह आज मृत्यु का अभ्यास करना चाहता था। उसने अपनी सांसे रोक ली।चुपचाप धड़कनों को सुनने की कोशिश करता रहा। हल्के नशीले, सुरीले वाद्य यंत्रों की संगीतनुमा लहर सी उसकी <span style="background-color: #ff4400;">पायलों की</span> छम-छम को उसने सुना अपनी धड़कनों में एक बार फिर। जिसे उसने अपनी आत्मा में कैद किया था शायद पिछले किसी जन्म में या जन्म जन्मांतर का प्रेम था उनका अलौकिक, अद्वितीय। शायद वही द्वापर में अवतरित प्रेम का स्वरूप कृष्ण था यमुना के किनारे अपनी सुमधुर बांसुरी की तान से सबको मंत्रमुग्ध कर देने वाला और वो थी उसकी प्रेयसी राधा। खुद में खोई सी, समुद्र के बीचोबीच एकांत टापू पर झिलमिलाती रौशनी सी, सुरीले वाद्य यंत्र के अप्रतिम धुन सी, कभी कही किसी के व्याकुल अंतर से निकले प्रार्थना के गीत में समाहीत होकर आसमान की अनन्त गहराइयों में न जाने कब से एकाकी जीवन जीने को विवश ।</p>
<p dir="ltr">-----सत्यम शिवम।</p>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-49246512634356343162012-02-05T10:01:00.006+05:302012-02-05T16:09:39.824+05:30कवि: एक "तत्क्षण योगी"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;">एक योगी स्वाध्याय,आत्मचिंतन और इंद्रियों पर नियंत्रण कर स्वयं को मन का स्वामी बना लेता है।मन की चंचलता को स्थिर कर एक कुशल सारथी की भाँति इच्छाओं और कामनाओं की लगाम अपने हाथों में लेकर स्वयं का सम्पूर्ण जीवन योग,साधना और आत्मचिंतन में लगा देता है।उसका स्वयं पर नियंत्रण ही उसे पारलौकिक सिद्धियों का अधिष्ठाता बनाता है।उसकी आत्मा हर पल एक अदृश्य डोर से परमात्मा के सानिध्य</span><span style="font-size: large;"> में होती है।जब कोई साधारण व्यक्ति स्वयं की इंद्रियों को नियंत्रित कर लेता है, और मन को स्थिरता देने लगता है तब उसके मन रुपी रथ के सारथी स्वयं भगवान हो जाते हैं।वे उसके जीवन-रथ को उस मार्ग की ओर ले जाते हैं जो शाश्वत सत्य का लक्ष्य है।</span><br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixlW3636V_MyST_wyB3VqlWmmbCBy9rDFk8HFIY777ddhAmY8E5msdbWh_0rw5-0M7d-0U3qp08B64BC_MVjWNf616j95GTBNZafsiHzD6Crv8xKjSi38OzVnzPItxU_3hzY7-yBsOwv-T/s1600/16.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixlW3636V_MyST_wyB3VqlWmmbCBy9rDFk8HFIY777ddhAmY8E5msdbWh_0rw5-0M7d-0U3qp08B64BC_MVjWNf616j95GTBNZafsiHzD6Crv8xKjSi38OzVnzPItxU_3hzY7-yBsOwv-T/s400/16.jpg" width="262" /></span></a></div><span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;">एक कवि जब रचनायें करता है और अपने स्वभाव के विपरीत प्रेम और घृणा दोनों की कविता लिखता है।उस क्षण उसकी मनःस्थिती स्वयं के वश में ना होकर उस परमसत्ता के हाथों में होती है।उस एक क्षण में वह विचारों के धरातल से ऊपर उठ जाता है और एक कर्मठ योगी की तरह ही काव्य साधना करता है, पर अगले ही क्षण, जब उसकी स्मॄति से, छन्द,शब्द और लय सभी का लोप होने लगता है, तब वह पुन: स्वयं को धरातल के करीब पाता है।वह सोचता रह जाता है, आखिर उसने क्या लिख दिया?और वह भावना, जो उसकी कविता में है,उसके जीवन में क्यों नहीं?वह तो स्वभाव से वीर रस का पुजारी है, फिर कैसे वह प्रेम की कविता लिख पाया?कवि की यह स्थिती उसे "तत्क्षण योगी" की संज्ञा देती है।वह पूर्णरुप से एक योगी नहीं है, पर वह क्षण, जिसमें उसकी मन की आँखें खुलती है,उसकी आत्मा में संतुष्टि और समर्पण की शक्ति नीहित होती है,उस एक क्षण में, वह क्षण भर के लिये काव्य योगी बन जाता है।</span><br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_phRs4-bvLh8cL8MiPiivjjz9OwjVoBOYzOjkNihPlOcJiXmNSWEJ9bV1Yi9SOXSxGseetGdjvUGHjJokq-sT_gEYZb_cd90bdFhXjb9nKLp_iTYcAY3vrOmqDJ-4sgAVJqUDKuPU9HqX/s1600/meditation+man.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_phRs4-bvLh8cL8MiPiivjjz9OwjVoBOYzOjkNihPlOcJiXmNSWEJ9bV1Yi9SOXSxGseetGdjvUGHjJokq-sT_gEYZb_cd90bdFhXjb9nKLp_iTYcAY3vrOmqDJ-4sgAVJqUDKuPU9HqX/s400/meditation+man.jpg" width="300" /></span></a></div><span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;">हर कला एक प्रकार का योग ही है, और कलाकार एक तत्क्षण योगी, क्योंकि जितने समय वह अपने कला में रत होता है, उसकी अंतरात्मा पर उसका वश नहीं होता।प्रकृति रुपी परमात्मा, जिसकी कला की प्रतिमूर्ति ये सम्पूर्ण सृष्टि और सृष्टि के सारे जड़-चेतन हैं वही प्रकृति, कला के माध्यम से नवसृजन की परिकल्पना करती है।प्रलयंकारी महाकाल शिव जब स्नेह और प्रेमरत होकर "लास्य नृत्य" करते हैं, तो नवनिर्माण होता है,जिससे कितनी रचनायें सम्पन्न हो जाती है तो कितनों की भूमिका तैयार हो जाती है-जो भविष्य के धरातल पर रची जायेगी।वहीं दूसरी ओर जब क्रुद्ध होकर महाकाल "तांडव नृत्य" करते है तो विनाश की किलकारियाँ चारों ओर गूँजने लगती है।सृजन के किस्से टलने लगते हैं और प्रलय की अनहोनियाँ चारों ओर सम्पूर्ण सृष्टि में दृष्टिगोचर होने लगती है।</span><br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIxAGjB5XSjL5WgqlZmCoCFrTcEeG9fSmGoxnqKE-wdNW9_TpGtBRd_d2Ho5ly7AC_KnluNV8AodND0JUikMMJ9l3X6Wv6dy981VWhCJuZ76P4oCiEDLxUuSSj8hPjgyUR9V0APiGryQea/s1600/shiva11.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIxAGjB5XSjL5WgqlZmCoCFrTcEeG9fSmGoxnqKE-wdNW9_TpGtBRd_d2Ho5ly7AC_KnluNV8AodND0JUikMMJ9l3X6Wv6dy981VWhCJuZ76P4oCiEDLxUuSSj8hPjgyUR9V0APiGryQea/s400/shiva11.jpg" width="272" /></span></a></div><span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;">कवि कैसे वह सब देख पाता है, जो एक सामान्य व्यक्ति नहीं देख पाता?आखिर वह भी तो एक साधारण इंसान सा ही है,पर भला किस शक्ति के माध्यम से वह दिव्य दॄष्टि पा लेता है।कैसे उसकी कल्पनायें भविष्य के किसी आगामी क्षण का स्वरुप गढ़ लेती है?आखिर यह कल्पना आती कहाँ से है? और फिर वह कवि कैसे स्वयं को यथार्थ से परे कर कल्पनाओं के आकाश में उड़ान भरता है।इन प्रश्नों का जवाब बड़ा ही गूढ़ और अध्यात्मिक है।कवि अपनी तत्क्षण योग साधना से ही वह सब देख पाता है जो एक सामान्य इंसान नहीं देख पाता।वह वही कल्पना करता है, जो ईश्वर उससे करवाता है।कागज के पन्नों पर लिखता तो वही है, पर हर शब्द,छन्द,भावनायें और कल्पनायें उस ईश्वर की होती है, और कवि एक तत्क्षण योगी की भाँति अगले ही पल फिर यथार्थ का दामन थाम लेता है।वह अपने वास्तविक स्वभाव में आ जाता है।उसका और उसके द्वारा बनाये गये काल्पनिक नायक के चरित्र में जमीन-आसमान सा अंतर होता है।पाठक और श्रोता उसकी हर कविता में कभी उसे देखते है तो कभी स्वयं को ही वहाँ खड़ा पाते है।पर वास्तविकता यह होती है कि वह ईश्वर का भिन्न-भिन्न स्वरुप होता है, और हम, ईश्वर के रचनासंसार की नाटिका के क्षणभंगुर नायक-नायिका, स्वयं में ईश्वर का स्वरुप देखने लगते हैं।हम कल्पना के संसार में स्वयं को सफलता के काफी निकट पाते हैं, बस कल्पना का ही संसार ऐसा होता है, जिसमें हम हर अनछुएँ और अनुत्तरित भावनाओं का सामिप्य पाते हैं।</span><br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWaQZHr3X4Z-zX0DojMMQ35gVxpS7OfnO6gzqpt4tLfQHWllFoViL5CIqJFqRnJuri4VSA_jsE6_2828JT_UkMFxxFHKgnYn-JpyLjOCNQk3cy6JW5HJfvo5eG7wi68FdlhTHM44r6Ry3v/s1600/christian+meditation+and+potential+of+mind.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWaQZHr3X4Z-zX0DojMMQ35gVxpS7OfnO6gzqpt4tLfQHWllFoViL5CIqJFqRnJuri4VSA_jsE6_2828JT_UkMFxxFHKgnYn-JpyLjOCNQk3cy6JW5HJfvo5eG7wi68FdlhTHM44r6Ry3v/s400/christian+meditation+and+potential+of+mind.jpg" width="358" /></span></a></div><span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;">कवि अपने काव्य के माध्यम से प्रकृति के अद्भुत रहस्यों का रहस्योदघाटन करता है।वह संसार को एक योगी की भाँति ही शाश्वत सत्य का स्वरुप दिखाता है।वह कभी नवजीवन के गीतों द्वारा प्राणियों में नवसंचार करता है तो कभी ओज भरे काव्य के माध्यम से सुसुप्त जनमानस को उनके अधिकारों के प्रति सचेत करता है।उसकी काव्य साधना एक नयी युग की कहानी लिखती है।उसकी तत्क्षण योग साधना एक ऐसे अमर काव्य की रचना करवाती है जो युगों युगों तक शाश्वत और अमिट हो जाती है।</span><br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilzTt8VnUrEbKQmPfV52GZZR4dCAQinz-gc9R-YtTz1Bxn0pFdQkKnj3FWaJ2vP28s75jb-HNqnTB3IzfckszBJNAWXNnU0dxZuvnfCaTcX3_Cx3BDp48EX1Czo97Tz3atVhX-0ENIFot0/s1600/frame04a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="140" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilzTt8VnUrEbKQmPfV52GZZR4dCAQinz-gc9R-YtTz1Bxn0pFdQkKnj3FWaJ2vP28s75jb-HNqnTB3IzfckszBJNAWXNnU0dxZuvnfCaTcX3_Cx3BDp48EX1Czo97Tz3atVhX-0ENIFot0/s400/frame04a.jpg" width="400" /></span></a></div><span style="font-size: large;">शांत वातावरण में मौन होकर,आँखें बंद कर,ऊपर की ओर एकटक देखता कवि आखिर क्या करता है?वह एक प्रकार की काव्य साधना में रत होता है।हमारी ब्रह्मांड में हमारे चारों ओर अदृश्य रुप से कई ऐसी तरंगे मौजूद हैं, जो खुद में नये संगीत और नये विचारों की अथाह निधि संचित किये हुये है।एक कवि मौन होकर,आँखें बंद कर एकांत में उन विचारों को तत्क्षण स्वयं में ग्रहण करता है और कोरे पन्नों पर उतारता जाता है जो एक नयी रचना को जन्म देते हैं, पर अगले ही पल वह विचार फिर कवि से काफी दूर हो जाते है।वह उस तत्क्षण सुख को हमेशा के लिये पाना चाहता है।एक पूर्णयोगी बनना चाहता है पर निरंतर उस क्षण की अद्भुत मादकता को पुनः खुद में महसूस करने के लिये वह फिर हाथों में लेखनी लिये एकाग्र होकर,आँखें मूँद कर एकांत में एक नयी रचना के सृजन में लग जाता है और विचारों की अथाह सरिता से दो बूँद प्राप्त करने हेतु चिंतन करने लगता है।उस एक पल के परमानंद को पाने की मृगतृष्णा न जाने कवि को कितनी बार "तत्क्षण योगी" बना देती है।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-70613926394809679392012-01-12T16:42:00.003+05:302012-01-25T13:53:34.614+05:30हे मेरे प्रेम! तुम लौट आओ ना फिर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;">हे मेरे प्रेम! तुम कहाँ हो?क्यूँ ना नजर आते हो आजकल मुझे।क्या तुम अबतक मुझसे रुठे हो,कभी आवाज भी नहीं देते या भूला दिया है तुमने मुझे।मै अब भी अक्सर हर रात तुम्हारा इंतजार करता हूँ उसी छत पर जहाँ तुम मुझसे पहले ही पहुँच कर मेरा इंतजार करते थे और मेरे पहुँचने पर दुसरी तरफ मुँह फेर कर अपनी नाराजगी जाहीर करते थे।जब मै तुमको मनाकर थक कर एक ओर बैठ जाता तो तुम खुद ही आ जाते थे मेरे पास।हे मेरे प्रेम! तुम तो मेरी प्रेमिका के स्वरुप में थे ना जो मुझपर जान छिड़कती थी,जो मुझको बेतहासा पागलों की तरह चाहती थी,जो मेरे बगैर एक पल भी नहीं रह पाती थी।पर क्या आज मौसम के बदलने से मेरी प्रेमिका भी बदल गयी,प्रेम का स्वरुप भी बदल गया।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfOGdbNMVOWKWYJAExYJL2TrwJCUCs34cwWdUYfkFgo3YKsoC1xh-6D1Up8GUYLC6CQEm6qCIqwjUISOy9GAzFGYotCdW3-ESZVvxEERimdo1NUf9W-nI4yBM3DPFKY32o4wgm9kzviFJj/s1600/302234_1616647791681_1700966908_874759_1710214794_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="368" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfOGdbNMVOWKWYJAExYJL2TrwJCUCs34cwWdUYfkFgo3YKsoC1xh-6D1Up8GUYLC6CQEm6qCIqwjUISOy9GAzFGYotCdW3-ESZVvxEERimdo1NUf9W-nI4yBM3DPFKY32o4wgm9kzviFJj/s400/302234_1616647791681_1700966908_874759_1710214794_n.jpg" width="400" /></span></a></div><span style="font-size: large;">हे मेरी सलोनी साँवली! मेरे साँसों में बसने वाली।क्या अब तुम्हें जरा भी फिक्र नहीं मेरी इन धड़कनों का।तुम्हारे बिन ये बड़े रुक रुक के चलते है।पता है तुम्हें हर वो रात कैद है अब भी मेरी यादों में।जब भी याद करता हूँ हँस पड़ता हूँ।जानती हो क्यों?क्योंकि कभी कभी ताजुब्ब सा होता है तुम्हारे ना होने पर भी मेरे होने का।हे प्रियतमा! आँसू बहते है पर अब इनका मोल नहीं है जो तुम नहीं हो इन्हें पोंछने वाली।क्या मेरे सारे प्रश्नों का जवाब दिये बिना ही तुम चली जाओगी।अक्सर तुम कहती थी "आप सवाल बहुत करते हो" पर अब क्यों ना आती हो जवाब लेकर मेरे बेवजह सवालों का।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4MS5YiYzWaZgTOcsbeOwXXPrkAyBuXQF3ZWTTIy-BKBtE8ybeNkVuiZ0lQ446jlz7hlfshyJOFttgT373FGhbwX560aLUHrtHoS_y5qDV4a9qPvuM3m8qm14XXpepRfDl_3yWA_4AnYoQ/s1600/kitni+pyari.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4MS5YiYzWaZgTOcsbeOwXXPrkAyBuXQF3ZWTTIy-BKBtE8ybeNkVuiZ0lQ446jlz7hlfshyJOFttgT373FGhbwX560aLUHrtHoS_y5qDV4a9qPvuM3m8qm14XXpepRfDl_3yWA_4AnYoQ/s400/kitni+pyari.jpg" width="400" /></span></a></div><span style="font-size: large;">तुम्हें याद करते करते रात ढ़लती जाती है और मै ख्वाब में ही सही तुमसे मिलने की जिद लिये आँखों को जबरदस्ती बंद करता हूँ।पर ना जाने क्यूँ तुम मेरे ख्वाबों से भी रुठ गयी हो।हर सुबह इसी उम्मीद के साथ आँखें खोलता हूँ कि कही तुम्हें सामने देख लूँ पर स्मृति की रेखाओं से बहुत दूर हो गयी हो तुम।ह्रदय का हाल बड़ा ही अजीब है आजकल तुम्हारे बाद।मेरा ये लाचार प्यार बस आहें भरता भरता हर दिन गुजारता जाता है।तड़पता हूँ और फिर मुस्कुरा लेता हूँ ये सोच कर की कही ना कही,कभी ना कभी तो मिलोगे तुम।हमारे प्यार की इस कहानी में कई बार ऐसा हुआ है कि हम बार बार बिछड़ कर फिर मिल गये है।पर अब इस दिल को सब्र नहीं है खुद पर।बेचार अक्सर पुकारता रहता है तुमको।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5IvEQqL0mwdvTdG1Ye4y4eY8T37LvIK41ns2jRvX6SUF05M6ELRzb1U8VbgzVR5_JVQnTktfIJj3HNBfGIA5zyvg8OISZJNgvRh_cvmQgYGUwXcFpuplcwAEMS8PSiRMkT7yVS4ECovn2/s1600/love-and-romance.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="211" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5IvEQqL0mwdvTdG1Ye4y4eY8T37LvIK41ns2jRvX6SUF05M6ELRzb1U8VbgzVR5_JVQnTktfIJj3HNBfGIA5zyvg8OISZJNgvRh_cvmQgYGUwXcFpuplcwAEMS8PSiRMkT7yVS4ECovn2/s400/love-and-romance.jpg" width="400" /></span></a></div><span style="font-size: large;">हे प्रियतमा! आकाश की ऊँचाईयों में कही गुम सा हो गया है मेरा वो हर एक शब्द जो मैने तुमसे कहे थे।मेरे जीवन की हर शाम बस तन्हाईयों से भरी हुई है।महफिल में भी सूनापन घेरे हुये है मुझे और हर पल तुम्हारी याद तुम्हें भूलने के सभी प्रयत्नों को व्यर्थ सा करता जा रहा है।शायद तुम्हारे बाद अब मेरे जीवन में रात का ऐसा सन्नाटा छाया है जिसे तुम्हारे प्यार के अलावे और कुछ नहीं मिटा सकता।सुनता हूँ अब भी धड़कनों में तुमको और उस चाँद से रोज सिफारीश करता हूँ तुम तक मेरे अनकहे संदेशों को पहुँचाने का।हे प्रियतमा! क्या तुम अब उस चाँद में मेरी छवि नहीं निहारती।क्या तुम सच में अब मुझसे प्यार नहीं करती या बस दो पल का प्यार ही मेरी किसमत में था।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnDW2bTL562gu_0xJ4u1XYics8p-0EJcoOqaXiaJsgYl4rbp-7SwPw5EnuDgH5-mAuBvqVe0_2mGVYpvRyf_76XAMh7zS1mzWbnxi9rTHHakeaSa38rZtZf9sRHrOvjyoMxhLJIVUbD0Ro/s1600/Kangan+copy.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnDW2bTL562gu_0xJ4u1XYics8p-0EJcoOqaXiaJsgYl4rbp-7SwPw5EnuDgH5-mAuBvqVe0_2mGVYpvRyf_76XAMh7zS1mzWbnxi9rTHHakeaSa38rZtZf9sRHrOvjyoMxhLJIVUbD0Ro/s400/Kangan+copy.jpg" width="292" /></span></a></div><span style="font-size: large;">तुम्हारे बाद कुछ अजीब सी बहती है ये हवायें कभी कानों में कुछ कहती है तो कभी रास्ते के पत्तों को उड़ाकर जमीन पर तुम्हारा नाम लिख देती है।तुम्हारे बिन चाँद मुझको दिलकश नहीं लगता।फिकी लगती है सारी फिजाएँ और मायूस सा लगता है हर आलम।पता है तुम्हें तुम्हारे बाद अब वो झील भी नहीं बहती पहले की तरह।खुद ही अपने आँसूओं को धोता धोता दिन से रात कर देता है।सामने का वो मोड़ जहाँ से हम अक्सर एक दुसरे की हाथों में हाथे डाले चलते रहते थे अब नहीं मुड़ता कही।शायद वो भी अब लक्ष्यविहीन हो गया है तुम्हारे बाद।तुम्हारे बाद बस यादों की हवायें चलती है जो मेरे ह्रदय पृष्ठों पे रेत</span><span style="font-size: large;"> से लिखे तुम्हारे नाम को पल भर में तहस नहस कर देती है।तुम्हारे बाद आसमां में चाँद काले बादलों की ओट में ही छुपा रहता है।शायद अब उसकी हिम्मत नहीं मुझसे नजरे मिलाने की या कही तरस आता हो उसे मेरे हाल पर।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTsA6_Wv7csNetvPYdlK-iowPwAhba-neUXovYLR47k-PU8Qj9TI3pDepRyi1rOHIHkNF3WiZrH9qbFAxMonib3mhfW99mi6EUlS1Vyqgj3uu6ntYa8nkZKnJty78PN_8CsO2Z9Wsupday/s1600/thiki.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="font-size: large;"><img border="0" height="256" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTsA6_Wv7csNetvPYdlK-iowPwAhba-neUXovYLR47k-PU8Qj9TI3pDepRyi1rOHIHkNF3WiZrH9qbFAxMonib3mhfW99mi6EUlS1Vyqgj3uu6ntYa8nkZKnJty78PN_8CsO2Z9Wsupday/s400/thiki.png" width="400" /></span></a></div><span style="font-size: large;">एक बात पुछू तुमसे क्या मेरे बाद तुम्हें मेरी याद नहीं आती कभी।क्या बस चंद पलों में कई जन्मों के रिश्ते को भूला दिया तुमने।क्या तुम्हें मेरी कोई परवाह नहीं होती।शायद तुम सच में भूल चुकी हो मुझे तभी तो अब कभी हिचकीयाँ भी नहीं आती मुझे।जानती हो आज मैने अपनी आँखों से एक करार किया है।तुमसे मिलने पर इनसे बहे हर एक आँसूओं का बदला लूँगा।टूट चुका हूँ पूरी तरह और बिखर गये है मेरे सारे ख्वाब किसी रेत के महल की तरह।मै तुमको नहीं खोना चाहता हूँ इसलिए हर दर्द को मरहम बना कर खुद में ही छुपाये रखता हूँ।बहुत कुछ खो दिया है मैने अब तक।पर यदि इस बार तुम्हें खो दूँगा तो कही बर्दाश्त ना कर पाऊँ और तुम्हारे बाद हमेशा के लिये आँखें बंद कर सो जाऊँ।यदि अब तुमने थोड़ा भी देर किया आने में तो सच में हे प्रियतमा! मै चिर निद्रा की आगोश में चला जाऊँगा सदा के लिये तुमसे और इस दुनिया से काफी दुर।हे मेरे प्रेम! तुमने क्यों खेला मेरे साथ ऐसा खेल जिसने मुझे बस दर्द के सिवा कुछ ना दिया।हर जीतने में भी हारता रहा मै और तू हर बार मुझे आँसूओं से पुरस्कृत करता रहा।हे मेरे प्रेम! लौट आओ ना फिर बस एक बार मेरी खातिर।बस एक बार.....।क्योंकि तुम्हारे बिना कुछ नहीं है मेरे पास सिवाये दर्द के और पुरानी यादों के।तुम ही कहो ना कितना सहूँ मै दर्द।हे मेरे प्रेम! तुम लौट आओ ना फिर।मुझे पता है तुम गुस्सा हो मुझसे क्योंकि मैने तुम्हारी कदर ना कि पर क्या मुझे बस एक बार मौका नहीं दोगे सुधरने का।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-75976852477902083502011-12-08T15:32:00.004+05:302011-12-08T15:48:32.481+05:30"टूटते सितारों की उड़ान" में मेरी सम्पादकीय......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: #cc0000; font-size: large;">"साहित्य प्रेमी संघ" के त्तत्वावधान में हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रह "टूटते सितारों की उड़ान" में मेरे द्वारा लिखा गया सम्पादकीय......</span></b></div><div style="text-align: center;"><br />
</div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जीवन संघर्ष का दुसरा नाम है और काव्य सृजन संघर्षरत मन की व्यथा के उद्गार।इंसान अपने जीवन में बहुत सी कठिनाईयों को झेलता है और परिवर्तन की ब्यार में बहता बहता एक दिन खुद परिवर्तन का पर्याय बन कर रह जाता है।मै मानता हूँ "परिवर्तन संसार की सृष्टि हेतु नितांत आवश्यक है।"पर वह परिवर्तन बस बाह्य हो तो ठीक है,आंतरिक परिवर्तन हमेशा सफल नहीं हो पाता।क्योंकि आज के आधुनिक परिवेश में हमारे चारों ओर बस कृत्रिमता की चादर बीछी हुई है।यहाँ अध्यात्म का नामोनिशान नहीं है और आध्यात्मिक चेतनता के बिना आंतरिक शुद्धिकरण सम्भव नहीं।दुनिया की रंग में रंग जाना बहुत ही अच्छी बात है पर अपने संस्कारों को ताक पर रख कृत्रिमता का आडम्बर रचना सही नहीं।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRwhAAEUWT6ZboIuq9sVsE8owzZUGm1KImdUCLplAlGbimphplOTEE5ooWJDvermJF6vkFcmp7sd-sBol3nL93NK5_hIywnCMKX69rPsgvW2RoU3abcy8_WO0326xw1Gl8juB6bhp583r5/s1600/satyam+shivam+cover+%25284%2529+-+Copy.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRwhAAEUWT6ZboIuq9sVsE8owzZUGm1KImdUCLplAlGbimphplOTEE5ooWJDvermJF6vkFcmp7sd-sBol3nL93NK5_hIywnCMKX69rPsgvW2RoU3abcy8_WO0326xw1Gl8juB6bhp583r5/s400/satyam+shivam+cover+%25284%2529+-+Copy.jpg" width="255" /></span></a></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">आज के परिवेश में लोग ऐसा सोचने लगे है,जितना ज्यादा दिखावा उतना ज्यादा फायदा।पर इस संदर्भ में मेरा सोचना थोड़ा अलग है।मै ऐसा सोचता हूँ कि जो वाकई में सुंदर है,उत्कृष्ट है उसकी सुंदरता तो शाश्वत है।उसे किसी भी बाह्य आडम्बर की आवश्यक्ता नहीं वह तो यूँही एक दृष्टि में किसी के दिल में जगह बना लेगा और जहा तक फायदे की बात है तो दुआओं के सामने किसी भी दवा की कहाँ चलती।जिनके सर पर बड़ों का आशीर्वाद होता है वो अपनी राहों के अवरोध को बस फूल समझ कर आगे बढ़ते जाते है।जो व्यक्ति अपनी स्वयं की वर्तमान स्थिती से संतुष्ट है,वही सफल है।क्योंकि सफलता कुछ और नहीं बस आत्मसंतुष्टि है।</span></div><div style="text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgX85yljePQPD52WDEKr_uNyaX2FlcRVFMcpjn9G89rJAz_PhNG1URcXCAvard_IZf1Opcu4Ye3mdYapRmfrDjiImWoVRBWPcisoQPteFHMxJm1NrV-bYyiVg9C9aAv9UWtG3T3rFGoBGWh/s1600/5.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgX85yljePQPD52WDEKr_uNyaX2FlcRVFMcpjn9G89rJAz_PhNG1URcXCAvard_IZf1Opcu4Ye3mdYapRmfrDjiImWoVRBWPcisoQPteFHMxJm1NrV-bYyiVg9C9aAv9UWtG3T3rFGoBGWh/s400/5.jpg" width="248" /></a></div></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कवि का ह्रदय बहुत ही संवेदनशील और भावुक होता है।वह तो संवेदनाओं का ही वाहक होता है।भला उसे छल प्रपंच की क्या समझ।पर जैसा अक्सर देखा जाता है किसी भी क्षेत्र में यदि आपके दस चाहने वाले है तो हजार आलोचक भी पैदा हो जाते है।मै तो मानता हूँ कि हमारे मित्रों से ज्यादा शुभचिंतक वे हमारे आलोचक होते है जो हर पल हमारी त्रुटीयों को बतलाते है और हम खुद में सुधार करते है।कही ना कही जब ये आलोचक हमारी शिकायत करते है,तो ना चाहते हुये भी हमारे नाम को फैलाते है।</span></div><div style="text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh15w9rm48a7-jCCRyd-i4UEuJnup0_L25MDEwDIPMabLiO-hFsKLp4RW3O3mk0TfO7Bgmde7IMK0MfTCOVGkl8jVzNVS63srq8Qt475QPMZu-9XJVqvKU2k5in3wPGrAl5kHDN_w5_8GKp/s1600/6.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh15w9rm48a7-jCCRyd-i4UEuJnup0_L25MDEwDIPMabLiO-hFsKLp4RW3O3mk0TfO7Bgmde7IMK0MfTCOVGkl8jVzNVS63srq8Qt475QPMZu-9XJVqvKU2k5in3wPGrAl5kHDN_w5_8GKp/s400/6.jpg" width="258" /></a></div></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मेरी उम्र अभी बहुत छोटी है और साथ ही एक साफ्टवेयर इंजीनियर हूँ।ये दोनों पहलू मेरे साहित्य सृजन के मार्ग में हमेशा विरोधाभाष उत्पन्न करते है।बहुत से लोग अक्सर पूछते है कि क्या एक टेक्निकल इंसान कवि हो सकता है?तब बड़ी शालीनता से मेरा जवाब होता है।जब बचपन से लेकर आजतक मेरे संस्कार ज्यों के त्यों मुझमे जिंदा है तो क्या बस चार सालों की इंजीनियरींग की पढ़ाई के बाद मै परिवर्तित हो जाऊँगा।ऐसा नहीं है मै आज भले ही दुनिया की बाह्य रंगों में रंगा हुआ हूँ पर दिल से ताउम्र एक आध्यात्मिक विचारधारा से भरा,जमीन से जुड़ा इंसान हूँ।क्योंकि मैने जीवन में अनुभव किये है,इसलिये उस परमशक्ति पर अटल विश्वास भी करता हूँ।इस संदर्भ में महान साहित्यकार प्रेमचंद जी ने कहा है "साहित्य ह्रदय की वस्तु है,ना कि मस्तिष्क की।जहाँ सारे उपदेश और ज्ञान असफल हो जाते है,वहाँ साहित्य बाजी मार जाता है।"जरुरी नहीं कि कवि या साहित्यकार होने के लिये हमारे पास अथाह का ज्ञान का सागर हो बस भावनाओं की दो बूँद ही काव्य सृजन की नींव है।</span></div><div style="text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhypFzFISgFD_5OiZkEQFDLkt_P1PWDxzMkAuP9Dlk4Y-WvBRQ2QkPNruvPliigzCa7HooSvd581NvgLP807QAJXfkJobpt4g5aMWew9WEheF5R77A2-735syFNHXjAt2klpEpKJ1bAe-qr/s1600/7.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhypFzFISgFD_5OiZkEQFDLkt_P1PWDxzMkAuP9Dlk4Y-WvBRQ2QkPNruvPliigzCa7HooSvd581NvgLP807QAJXfkJobpt4g5aMWew9WEheF5R77A2-735syFNHXjAt2klpEpKJ1bAe-qr/s400/7.jpg" width="252" /></a></div></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कवि हर विषयवस्तु को एक अलग नजरिये से देखता है।ठीक ही कहा गया है "जहाँ ना जाये रवि,वहाँ पहूँचे कवि।"अब सुनिये मै ही अपने जीवन का एक दिलचस्प वाक्या आपको बताता हूँ।मैने चार साल जहाँ से इंजीनियरींग की वह जगह औद्योगिक स्थल होते हुये भी कुछ ज्यादा विकसीत नहीं थी।पर जब पहली बार तकनीकयुक्त महानगर में पहुँचा तो वहाँ के हाव भाव देख अचम्भित रह गया।शुभचिंतको और मित्रों की सलाह से कुछ पहनावा,पोशाक और उठने,बैठने की शैली में परिवर्तन आया।मै धीरे धीरे उस शहर की रंग में रंगने लगा।परंतु वह रंगना बस बाह्य था।अंतरमन तो पहले से ही रंगा हुआ था अध्यात्म और मेरे संस्कारों के रंग में जो मुझे अपने परिवार से मिले थे।चूँकि मेरा ह्रदय भी कवि ह्रदय है तो कुछ पंक्तियाँ इस परिवर्तन पर व्यक्त हो गयी पर कवि की सोच बस उपर तक ना देख गहरे भावों समेट को लायी।शहर के बारे में मेरे द्वारा लिखी कुछ पंक्तियाँ परमशक्ति के प्रति समर्पण के भाव में विलीन हो गई।</span></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,</span></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">संग तेरे ही तुम्हीं में ढ़ल गया हूँ।</span></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कौन सी पहचान मेरी,कौन हूँ मै?</span></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम हो मेरे या मै तेरा हो गया हूँ।</span></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ।"</span></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अंत में अपने सभी पाठकगणों का मै तहे दिल से आभारी हूँ,जिन्होनें हमेशा अंतरजाल पर मेरी कविताओं और आलेखों को सराहा है।आपका प्रोत्साहन ही है जिसके कारण मै आज "टूटते सितारों की उड़ान" काव्य संग्रह" का संपादन कर रहा हूँ।बड़ी ही मश्क्कत और तल्लीनता के साथ मैने २० भावप्रधान कवियों को इस काव्य संग्रह के लिये चुना है।जिनकी भावनायें दिल पर गहरा असर करती है।यह काव्य संग्रह सागर का वह सीप है जिसको मै गोताखोर की तरह गोते लगाकर,प्रतीक्षारत रहकर और संयम के साथ अनमोल मोती स्वरुप प्राप्त किया हूँ।सभी कवियों और कवियत्रीयों को बधाईयाँ देता हूँ साथ ही प्रेरणा के स्त्रोत श्रेष्ठजनों का तहे दिल से आभारी हूँ।</span></div><div style="text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIz5Nk5txtxS1rLznXbvVR0lMj9KY6i4ouo_gDcE-aJd_rZPyQrdeJW3TyXrqIt2vpu-u69rjfwMLqQZ_4vmjJItOLTS3_LN4uYV7SLK4FLhaUhHIlgiei8CgoN-HV5rDo3on_-fbeqtf6/s1600/satyam+shivam+cover+%25284%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIz5Nk5txtxS1rLznXbvVR0lMj9KY6i4ouo_gDcE-aJd_rZPyQrdeJW3TyXrqIt2vpu-u69rjfwMLqQZ_4vmjJItOLTS3_LN4uYV7SLK4FLhaUhHIlgiei8CgoN-HV5rDo3on_-fbeqtf6/s400/satyam+shivam+cover+%25284%2529.jpg" width="258" /></a></div></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"साहित्य प्रेमी संघ" के साहित्य पुष्पों की बगिया के कुछ सुगंधित और मनोहारी पुष्प आप सब के समक्ष प्रस्तुत है।आप जरुर बताये कहाँ तक पहुँची इन काव्य पुष्पों की खुशबु........पहुँची न आपके दिल तक।.........धन्यवाद।</span></div><div style="text-align: center;"><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">Facebook Page At</span></b> <a href="http://www.facebook.com/Tuttesitaronkiudaan" style="font-size: x-large; text-align: left;">http://www.facebook.com/Tuttesitaronkiudaan</a></div></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-40786303583311597032011-11-11T00:29:00.001+05:302011-11-11T00:31:31.683+05:30यादों के आसमान में जगमगाते गुजरे लम्हों के सितारे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अभी अभी जिस वक्त को याद कर रहा हूँ,आज उससे काफी दूर निकल आया हूँ मै।ना अब वैसी स्वच्छंदता है मेरे उन्मादों में और ना ही प्रेम की वैसी स्मृति है आज।आज कई जिम्मेदारियों में दबा दबा सा ख्वाहिशों का वो परिंदा थोड़ी दूर निले गगन में भी उड़ पाने में असमर्थ है।बस भविष्य की कई उम्मीदें और अवसर मुझे मेरे सामने दिख रहे है।काफी व्यस्त हो गया हूँ मै आजकल।पर अपनी व्यस्तता के बावजूद भी मै अक्सर रात में थोड़ा पहले ही अपने बिस्तर पर चला जाता हूँ,ताकि कुछ क्षण तुम्हारी यादों के आसमान में अपने गुजरे सुनहरे लम्हों के सितारों को चमकता देख सकूँ।स्मृति में ही सही पर अब भी तुम रोज मेरे ख्यालों में आती हो,जब जब मै थक कर आँखों को मूँदता हूँ चैन के लिये तुम्हारी यादें मुझे फिर बेचैन कर जाती है और मै कई साल पिछे चला आता हूँ तुम्हारे साथ साथ।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOXdvdkkY069Ih5zELMYhTAF8ddZP3mA0beMciQZvIlEnXrbpGt61sDz_bRecp7Dr0lID0kwEeSTGcMvyAc_kkgEj1-r-QfqPTBlqWZZ-LMfP5qG_tJck4kMzqflzuPgQtG5JY9q3Obw9p/s1600/1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="247" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOXdvdkkY069Ih5zELMYhTAF8ddZP3mA0beMciQZvIlEnXrbpGt61sDz_bRecp7Dr0lID0kwEeSTGcMvyAc_kkgEj1-r-QfqPTBlqWZZ-LMfP5qG_tJck4kMzqflzuPgQtG5JY9q3Obw9p/s320/1.jpg" width="320" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अब माहौल सुकुन का होता है।ना कोई चिंता,ना कोई परवाह और ना ही कोई चाहत किसी और कि तुम्हारे सिवा।अब बस तुम होती हो और मै।ना कोई भूत होता है और ना ही कोई भविष्य।बस वर्तमान की चौखट पर खड़े हम तुम सुनहरे कल के सपने संजोते रहते है।कभी तुम नाराज हो जाती हो मेरी खामोशि से और फिर मै तुम्हें बतलाता हूँ अपनी खामोशि का कारण।शायद कल की व्यस्तता और जीवन के बदले हुये स्वरुप की झलक पा लेता हूँ मै और कभी कभी सोचने लगता हूँ कल के बारे में।हर रात तुम्हारा इंतजार और चाँदनी ओढ़े रात में चाँद के सामने तुम्हारा दीदार।नहीं भूल सकता मै कभी उन गुजरे लम्हों को।बस प्यार,प्यार और प्यार।ना कोई तकलीफ,ना कोई गुस्सा बस प्यार।जिंदगी में पहली बार इतना प्यार पाकर मै बड़ा अधीर हो जाता हूँ।सोचता हूँ क्या है जिंदगी वर्तमान का यह स्नेहाकाश या भविष्य का धुँधला सा वो संघर्षरत जीवन।काश कितना अच्छा होता सब कुछ बस यूँही इसी पल थम जाता और मै प्रेम के उस अनोखे बाढ़ में खुद को प्रवाहीत कर देता तन,मन और जीवन के साथ।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh84FRv31vM_rhJgFaoMhq5Ent1u6p6pqw2zi2TRNtUVuiSfdfj6c0j0u6BR-6z_IcWCRVbFEsKbMPpW-pPbSN-iodguQtJPbXmoTvrQc6Rs-yzXsp6BmZhXGCpjEqVOmT8NKxlsnnhWPqO/s1600/2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="228" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh84FRv31vM_rhJgFaoMhq5Ent1u6p6pqw2zi2TRNtUVuiSfdfj6c0j0u6BR-6z_IcWCRVbFEsKbMPpW-pPbSN-iodguQtJPbXmoTvrQc6Rs-yzXsp6BmZhXGCpjEqVOmT8NKxlsnnhWPqO/s320/2.jpg" width="320" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मौसम का बदलता नजारा और आँखों में बसा अपने प्रेम का सितारा चमकता रहता हर दिन एक नयी मिठास और अपनत्व के संग।अपना रिश्ता धीरे धीरे बहुत ही प्रगाढ़ होता जाता और तुम स्वयं मुझमे विलीन होती जाती किसी स्मृति की कोरी कल्पना सी।अब तुम मेरे सामने ना होती पर तुम्हारा स्मरण हर क्षण मेरे जेहन में बसा होता।कभी मै गीतों में सुनता तुमको तो कभी चाँद में ढ़ूँढ़ता।कभी सपनों में मिल जाती तुम तो कभी दूर गगन से परी सी आती तुम।कई बार पागलपन की हद पार कर जाता मै और बेवजह ढ़ूँढ़ता फिरता तुमको यूँही महफिक महफिल।और जब थक के आँखे मूँदता तो एकाएक तुम सामने आ जाती।हाथ बढ़ाता,छूने की कोशिश करता पर हर बार नाकामी हाथ लगती।व्यस्त रहता पर व्यस्तता में अब भी तुम्हारा स्मरण बड़ा सुकुन देता दिल को।बदल जाता मेरा सारा आवेग और मै फिर शांत हो जाता पहले की तरह।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEim3Nt67TKoflVQ1WvBStK76hpinz-LrQ8AjoC010McB0AZI_hxbWVf4SEvCbgNquIf_XdS7zGI8mE8FJ2R8JWR1nwwnpbxvkiPgfQaGIO7UIkiDgI2x5OVKIeoj0OTckoHFculzZA2vd87/s1600/3.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEim3Nt67TKoflVQ1WvBStK76hpinz-LrQ8AjoC010McB0AZI_hxbWVf4SEvCbgNquIf_XdS7zGI8mE8FJ2R8JWR1nwwnpbxvkiPgfQaGIO7UIkiDgI2x5OVKIeoj0OTckoHFculzZA2vd87/s320/3.jpg" width="317" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">आज यूँही छुट्टी के दिन अपनी डायरी पलटता रहा और यादों के आसमान में जगमगाते गुजरे लम्हों के सितारों को निहारता रहा।एक खाश तारिख ने एकाएक मुझे चौंका दिया।पता नहीं यह कैसा संयोग था कि बार बार बिछड़ कर हम उस रोज मिल जाते थे।पर इस बार किसी सम्भावना की गुजारिश ना थी क्योंकि अब शायद वो खाश तारिख भी सामान्य सा प्रतीत होने लगा था।उस डायरी में तुम्हारे लिये लिखे हुये मेरे बहुत से प्रेम पत्र थे जो अब तक तुम तक ना पहुँच पाये थे और ना ही मै ही कभी कह सका था उन बातों को तुमसे।वे बातें अकेले में हमेशा मुझसे पूछते "क्या है असमर्थता तुम्हारी?" आखिर क्यूँ ना कह सका तू वो बात अब तक जो न जाने कब से तूने अपने डायरी में लिख रखा है।और मै बस उन्हें ये ही कह पाता "कह दूँगा उसे उस रोज जब वो मेरी खामोशि को भी सुन लेगी।" और मेरे शब्द मेरी निःशब्दता से कुंठित होकर बस पन्नों से झाँकते रहते।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjM8b0bZKo1Fghm6Y1U-cPywD1mC5-aA9nlChXkrOZ08qA5Z1pfWFvNcHTV-MmkpFqowtQZ_9SfVZfceD8lIr65yEmN6COmPtfSdStThpQLctTSx-snUNKiAEuLT6vb5r0qNYrKRZp7ywIH/s1600/4.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="207" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjM8b0bZKo1Fghm6Y1U-cPywD1mC5-aA9nlChXkrOZ08qA5Z1pfWFvNcHTV-MmkpFqowtQZ_9SfVZfceD8lIr65yEmN6COmPtfSdStThpQLctTSx-snUNKiAEuLT6vb5r0qNYrKRZp7ywIH/s320/4.jpg" width="320" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुमसे दूर जाने के बाद क्या पाया मैने?तुमको खो देने के बाद और क्या खोना है मुझे?तुम थी तो बहुत कुछ था खोने को और पाने को भी।पर अब ना तुम हो और ना ही कुछ खोना और पाना।तुम शायद खुश हो मुझसे दूर होकर और मै अब भी बस बेचैन।तुम्हारी खुशी का कारण है तुम्हारी निश्चिंतता क्योंकि तुम जानती हो मै अपनी मजबूरियों में कुछ सीमित सा हो गया हूँ।पर मेरी बेचैनी का एकमात्र कारण है तुमसे मेरा अलगाव।शायद तुम जानती हो मै तुमसे दूर नहीं रह सकता।पर क्या करुँ समय के सामने मजबूर खड़ा हूँ।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcPDdw3SWa-4L8WyBad2E1o97l3XFY0kUzQVEMmJjj6gaO_RZpBoR5G23Dlsx5Yx0t_Otl_iJ8hsWpJZ607g6zuiXwpky3z8yRg6hwFjtLBc3dHlg1NodE7n4YPMyyN-fC-vDcpDxsb9_8/s1600/5.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcPDdw3SWa-4L8WyBad2E1o97l3XFY0kUzQVEMmJjj6gaO_RZpBoR5G23Dlsx5Yx0t_Otl_iJ8hsWpJZ607g6zuiXwpky3z8yRg6hwFjtLBc3dHlg1NodE7n4YPMyyN-fC-vDcpDxsb9_8/s320/5.jpg" width="239" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कल रात सारी चिंताओं को भूलाकर और अपनी व्यस्त दिनचर्या से निजात पाने के लिये मै स्वच्छंदता से यादों के आसमान में आया था गुजरे लम्हों के कुछ सितारों को छूने के लिये।कुछ सितारों को मुट्ठी में कैद करना चाहता था जो सुनहरे लम्हें मेरी जिंदगी की कहानी कहते थे।हर एक लम्हें में तुम साथ थी मेरे और मै निर्भिक होकर देखता तुमको।कुछ सितारों की चमक मद्धम थी क्योंकि तुम नहीं थी उनमें और मै तुम्हारा इंतजार कर रहा था।कुछ सितारा आसमान में सबसे ऊँचाई पर चमक रहा था।वह शायद अपने गुजरे प्यार भरे अतीत के सबसे स्वर्णिम क्षणों को व्यक्त कर रहा था।वे सारे मंजर मैने आज भी कैद कर के रखे है अपनी आँखों में।कभी तुम आओ और मेरी आँखों में झाँक कर देख लो "यादों के आसमान में जगमगाते गुजरे लम्हों के सितारे।" </span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-3736047504145814162011-09-10T17:57:00.003+05:302011-09-10T22:45:40.956+05:30तर्क,विश्वास के धरातल पर शंका की लकीरें है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कौन हो तुम?मै नहीं जानता तुम्हें या शायद जानना ही नहीं चाहता।मुझे तो बस "मै" बन कर रहना है,"तुम" नहीं बनना।ऐसी भावनाओं में घिरा आज का मनुष्य स्वयं पोषित करता है स्वयं के अभिमान को।वह नहीं चाहता शाश्वत को जानना,वह तो बस अपने द्वारा बनाये गये स्वयं की कृत्रिम नगरी में आजीवन रहना चाहता है।सांसारिक ज्ञान को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर स्वयं को सर्वस्व मान लेना ही हमारा पतन के द्वार में प्रथम प्रवेश है।हर चीज को तर्क की कसौटी पर परखता है और स्वयं के गुरुर में मदमस्त मानव सर्वशक्तिमान परमात्मा की अद्भूत सता को भी नकार बैठता है।उसका "मै" ईश्वरीय सता के समक्ष भी नतमस्तक नहीं हो पाता और तर्क की धुरी पर जीवनयापन करता एक दिन स्वयं का अस्तित्व भी खो बैठता है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhSCJvmQ1_r8-WtiVbRyCSEChOEusL41lANx08ml0jTjcwYZ1xXytdUzJvFcaGh-kt83Z1c7GGqqDLV9SfSrCcnCoRWPEDa6i08eWLam0zrvzz-AcHzKH5MXsBd1fjgeRS1yN8s1J6RDxRF/s1600/tumblr_lir5olq5WP1qc01tho1_500.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="219" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhSCJvmQ1_r8-WtiVbRyCSEChOEusL41lANx08ml0jTjcwYZ1xXytdUzJvFcaGh-kt83Z1c7GGqqDLV9SfSrCcnCoRWPEDa6i08eWLam0zrvzz-AcHzKH5MXsBd1fjgeRS1yN8s1J6RDxRF/s320/tumblr_lir5olq5WP1qc01tho1_500.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जहाँ सम्पूर्ण विश्वास है और आत्मिक समर्पण है,वहाँ किसी भी प्रकार के किसी तर्क की कोई जगह ही नहीं।क्योंकि वहाँ मै स्वयं को परमात्मा के प्रकाश में लोपित कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है।वहाँ ना ही कोई शंका भाव होती है और ना ही कोई भय।निर्भिक होकर स्वयं आत्मा,परमात्मा की आधारभूत सता में लीन हो जाती है।वही अवस्था जीवन का अंतिम पड़ाव होता है।वहाँ सारी सांसारिक ईच्छायें और आकांक्षायें नष्ट हो जाती है।बस एक प्रकाशपुन्ज ही दृष्टिगोचर होता है,जो हर भाव से परे और शाश्वत होता है।विश्वास तभी जगता है,जब संतुष्टि मिलती है।जब यह लगने लगता है कि यह कार्य मुझे संतुष्टि प्रदान कर रही है।तब वहाँ विश्वास के धरातल का निर्माण होता है।विश्वास के धरातल पर ही सृष्टि की कल्पना संभव है।जहाँ संदेह है अगर थोड़ा सा भी तो आत्मिक संतुष्टि नहीं है।एक भय का आवरण है जो हर पल प्रेषित करता रहता है तर्क की इच्छा।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkYzduB4SUIVB33VoYMnzwncnw_gfhRhxm7n28RXDZRDBK3B7u-kAagICgcWNHzy0bY1_PWiVPCgXnTF-qbGW-8vPJFuy5dAGgI5S88iAMZjN-oyNcyCKmQLCw7bkxyMThJ9fGjjd-XQ1R/s1600/mc2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkYzduB4SUIVB33VoYMnzwncnw_gfhRhxm7n28RXDZRDBK3B7u-kAagICgcWNHzy0bY1_PWiVPCgXnTF-qbGW-8vPJFuy5dAGgI5S88iAMZjN-oyNcyCKmQLCw7bkxyMThJ9fGjjd-XQ1R/s320/mc2.jpg" width="225" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तर्क मनुष्य स्वयं के अभिमान को पोषित करने हेतु करता है या उस सर्वशक्तिमान को नकारने के लिए।क्योंकि तर्क और समर्पण के भाव बिल्कुल एक दूसरे के विपरीत है।जहाँ समर्पण में स्वयं का सर्वस्व पूर्णरुपेण इश्वर को समर्पित होता है और खुद की बागडोर परमात्मा के हाथों में।वही तर्क के भाव में बस दूरी का एहसास होता है,स्वयं का उस ईश्वर से।कहते है कि "जब तक आंतरिक मन पूरी तरह रम नहीं जाता परमात्मा के नशे में तब तक ईश्वर रुपी राम का सान्निध्य संभव नहीं।"मीरा की तरह बेसुध होना होगा,तब तो कान्हा हर पल साथ होंगे।साथ ही स्वयं को भूल कर बस अपने आधार के अस्तित्व में स्वयं का अस्तित्व देखना होगा।तब ही इस सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिल सकती है।वरना अपने अभिमान को पोषित करते रहो और बार बार जन्म,मरण के बंधनों में फँसे हुये हर बार आकर इस संसार में अपने कुकर्मों के लेखा जोखा का विस्तार करते रहो।यह जीवन का सार नहीं है।यह तो मायाजाल का वह भँवर है,जो कभी भी नहीं चाहता कि तुम इससे बाहर हो जाओ।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEguNUAUMsrAh8m4Zi-IYrNrGrVy1gZ43qUTBTssUoMd_AYSFOWMgQG_Rl9PQIVNnpc0gBYz05zzIjJAbZHeHpROncd8OcGV1YNqNV_iIdV6GuG0wMechdW86hdO8Z5VaIpFA-ZdKu8dkxYo/s1600/alter_ego_sm.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="229" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEguNUAUMsrAh8m4Zi-IYrNrGrVy1gZ43qUTBTssUoMd_AYSFOWMgQG_Rl9PQIVNnpc0gBYz05zzIjJAbZHeHpROncd8OcGV1YNqNV_iIdV6GuG0wMechdW86hdO8Z5VaIpFA-ZdKu8dkxYo/s320/alter_ego_sm.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कलियुग में आज कई ऐसी मानसिकताओं ने धर कर लिया है,जो हर पल मानव की क्रूरता और पाश्विकता को चिन्हित करती है।व्यक्ति तर्क कब करता है जब वह कमजोर होता है।जब उसे ये एहसास होता है कि मेरे अहंकार की अब पराजय हो सकती है,वह तर्क का सहारा लेता है।और अपने सांसारिक धागों में पिरोये कृत्रिम बातों का हार पहनाकर स्वयं को विजयी घोषित करता है।कहते है "मौन अनंत की भाषा है।"ज्ञानी पुरुष ज्यादा नहीं बोलते ना ही वो कोई तर्क करते है।क्योंकि उन्हें यह ज्ञात होता है कि सच क्या है और मिथ्या क्या।वे शंका या संदेह के किसी दोराहे पे खड़े नहीं होते है।उन्हें तो शाश्वत सत्य का पता होता है।वो तो बस सामने वाले के तर्क को चुपचाप सुनते रहते है और उसकी दैनिय दशा पर तरस खाते है।वो जानते है कि बेचारा उलझा हुआ है स्वयं में।वह जिस सांसारिकता को सत्य मान कर उसका पक्ष ले रहा है।वही सांसारिकता एक दिन उसके अंत के समय मृत्यु शैय्या का कार्य करेगी।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGzgzsOqKYfYbFnElneP6gfq5XwCTGa1kS8wPgCdaALLLNlhmNWKujttVvsr2mf6QIxNaydo3DDHHu4-cz7cdV0Inuzft-kQqEQEDYSPU34EhAyuOLjjUHE-qH6PbduJLNn52F7X1p9Bl2/s1600/pollockandblankcanvas.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGzgzsOqKYfYbFnElneP6gfq5XwCTGa1kS8wPgCdaALLLNlhmNWKujttVvsr2mf6QIxNaydo3DDHHu4-cz7cdV0Inuzft-kQqEQEDYSPU34EhAyuOLjjUHE-qH6PbduJLNn52F7X1p9Bl2/s320/pollockandblankcanvas.jpg" width="219" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तार्किक व्यक्ति कहता है "मन चंगा तो कठौती में गंगा।"पर मेरा कहना है इन पंक्तियों की सार्थकता तभी है जब आप रैदास है।और आपका मन वैसा ही निर्मल और स्वच्छ है।वरना यह तर्क निराधार है,जिसकी कोई भी धारणा नहीं।हाँ अगर तुम तर्क से विवेकानन्द बन जाओ तो तर्क करो।पर उस तर्क में भी विवेकानन्द की तरह सत्य के खोज की प्रबल इच्छाशक्ति होनी चाहिये।वह तर्क ऐसा हो जो तुम्हारे हर शंकाओं का समाधान कर सके ना कि स्वयं के अभिमान को पोषित करता रहे।"तर्क विश्वास के धरातल पर शंका की लकीरें है।"जब तक तर्क है तब तक हमारा परमात्मा से कोई समपर्क नहीं।क्योंकि ईश्वर उसे बस एक पल में "आई गो" कह देता है जिसमें उसका अभिमान "इगो" भरा होता है।तब तक विश्वास के धरातल पर समर्पण के बीज अंकुरित नहीं हो सकते जब तक कि तर्क द्वारा शंका की लकीरें धरातल को कमजोर करती रहे।स्वयं को भूल उसका हो जाना ही समर्पण है।और उसको भूल स्वयं के अभिमान को पोषित करने का एक जरिया है तर्क।जबकि हास्यास्पद बात यह है,कि जिस स्वयं को जीवित रखने हेतु तर्क की मानसिकता का जन्म होता है।उस "स्वयं" का अपना कोई अस्तित्व ही नहीं। </span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-48616612645727440452011-08-26T17:56:00.003+05:302011-08-26T18:03:44.116+05:30ढ़ूँढ़ रहा हूँ अपने दर्द की कोई शक्ल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">वह स्पर्श भूला नहीं हूँ मै या शायद मेरे जेहन में इस कदर समा गया है वो कि उससे विरक्ति स्वयं से वैराग जैसा है।दूर से आती हुई मदमस्त पवन हौले से मेरे कानों में कुछ कहती है और हर बार सुनने की कोशिश में उस स्पर्श का स्मरण हो आता है जो हुआ था मुझको उस पल जब तुम दूर थी मुझसे।वह स्पर्श शायद मेरे दर्द के मंजरो को खुद में समेटे हुये है।ज्यों छुता है मुझे सारा शरीर अद्भूत स्पंदन से कंपित हो उठता है।ह्रदय की झंकारों में एक नयी वेग का आगमन होता है जो बहा ले जाता है उन सभी यादों को जिन्हें न जाने कब से ह्रदय में कैद कर के मै खुद को निश्चिंत समझ बैठा था।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhrtjn1vXa4P-l9niWzKll0pWr3yoqwNb5ohyphenhyphenfWSXaVKOuVAbJ2-VhKZFf9algz-i0yR5zw5ALt8h-mF5wpPyR6j8Jf_DMdEWS4CqINGweGOA8divHbgNc2Fr9cTc15rFHU2qrPyE63_Hi/s1600/the_face_of_pain_by_larainjp-d3i3z2j.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhrtjn1vXa4P-l9niWzKll0pWr3yoqwNb5ohyphenhyphenfWSXaVKOuVAbJ2-VhKZFf9algz-i0yR5zw5ALt8h-mF5wpPyR6j8Jf_DMdEWS4CqINGweGOA8divHbgNc2Fr9cTc15rFHU2qrPyE63_Hi/s320/the_face_of_pain_by_larainjp-d3i3z2j.jpg" width="252" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">खुद से हार कर आज पेश करना चाहता हूँ अपने दर्द को तुम्हारे समीप।जिससे तुम्हें भी दर्द की शक्ल में अपनी परछायी दिख जाये और एहसास हो इसी बहाने मेरे अर्थपूर्ण दिवानेपन का।दर्द को आकार देना शायद थोड़ा मुश्किल है मेरे लिए क्योंकि जब तुम दूर होती हो तो विरह लगन में तपता हुआ सिकुड़ जाता है वो और जब पास आती हो तो तुम्हें खुद में अभिव्यक्त करने की असमर्थता से व्याकुल होकर अपना आयाम बढ़ाने की ललक में फैल जाता है।कभी यह दर्द मेरी आवाज में घुल जाता है,तो कभी नैनों में अश्रु बन नजर आता है।पर हर बार अपनी भिन्न भिन्न रुपों के संग यह मेरे ह्रदय पर आघात करता रहता है।कही ऐसा ना हो कि इस दर्द को शक्ल देता देता मै खुद अपनी स्वयं की शक्ल ही खो बैठूँ और दर्द का एक गुबार बन कर सहेज लूँ स्वयं में विरह और प्रणय के हर एक उस क्षण को जिसमें दर्द की सर्द रातों का अँधेरा मेरे भविष्य के सभी रास्तों को गुमशुदा कर दे।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiXTiJKW2mdu5PS-cfCQV0X0WdgIt9ziCrm7L9kdSiT2dBiq8M41y6XUrS_FDyLou2UiNRqrcVyMz6wMsrOlZR7-N70aKMB6xp9I270pnUxvLZ2kYJUlSR8ELDRqLd6gQ0Vr77TzBrTa5cZ/s1600/stillpainting.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="258" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiXTiJKW2mdu5PS-cfCQV0X0WdgIt9ziCrm7L9kdSiT2dBiq8M41y6XUrS_FDyLou2UiNRqrcVyMz6wMsrOlZR7-N70aKMB6xp9I270pnUxvLZ2kYJUlSR8ELDRqLd6gQ0Vr77TzBrTa5cZ/s320/stillpainting.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">बिल्कुल अकेला हूँ मै आज अपने कमरे में खुद के संग।रात की चादर ओढ़े बादलों का झुंड भी आज अपना दर्द बयां कर रहा है।सामने प्याले में रखी हुई है मेरे दर्द की दवा।पर न जाने क्यों वह दवा भी मुझे किसी मर्ज सी लग रही है आज।शराब को कैसे कराऊँ स्पर्श अपने उन होंठों का जिनपर बस तुम्हारा अधिकार है।तुमने ही शायद सौंपा था इन्हें रस की अनंत प्यालियाँ जिनकी तृप्ति मधु की इन प्यालियों में कहाँ?ये तो प्यासा ही छोड़ देंगे बीच राह में मुझे।पर तुम्हारे होंठों का वह मादक रसपान आज भी अंदर तक कही तृप्ति का एहसास कराता है मुझे।सोचता हूँ क्या करुँ,क्या ना करुँ?पर स्मरण में भी तुम्हारे स्पर्श का सुख मुझे संकोचित कर देता है ऐसा करने से।शायद कुछ दबा हुआ है इन यादों के साये में जिन पर तुम्हारा अक्स अब भी चिन्हीत हो रहा है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNKr2TZnJ5aNz-LfyQuu2SYCN6Rw58_-1M7-N0gyyCcjvaXYbBtzdZGSH5ZLMpYPSzjePmDeFwKA1FCp7lr3Zm-TY3WXMWE1VGSl4Ro7kiRRLIYXWk3RDebDyF0woa30jSnkBocBlApzZT/s1600/Bierstadt++Mt.+Rosalie.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="186" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNKr2TZnJ5aNz-LfyQuu2SYCN6Rw58_-1M7-N0gyyCcjvaXYbBtzdZGSH5ZLMpYPSzjePmDeFwKA1FCp7lr3Zm-TY3WXMWE1VGSl4Ro7kiRRLIYXWk3RDebDyF0woa30jSnkBocBlApzZT/s320/Bierstadt++Mt.+Rosalie.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हिमगिरी के हिम पिघल कर जलकण बनते जा रहे है और मेरे दर्द का हिमखण्ड आँखों से आँसू बन बरस रहा है।पर अपने खारेपन के कारण वह भी असमर्थ है मेरी प्यास बुझा पाने में।सागर के इतने पास होकर भी मै कितना प्यासा हूँ यह तो शायद मेरी प्यास को ही पता है।यह प्यास भी मेरे दर्द की ही एक शक्ल है,जो तुम्हारे सान्निध्य से ही बुझ सकती है।पता है तुम्हारा स्पर्श बस मेरे तन को नहीं झकझोरता बल्कि रुह को भी एक पल अचेतन सा बना देता है और कुछ पल शीथिल बना यह मुकदर्शक की तरह स्वयं की पीड़ित अवस्था को देखता रहता है और सोचने को विवश हो जाता है,कि क्या यह मेरे दर्द की कोई शक्ल है या मेरे शक्ल में ही दर्द का अक्स छुपा हुआ है।दर्द का पर्वत बन गया हूँ मै तुम बिन और यह तुम्हारे पास से आने वाली हर एक यादों की हवाओं से टकरा कर कमजोर होता जा रहा है दिन पर दिन।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7fa-xmZ-35Ue0Gmpafd6NeSq_SjTUoxaKycLhZFoJx-N8ffaudmNDYk-dUxeccXD3NBwhJqouP3ce2PP6Y8KK9K2-LZdzj9WS4d0evkv6N03zuB9FVKp8PVssDNHvshNfV7UADpII-cdI/s1600/finished-dont-love-painting-mcr--large-msg-120475395122.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7fa-xmZ-35Ue0Gmpafd6NeSq_SjTUoxaKycLhZFoJx-N8ffaudmNDYk-dUxeccXD3NBwhJqouP3ce2PP6Y8KK9K2-LZdzj9WS4d0evkv6N03zuB9FVKp8PVssDNHvshNfV7UADpII-cdI/s320/finished-dont-love-painting-mcr--large-msg-120475395122.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">घुल गयी है पीड़ा की कुछ सर्द लकीरें मेरे अंतरमन में और उन लकीरों में अब भी छुपा है अपना कल जो अक्सर मेरे ख्वाबों में आता था और मै तभी तुम्हें यह बताने की कोशिश करता और हर बार जाग जाता था।सागर की गहराईयों में बहती मेरे दर्द की कस्तियाँ कही मझदार में जाकर असमर्थ हो तुम्हें पुकारती है और तुम किसी किनारे सा आश्रय देती हो उन्हें।तुम्हारे पास होते हुये मुझे ऐसा एहसास होता जैसे ये पल अब यूँही थम गया है।एक पल भी आगे नहीं बढ़ेगा पर एकाएक जब मेरी हथेली खाली होती और तुम दूर चली गयी होती हो तो इन हथेलियों पर बस आँसूओं की दो बूँद ही नजर आती है।अपने दर्द को शक्ल देते देते मै अब थक सा गया हूँ।जैसे मानों वजनदार चीज को खुद में कही धारण किये चला रहा हूँ न जाने कब से।अब जब तुम नहीं हो पास तब मै चाहता हूँ सारा वजन दिल का हल्का कर लूँ और अकेला कमरे में खुद से बातें करता करता सारे राज खोल दूँ मै अपने सामने जो कब से दिल की गहराईयों में दफन थे।शायद कही कोई राज छुपाये हो खुद में मेरी दर्द की शक्ल का कोई स्वरुप।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-44378724922441398472011-08-14T16:32:00.003+05:302011-08-14T17:02:49.614+05:30"मै अब तुमसे भी बड़ा हो गया-माँ"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कोमल भावनाओं की जितनी भी अभिव्यक्तियाँ मेरे अंतरमन में समायी है,वो सब तुम्हीं से पाया है मैने।तुम्हीं ने आभास कराया है मुझे मेरे अस्तित्व का और सौंपा है मुझे मेरा वजूद।तुम्हारे बिना मै स्वयं की कल्पना भी नहीं कर सकता माँ।माँ मेरी कोई भी पहचान बस तुम तक ही सीमित है।आज भले बहुत बड़ा हो गया हूँ मै पर तुम्हारे स्नेह और आशीर्वाद के बिना सब कुछ व्यर्थ है।ये देखो ना माँ मै कितना लम्बा हो गया हूँ।तुम तो मेरे सामने छोटी हो गयी माँ।बचपन में तुम मेरी उँगलियों पर हाथ रखकर कहती बेटा तुम्हें इतना बड़ा होना है।और आज सच में मै तुमसे बड़ा हो गया माँ।कल तक दो कदम भी चलने को जिन छोटे छोटे हाथों को तुम्हारी हाथों की जरुरत पड़ती थी।वो आज खुद चल रहा है माँ।सच में मै तुमसे भी बड़ा हो गया माँ।बहुत बड़ा जिसमें शायद तुम बहुत छोटी हो गयी हो और अब तुमसे दूर रहते रहते शायद याद भी नहीं करता मै तुमको।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcFofeHW8luoI0Fr9JzOXiKLpypqwIdc25DuUIv60sODQQwlJ8LFg3zDUlSPoGMoQ3Fuy5ukLsF5NwxvD_xgHyCnVHyhkeaDqy8yrvtW6DrTNR0QDe02K03bIYwQZ_fyG4mu54ndXfslAw/s1600/Baby-Jesus-Christ-Mobile-Pictures-0708.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcFofeHW8luoI0Fr9JzOXiKLpypqwIdc25DuUIv60sODQQwlJ8LFg3zDUlSPoGMoQ3Fuy5ukLsF5NwxvD_xgHyCnVHyhkeaDqy8yrvtW6DrTNR0QDe02K03bIYwQZ_fyG4mu54ndXfslAw/s320/Baby-Jesus-Christ-Mobile-Pictures-0708.jpg" width="240" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अक्सर तुमको चिंता होती मेरे बारे में।अक्सर तुम मेरे अच्छे के लिएँ सोचती और मै तुम्हारी इस चिंता को कमजोरी समझ हर बार तुम्हारा दिल दुखा देता।मुझे लगता कि मुझे खुद से दूर कर के अपने दिल से भी दूर कर दिया है तुमने।पर यह कभी ना समझ पाया कि हर पल जो मेरे दिल में धड़कन बन कर धड़कती रहती है।वो तो तुम्हीं हो माँ।जो हर पल मेरे साथ होती और जब कोई परेशानी होती तो बस दिल पर हाथ रख देता और सुकुन मिल जाता मुझे।कभी कभी जब अकेला होता और दुनियादारी को कुछ पल पिछे छोड़ खुद के बारे में सोचता।तो मुझे मेरे हर एक विचार में मुस्कुराती,प्यार से अपने पास बुलाती तुम ही नजर आ जाती माँ।जो शायद मेरी सारी गलतियों को माफ कर फिर से मुझे अपनी ममता के स्नेहाकाश में चैन और सुकुन देती।मै गुनहगार हूँ आज माँ तेरा और तेरी ममता का।क्योंकि मैने हर बार बस तुम्हारे प्यार के बदले तुम्हारा दिल दुखाया है।और अपने वर्चस्व की लड़ाई में हर बार हारा हूँ मै तुम्हें जलील कर खुद से।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgarBSMPECJPry_XOioHVKRg6Z8UWDCr8WO54Zq38merRkT5HkaP7rji6sfLReCh2MzA7FUkuRPxZf3pvV5Cg6mSnQdJdlmLhXAgMDfYTSoJdgQMoJxWb18m9_tt52huP2pQ36BvohvZAzg/s1600/cB5T.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="252" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgarBSMPECJPry_XOioHVKRg6Z8UWDCr8WO54Zq38merRkT5HkaP7rji6sfLReCh2MzA7FUkuRPxZf3pvV5Cg6mSnQdJdlmLhXAgMDfYTSoJdgQMoJxWb18m9_tt52huP2pQ36BvohvZAzg/s320/cB5T.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कल जब तुम्हारी भेजी हुई तस्वीरों को देख रहा था।एकाएक तुम्हारी तस्वीर पर नजर रुक गयी।मै मायूस हो गया माँ।ये देखकर कि तुम्हारे कोमल प्रफुल्लित चेहरे पर झुर्रिया आने लगी है।क्या माँ मै इतना बड़ा हो गया कि तू बूढ़ी हो गयी।नहीं माँ मै अभी भी तुम्हारा छोटा सा लाडला बन कर ही रहना चाहता हूँ।मै रोक दूँगा वक्त के सारे पहियों को,मै थाम लूँगा हर एक उस लम्हें को जिसमें तुम्हारी गोद में खेलता मै नन्हा सा हूँ।मै तुम्हें उम्र के परावों में उलझने नहीं दूँगा।पता है माँ मुझे तुम्हारे चेहरे पर मायूसी का कोई भी भाव तनिक भी नहीं सुहाता है।क्यों मायूस हो तुम?क्या चिंता है तुम्हारी?यही न कि मै अच्छा बन जाऊँ और जिन्दगी भर खुश रहूँ।तू चिंता मत कर माँ मै तुम्हारे सभी अरमानों को पँख देकर एक दिन व्योम की सैर जरुर करवाऊँगा।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1_9axZDQoye066vKHa7uw-AJIWZbPaa8NkQ1MzjdctEJQo7xaQ_7Fj-Y1-1cRzclnjorBN8taYBRdkjXthBNoldN8ndhoH0IEA9YEME12RidzgDFQhOoeG259gfsk4QIfZLglyDmOUVqc/s1600/Jayne-and-Addy.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="257" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1_9axZDQoye066vKHa7uw-AJIWZbPaa8NkQ1MzjdctEJQo7xaQ_7Fj-Y1-1cRzclnjorBN8taYBRdkjXthBNoldN8ndhoH0IEA9YEME12RidzgDFQhOoeG259gfsk4QIfZLglyDmOUVqc/s320/Jayne-and-Addy.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">उलझनों में उलझी मेरी जिन्दगी नहीं देती है समय खुद के बारे में सोचने की भी और एक तू है जो खुद के बारे में कभी नहीं सोचती बस मेरे बारे में सोचती है।माँ आज एक बात मेरे दिल में है,जो मुझे तुमसे कहनी है।मत रुठना कभी अपने लाडले से माँ।तुम रुठ जाती हो जब तो बहुत बुरा लगता है।पता है तुमको पूरे दिन इंतजार करता हूँ कि कब तुमसे बात होगी और मै ये बताऊँगा ,वो बताऊँगा।और बस तुमसे बात कर लेता हूँ सच में आत्मा को संतुष्टि मिल जाती है।सब कहते है कि अब तू बड़ा हो गया है।छोटा बच्चा नहीं जो हर छोटी बड़ी बात माँ से बताता है।पर उन्हें क्या पता मै आज भी तेरे सामने कितना छोटा हूँ।एक तू ही तो है सारी दुनिया में माँ जिसकी हर एक बात में बस "हाँ" है मेरे लिये।जिसकी सारी खुशियों की मँजिल बस मै हूँ,बस मै।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlaJZbMGDzQCqTvtlZY5LyyDnKASdFw8xn2_8YuQ4tIP1d2kMy7o5t3pGpRgXqjwGc0GmBd5Bt-i5HetV7NtfaWFxAPBEIS0AWsm__0OyhyphenhyphenruhVrJfiWsgqFd2RpMx7XiGfEA2KZb9CrFx/s1600/grieve-alone1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlaJZbMGDzQCqTvtlZY5LyyDnKASdFw8xn2_8YuQ4tIP1d2kMy7o5t3pGpRgXqjwGc0GmBd5Bt-i5HetV7NtfaWFxAPBEIS0AWsm__0OyhyphenhyphenruhVrJfiWsgqFd2RpMx7XiGfEA2KZb9CrFx/s320/grieve-alone1.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कभी कभी बहुत डर जाता हूँ यह सोच कि क्या होगा मेरा कल जब तू ना होगी।माँ सच में बहुत अकेला हो जाऊँगा मै।तुम्हारे बिन किससे झगरुँगा माँ?तुम्हारे बिना किससे अपनी छोटी बड़ी हर बात कहूँगा मै?कौन होगा अब बस मेरे बारे में सोचने वाला?किसकी आँचल में सबकुछ भूल बस चैन की नींद सोता रहूँगा?किसकी गोद में रहकर मुझे स्वर्ग की शानोशौकत भी फीकी लगेगी?घर पहुँच कर बड़े दिन बाद किससे मिलने की बेसब्री होगी?अब ना कोई इंतजार होगा तुम्हारी किसी फोन का और ना ही तुम्हारी प्यारी सी आवाज सुन पाऊँगा मै।बस अपनी धड़कनों में तुझे महसूस कर थोड़ा सुकुन मिलेगा तुम्हारे साथ होने का पर अगले ही पल तुम्हें सामने ना देख कर इन आँसूओं को कैसे रोक पाऊँगा मै?तुम्हीं कहो ना माँ क्या करुँगा मै?इसलिए माँ आज कुछ माँगना चाहता हूँ तुमसे कि बस हरदम यूँही अपने आँचल की ओट में छुपाये रख मुझे।बाहरी दुनिया में दम घुटने लगता है मेरा।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">समय का चक्र निरंतर बढ़ता बढ़ता जाने कहा से कहा लेकर आया है हमे।कल तक एक पल भी तुमसे दूर नहीं रह पाता था मै और आज न जाने कितने सालों से दूर हूँ तुमसे।हर वो उमंग त्योंहारों का और उत्साह अपनों के साथ होने का भूलता जा रहा हूँ मै।वक्त के दरिया ने बीच मझदार में लाकर बिल्कुल अकेला छोड़ दिया है मुझे।कोई किनारा नजर ही नहीं आता।कुछ पाने की चाहत में सब कुछ गँवाता हुआ मै कैसा बन गया हूँ समझ ही नहीं आता।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLZGAOKR6IHxno3CHSfckko5JDxdbfbP1GAL9WEjjJ03fOYJqpXTXzhXfDA0JCSnUCx2nqW_HHrDgwNkCrwi40tm-6Ey5g22L5kAfv4JnpSmhEEuOZC79z3yrnjnUoOtFwkGs-3eoVKLJz/s1600/Mother_and_Child_by_Krrow-690x552.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="256" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLZGAOKR6IHxno3CHSfckko5JDxdbfbP1GAL9WEjjJ03fOYJqpXTXzhXfDA0JCSnUCx2nqW_HHrDgwNkCrwi40tm-6Ey5g22L5kAfv4JnpSmhEEuOZC79z3yrnjnUoOtFwkGs-3eoVKLJz/s320/Mother_and_Child_by_Krrow-690x552.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">निःशब्द हूँ तुम्हारे समक्ष आज अपनी भावनाओं की चिता जला कर,दुनियादारी के बोझ तले दब गया हूँ मै।माँ आज फिर मुझे तेरे उन ऊँगलियों की जरुरत है,जो बचपन में मुझे चलना सिखाती थी।मुझे आज फिर तेरी उस मुस्कुराहट की जरुरत है,जो मुझे निश्चिंत कर देती थी कि हो ना हो मै जो भी कर रहा हूँ सही कर रहा हूँ।आज तेरी याद ने मुझे याद दिलाया मेरे खुद के होने का।क्योंकि बड़े दिन हो गये थे मेरे खोये हुये।न जाने किन पगडंडियों से होता हुआ किस जर्जर सी झोपड़ी में रहने लगा था मै जो बाहर से बड़ा सुनहरा दिखता था पर अंदर कुछ नहीं था।माँ आज भले मै तुमसे कद में काफी बड़ा हो गया हूँ पर अब भी मेरा बचपन जिंदा है मुझमें जो मुझे तेरी ममतामयी मूरत का आभास कराता है।और हर रोज तेरी इस ममतामयी मूरत को अपने आँसूओं के दो फूल चढ़ा आता हूँ मै आज भी। </span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-2921790784140134672011-08-03T18:22:00.002+05:302011-08-03T18:26:02.524+05:30शायद किसी जन्म में हम मिले थे कभी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मन कभी बिल्कुल आवारा सा बन न जाने कहाँ कहाँ से घूम कर आता है।कभी तुम्हारे साथ का पहला दिन याद करता है तो कभी उस एहसास को खोजने निकल पड़ता है जिसमें तुमसे मिलन के हर एक क्षण का लेखा जोखा अब भी वैसे ही यादों के पन्नों पे ज्यों का त्यों लिखा हुआ है।धीरे धीरे सम्मोहीत होता जाता है ये मन तुम्हारी मनगठंत कल्पनाओं में कही खोकर।पर जब हाथ बढ़ाकर छुता है तुमको तब कुछ नहीं होता है उसके पास सिवाय तुम्हारी यादों के।ये पूरी जिन्दगी क्या यह तो सात जन्म भी यूँही गुजार देगा बस तुम्हारी यादों के संग।पता नहीं कैसा मनभावन आईना है यह तुम्हारी यादों का जिसमें वो खुद को हर बार देखकर एक नयी ताजगी और उमंग के संग प्रफुल्लित हो उठता है।शायद बीते दिनों में स्वयं के बौनेपन को देख आज का यह विशाल मन अहंकारवश हँस पड़ता है।पर उसी हँसी में छुपी होती है एक ऐसी उदासी जो बस स्वयं ही देख पाता है वो और बेचैन होने लगता है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhBsJuoKhYCdUz66V5cTjFIQkj36ipfuqrZ020zDlSFMI5L4EheJNh5ACsSIjttAPOZ7-TKT0SKdUkksWTX-wu9r09Ivfb55rN2eoAPZJYHdtCuT5CCXFvJGOtgv-Cl_gq3bWZs3J_VXuP/s1600/reincarnation1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="246" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhBsJuoKhYCdUz66V5cTjFIQkj36ipfuqrZ020zDlSFMI5L4EheJNh5ACsSIjttAPOZ7-TKT0SKdUkksWTX-wu9r09Ivfb55rN2eoAPZJYHdtCuT5CCXFvJGOtgv-Cl_gq3bWZs3J_VXuP/s320/reincarnation1.jpg" width="320" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">आकर्षण के चरमोत्कर्ष पर हमारा प्यार मिला था कभी।जिसका आधार बस मै था और तुम थी।तुम वो थी जो अक्सर मेरी कल्पनाओं में किसी धुँधली तस्वीर सी आ जाती और मुझसे पूछती "शायद किसी जन्म में हम मिले थे कभी।" पर मै कुछ पल बिल्कुल शांत रहता।क्योंकि अब तक ना मुझे स्वप्न पर विश्वास था और ना ही जन्म जन्मांतर के अटूट रिश्तों की समझ।अब तक तो बस प्यार की परिभाषा मेरे लिये कुछ वैसी थी जहाँ बस आनंद का आगमन था विरह या संताप ना था।क्योंकि अभी अभी तो आया था मै प्यार के इस अनूठे खेल में शामिल होने।शायद अभी बहुत से नियम और शर्तों को मै नहीं जानता था।अभी बहुत ही कच्चा था मै,परिपक्वता आनी बाकी थी।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2Z01qERskXeQuVs3vpaXL43E1gOXMDFx6WCWfqXYug5nfIf6Bptle4MRtu-oVFgrIF_i3zePjUTdcjux-Wv-gONKpm0zQlhsR9aP_aPf7TSZmA-hOTStgWndsOCyqxzGxP4vb6yEQ5xIs/s1600/520_by_laughing_spirit_1920_reincarnation_and_karma.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2Z01qERskXeQuVs3vpaXL43E1gOXMDFx6WCWfqXYug5nfIf6Bptle4MRtu-oVFgrIF_i3zePjUTdcjux-Wv-gONKpm0zQlhsR9aP_aPf7TSZmA-hOTStgWndsOCyqxzGxP4vb6yEQ5xIs/s320/520_by_laughing_spirit_1920_reincarnation_and_karma.jpg" width="203" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हर रात एक अनोखे एहसास को तकिये से दबा कर सो जाता उसपर और फिर वैसे ही तुम्हारी धुँधली सी छाया मेरे सामने आ जाती और पूछने लगती "शायद किसी जन्म में हम मिले थे कभी।" पर मुझे कहा याद था कोई जन्म पुराना।मेरी यादाश्त तो इतनी कमजोर थी कि रात का देखा हुआ ख्वाब भी भूल जाता मै सुबह तक।ऐसे में पिछला जन्म याद करना जरा मुश्किल था।यूँही जीवन में कई विचारों और भावनाओं से गुजरता हुआ एक दिन मिल गया तुमसे।याद है तुम बस स्टाप पे अकेली खड़ी बस के आने का इंतजार कर रही थी और मै तुमसे बिल्कुल अपरिचीत होते हुये भी चुपचाप तुम्हें निहारे जा रहा था।शायद कोई अदृश्य सा बंधन खीँच रहा था मुझे तुम्हारी ओर।एक पल हवा के झोंकों से तुम्हारी जुल्फ तुम्हारे चेहरे को ढ़ँकने लगी।मन हुआ की दौड़ कर जाऊँ और उन्हें सँवार दूँ।पता नहीं किस अधिकार से ऐसा करने को सोच रहा था मै।पर अगले ही क्षण एहसास हुआ तुमसे परायेपन का।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiidmbNm7HZ02Pj-szqBNZZPQ2RwpDseDTd1fIB6Qmn-d-aQM_PYfj76LyHolqHXvSa4JWNtF2BYQc-6ppL9JLtFMII0fASQE1GUuKYN80fwWndPtjRskybP7tP7NBP1JtWpqy5MpugqG22/s1600/1-bus-stop-leonid-afremov.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="255" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiidmbNm7HZ02Pj-szqBNZZPQ2RwpDseDTd1fIB6Qmn-d-aQM_PYfj76LyHolqHXvSa4JWNtF2BYQc-6ppL9JLtFMII0fASQE1GUuKYN80fwWndPtjRskybP7tP7NBP1JtWpqy5MpugqG22/s320/1-bus-stop-leonid-afremov.jpg" width="320" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अब मुझमें एक नयी भावना का जन्म हुआ जो शायद इंतजार था।घंटों बस स्टाप पर करता रहता तुम्हारे आने का इंतजार और जब तुम आती तो यूँही निहारता रहता और तुम्हारे जाने तक एकटक देखता रहता तुमको पर कुछ नहीं कह पाता।शायद मै भूल गया था अपना कोई बिता कल पर इन नजरों को शायद अब भी याद थी वो सारी गुजरी हुई अपनी कहानी।शायद सच में तुमसे किसी जन्म का नाता था मेरा।वरना यूँही लाखों की भीड़ में क्यों तुमपे ही आकर निगाहें अटक जाती।एक रोज जब टूट गया मेरी अधीरता का बाँध तो मैने पूछा तुमसे "क्या तुम मुझे जानती हो" और तुम बड़े ही परीचित से लगे इस दिल को उस अपनी एक हँसी के साथ।उस रोज पहली बार तुम्हारे साथ बस पर बैठा मै तुम्हारी मँजिल तक गया और ऐसा लगा कि कभी की कोई अधूरी प्यास थी दबी जिसे दो बूँद नसीब हो गया हो।तुम्हारी हर अदा बोलने की,देखने की और सोचने की।न जाने क्यों कुछ जाना पहचाना सा लगा।ऐसा लगता कि कभी तुमसे मिल चुका हूँ मै पहले और अब तो मेरे ख्यालों में आने वाली वो तस्वीर भी कुछ साफ साफ सी दिखने लगी।और अब समझ आने लगा मुझे वह प्रश्न "शायद किसी जन्म में हम मिले थे कभी।"</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjdDusHDqEbV9d1XaOFwsqdRfUpRAUgw4zTcZRfeLHzAmrxNIB3bCS6pH1rosa7rl7xzyYUgkhpUQyde02_Wke2OCB1jOBcbyK7xD7XQd38xZjK771lNH_SwjpZcm6Oz5J5CsXqhO6JeTrY/s1600/Memory.+1948.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjdDusHDqEbV9d1XaOFwsqdRfUpRAUgw4zTcZRfeLHzAmrxNIB3bCS6pH1rosa7rl7xzyYUgkhpUQyde02_Wke2OCB1jOBcbyK7xD7XQd38xZjK771lNH_SwjpZcm6Oz5J5CsXqhO6JeTrY/s320/Memory.+1948.jpg" width="252" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">आज सूने मन के आँगन की दहलीज पर बैठा मै सोच रहा हूँ कि क्या सच में किसी जन्म में हम मिले थे तुमसे।आज जब तुम मेरी नहीं हो।किसी गैर की हो और अब शायद तुम भूल भी गयी होगी मुझे।पर उस प्रश्न की सार्थकता आज भी है कि "शायद किसी जन्म में हम मिले थे कभी।" तब तुम सिर्फ मेरी थी और तुम पर मेरा पूरा अधिकार था।पर न जाने क्यों आज तुम मेरी नहीं हो।हो ना हो पर जरुर अपने वादे में खोट हुई होगी जब हम सात जन्मों तक साथ निभाने का वादा किये होंगे।पर बहुत कम दिन की जानपहचान में भी ऐसा लगता था मुझे की तुम मेरी कोई पूर्वपरीचित हो।मेरे रुह की तमन्ना भी कुछ सुकुन सा पा लेती जब कर लेती आत्मसात उस एहसास को खुद में जिसमें तुम मेरे साथ हो हर पल।मै आज फिर इंतजार कर रहा हूँ किसी नये जन्म का और इस बार मिलना तो यूँ ना मिलना जैसे मिली हो इस बार।इस बार सारे बंधनों को तोड़कर तुम बस मेरी "तुम" बन कर आना और "मै" तो हमेशा से तुम्हारा हूँ और रहूँगा।शायद इस वजह से कि किसी जन्म में हम मिले थे कभी। </span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-20691434853918338142011-07-27T14:18:00.001+05:302011-07-27T14:18:36.083+05:30तुमने क्या मुझे याद किया है अभी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अभी-अभी मिली है खबर मुझे तुम्हारे ना होने का और मेरा वजूद कुछ क्षण बिल्कुल सन्न सा हो गया है यह जानकर कि अब तक बस तुम्हारे बिना जी रहा था वो।कुछ अलग हो गया है उससे।शायद कोई वजनदार चीज थी वो।जो कभी कभी कोमल दिल पर भी आघात कर देती थी।पर अब उसके जाने के बाद सब कुछ बेहतर है।अब वो भावनाओं की जमीन नहीं है,जिनपर प्यार की खेती होती थी कभी।पर अब बस मन के विस्तृत आकाश में कुछ यादों के बादल बचे हुये है।जो मेरी छत से ज्यादा दूर नहीं है।कभी कभी तो हाथों से ही हिला देता हूँ उनको और बरस बरस कर वे भींगो देते है मुझे बेमौसम ही अक्सर।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiA6Lr7hC7NzMbnvAj2z2jTar_iX4Hpma1zxDD-Ao1Smxa-NtaaduWLKa3diewT475jkensT7_PsnDQpnUXigh1k_WwukNsmMlwmNnOujOcgSlf45i_maX7DmhGzdSUBWAJIWAtw6m5BYuN/s1600/land_of_love_Wallpaper_4neev.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="228" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiA6Lr7hC7NzMbnvAj2z2jTar_iX4Hpma1zxDD-Ao1Smxa-NtaaduWLKa3diewT475jkensT7_PsnDQpnUXigh1k_WwukNsmMlwmNnOujOcgSlf45i_maX7DmhGzdSUBWAJIWAtw6m5BYuN/s320/land_of_love_Wallpaper_4neev.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">इन आँखों का खोजना न जाने कब पूरा होगा जब आराम से इन्हें मूँद सो सकूँगा मै।कभी तुम्हारे घर के बहुत करीब जाकर लौट आते है ये।शायद शर्म आती हो इन्हें।कही कोई देख ना ले।पर जब कभी भी खोजते खोजते थक जाते है तुम्हें सागर के किनारे जाकर अपनी कुछ मोतियाँ सौंप आते है उसे तुम्हारी यादों के सीप का।और इनकी अभिव्यक्ति की सार्थकता तब होती है जब तुम्हारी खामोश तस्वीर से दो बात कर लेते है आँखों ही आँखों में।कही यह पूछते है शायद "तुमने क्या मुझे याद किया है अभी"।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWPnw4LaKbKmfofl8zLAEkfCtIKYVw44RKjsASYdjUXPjspF1672yRl-5r6xKW6b_gJ4XDJpAe3xNTwxdBXU62WEL4AP1QQpxrJlScWxN-QSy-DAtVOFYCdQuj4tQtQl_h6WihFV_wMLBG/s1600/search-for-love.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWPnw4LaKbKmfofl8zLAEkfCtIKYVw44RKjsASYdjUXPjspF1672yRl-5r6xKW6b_gJ4XDJpAe3xNTwxdBXU62WEL4AP1QQpxrJlScWxN-QSy-DAtVOFYCdQuj4tQtQl_h6WihFV_wMLBG/s320/search-for-love.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अक्सर रात को जब प्यास लगती है मुझे और पानी पीने के बाद सरकती है तब लगता है कि हो ना हो पर जरुर तुमने याद किया है अभी।साँसों का अटकना तेज हो जाता है और ऐसा लगता है साँसों के कई विभाजनों में विभक्त हो कर रह गया है तुम्हारे यादों का हर एक मंजर।और कभी कभी बड़ी देर तक आती रहती है हिचकी सी।उसी क्षण भेजता हूँ मै तुम्हारे पास एक सवाल "तुमने क्या मुझे याद किया है अभी"।और तुम्हारे जवाब की राह देखते देखते कब नींद आ जाती है पता ही नहीं चलता।नींद टूटने पर फिर महसूस होती है वही प्यास जिसने मन में कोई प्रश्न लाया था और तुम याद आ गयी थी फिर आज की रात।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgl9HvM7JfzvTl-TgW3_MgKBiyjuaNzSTRkCmYHPHvuTlqBvJtaC8hDyyCE9PCZG6hoKSgL5wq1K4lv5Xm9eJUzBIdsZJF-yDiBBd-hyxEUekcu0tiM7PO1QU2l1Ogc3JBGN45qfGb6EQ40/s1600/water.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgl9HvM7JfzvTl-TgW3_MgKBiyjuaNzSTRkCmYHPHvuTlqBvJtaC8hDyyCE9PCZG6hoKSgL5wq1K4lv5Xm9eJUzBIdsZJF-yDiBBd-hyxEUekcu0tiM7PO1QU2l1Ogc3JBGN45qfGb6EQ40/s320/water.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जल रही है मद्धम सी प्रकाश कोणे में।बहुत अँधेरी रात है और मै अकेला चला जा रहा हूँ कही।शायद दीप लिये तुम ही खड़ी हो राह में क्या?जो मेरा इंतजार कर रही है और मै तो रौशनी की चकाचौंध में तुम्हारा चेहरा ही नहीं देख पा रहा।पर बस तुम्हारी दो घूरती आँखें दिख जाती है मुझे।उन्हीं आँखों से होकर उतरना है तुम्हारी धड़कनों में और आज खुद कैद हो जाना है तुम्हारी कम्पनों में।कभी कभी धड़कना भी है संग उनके और कभी तड़पना भी है याद में तुम्हारे।वैसा कोई निश्चित समय नहीं है जो हमारे द्वारा रखा गया था याद करने का और ना ही सीमित ही है सीमाएँ उसकी।पर अब भी तुम्हारी प्यास कुछ सीमित है,जो बस तुम्हारे आने से पूरी हो सकेगी।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhFo6cv4H3BIuXplwKWmTP7HjpZo9Ktttso5Z_JzlE1mmmqK5Zsntu5t11w5RrFC4vlOVaCbsiYBinn4VkkBGfe9MGGbN0_Xa2uFubGjEVEV0GdusUg4pYayjv5U8Qb4WVQJaq0VeV9cz20/s1600/607912-the-girl-in-dark-blue-light-in-night-city.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhFo6cv4H3BIuXplwKWmTP7HjpZo9Ktttso5Z_JzlE1mmmqK5Zsntu5t11w5RrFC4vlOVaCbsiYBinn4VkkBGfe9MGGbN0_Xa2uFubGjEVEV0GdusUg4pYayjv5U8Qb4WVQJaq0VeV9cz20/s320/607912-the-girl-in-dark-blue-light-in-night-city.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">बल्ब जल रही है दिवार पे अड़ी और पँखा चल रहा है छत से टँगा।उसका हर बार घुमना मेरी परिक्रमा को नया आयाम देता है और उसे एकटक देखता देखता मै कुछ पल पिछे हो आता हूँ कभी कभी।कभी कभी यह अनुभव सुख देता है पर कभी खुद पे ही गुस्सा आता है मुझे अपने पिछे जाने पर और पुरानी आलमारी में बँद फटे हुये कपड़ों सी तुम्हारी यादों को बार बार सीने से।पर नाइट बल्ब की मद्धम प्रकाश फिर सूचित करती है शांत हो जाने को।देर रात तक जागने की यह आदत सही नहीं है शायद तुम्हारे जाने के बाद।करकती ठंड में भी कम्बल में दुबका मै बस यही सोचता रहता कि काश ऐसा होता आज का दिन कुछ इस तरह आता कि सारे छाये हुये कुहासों को चीर देता वो।और धुँधली होती तुम्हारी छवि फिर मेरे अंतरमन में बस जाती आजीवन के लिए।और जीवन का गुजारा इस ख्वाब के संग हो जाता कि यह सच होगा एक दिन।महकती रहती अब भी मेरी हथेली जैसे मानों तुम्हारे चंदन से तन का स्पर्श कर लिया हो उन्होनें।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3_3u5VX_y_7QBzh3fqiqU3xjvLSC_1YSVDPyVhxyhDXbgLkqWEG-bgevKnP3eITiov4HNYPuc-c6VkrjCm7AbaLn2yeFyGhvYhP7YEbTWoOJLSpnLzTWAHNBFzwxGfz7pXdhd-xdYH-rH/s1600/romantic_love_quotes.jpg_320_320_0_9223372036854775000_0_1_0.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3_3u5VX_y_7QBzh3fqiqU3xjvLSC_1YSVDPyVhxyhDXbgLkqWEG-bgevKnP3eITiov4HNYPuc-c6VkrjCm7AbaLn2yeFyGhvYhP7YEbTWoOJLSpnLzTWAHNBFzwxGfz7pXdhd-xdYH-rH/s1600/romantic_love_quotes.jpg_320_320_0_9223372036854775000_0_1_0.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">एक कसमकस सी है दबी अब भी दिल में कि "तुमने क्या मुझे याद किया है अभी" या यूँही आती है हिचकीयाँ मुझे।तुम याद करती हो शायद तभी तो हम भी हँसते है कभी वरना उदासी भरी राहों में कभी मुस्कुराहट होती ही नहीं।कल मिला था मै तुमसे वही अपने छत की बालकोनी में खड़ी तुम किसी का इंतजार कर रही थी।क्या वह इंतजार मेरे लिए था या यूँही मै खुद को तुम्हारा प्यार समझ बैठा था।पर यह मेरा सपना नहीं है कि तुम अब नहीं हो।यह सच है जिसपर चलता चलता मै बहुत मजबूत हो गया हूँ।चट्टानों सा कठोर हो गया है मेरा वजूद पर अब भी पत्थरों में तरासता है वो तुम्हारे कुछ अनकहे अक्षर जो लब्जों पे आकर न जाने कब से रुके हुये है।कुछ अजीब से एहसासों से भरे है वे जो ना मुझे चैन से हँसने देते है और ना रोने बस मौन रहने को कहते है।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-73931847586878088402011-07-17T18:20:00.003+05:302011-07-18T13:41:10.465+05:30महाकाल की प्रेम क्रीड़ा:-"सृष्टि और प्रलय"<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जगत में काल का स्वरुप अचिन्तय है।जिसके वश में पूरा संसार हर पल सृष्टि से प्रारम्भ होकर प्रलय की ओर बढ़ता जाता है।सृष्टि दिवस के आरम्भ जैसा है और प्रलय अवसान सा।पर क्या?है कोई ऐसा जो इस काल के बंधन से मुक्त है।जिसका ना कोई आरम्भ है और ना कोई अंत।काल के भी काल का लेखा-जोखा रखने वाला एकमात्र महाकाल ही हो सकता है।जो इस काल के बंधन से परे है और अनंत भूत,वर्तमान और भविष्य के कालों की धुरी जिसकी आज्ञा के बिना असमर्थ है एक पल चलने को भी।शिव महाकाल है जो पुरुष तत्व का नेतृत्व करते है।देवों में श्रेष्ठ है,इसलिए महादेव है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5Am6PDLFyzRT58NZU7GkKoSkYmtcU4AiTBV79CwLw22PEoXRm2o1-Ze8LsjOuip8N_zhB9oMu4P2IWpCEL-o-x4yEB6G3Cya9xR-M0990ii6PKoGdlGhAEn1CWKWz7FcXHasRcgJOogAC/s1600/Anita+Singh5+480in+x+60in+Acrylic+on+Canvas+2008+Backside.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="247" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5Am6PDLFyzRT58NZU7GkKoSkYmtcU4AiTBV79CwLw22PEoXRm2o1-Ze8LsjOuip8N_zhB9oMu4P2IWpCEL-o-x4yEB6G3Cya9xR-M0990ii6PKoGdlGhAEn1CWKWz7FcXHasRcgJOogAC/s320/Anita+Singh5+480in+x+60in+Acrylic+on+Canvas+2008+Backside.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">शिव विष से नहीं डरते पर भक्तों की अमृतमय स्नेहमाधुरी का रसपान कर मतवाले हो जाते है।विकराल अघोरी शिव के भयंकर स्वरुप के समक्ष भय भी भयभीत हो जाता है और प्रचण्डता भी काँपने लगती है।जगत का अहंकार चकनाचूर होने लगता है और अपने अस्तित्व के आधार शिव के समक्ष वह नतमस्तक हो जाता है।कठोरता के आवरण में जो वात्सल्य की छाया है वह बस शिव रुपी कल्पतरु ही प्रदान कर सकती है।महाकाल में ही महाकाली का भी स्वरुप निहीत है और महाकाली के स्नेह से ही महाकाल का प्रस्फुटन।शिव और शक्ति कभी भी एक दूसरे से पृथ्थक नहीं है।शिव है तो शक्ति है,पराक्रम है,साहस है और ओज है।वैसे ही शक्ति है तो जीव भी शिव के समान है।अर्थात दोनों का अस्तित्व एक दूसरे के बिना अधूरा लगता है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYijQZBJXN_OF4wG-M4Ygb-_60Lg2eg5kkvw_GBTG4jpzNmzuQkmJ2CuG5S2Lv7d78JXs98Cr-1fLgBDS-f7qmqAl9MpvcHYJTvUQ_PIWKaaabhq8xJjKpBA7ZeYxNrAtaBfxklUBTjN84/s1600/startedwithakiss.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="258" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYijQZBJXN_OF4wG-M4Ygb-_60Lg2eg5kkvw_GBTG4jpzNmzuQkmJ2CuG5S2Lv7d78JXs98Cr-1fLgBDS-f7qmqAl9MpvcHYJTvUQ_PIWKaaabhq8xJjKpBA7ZeYxNrAtaBfxklUBTjN84/s320/startedwithakiss.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जगत की सृष्टि हेतु काल का वह क्षण जब निराधार अनंत ब्रह्मांड की केंद्र पटल पर दो दिव्य शक्तियाँ एकाकार होती है,काल का प्रारम्भ कहलाता है।जब महाकाल,महाकाली के समक्ष होते है और आकर्षण बिन्दू चरम पर होता है।तब जगत में इंसानियत की नींव पड़ती है।जब दोनों के साँस टकराते है,तब संसार में प्राणश्वासों का प्रवाह होता है और जब महाकाली के अधरों पर महाकाल का प्रेमपूर्ण चुम्बन होता है,तो सृष्टि में प्रेम का स्फुटन प्रारम्भ होता है।जैसे-जैसे यह मिलन की आद्वितीय वेला अपने चरमोत्कर्ष पर होती है,वैसे-वैसे सृष्टि का सर्जन होता रहता है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhduI9xUNFEDy_fwmdAaZq5-rYBmxWSE8dtRtKX45DK4zDHX5wy2tiTBWxi63R6jL3LFGFrYZvWYY0hddT0Y8ekIE0Ar7G3kRy9jtHUDijv6c_NR8Aec3xu7G3HHH05WNptYPbuYPHx1Iwc/s1600/320OceanicLovers-m.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="208" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhduI9xUNFEDy_fwmdAaZq5-rYBmxWSE8dtRtKX45DK4zDHX5wy2tiTBWxi63R6jL3LFGFrYZvWYY0hddT0Y8ekIE0Ar7G3kRy9jtHUDijv6c_NR8Aec3xu7G3HHH05WNptYPbuYPHx1Iwc/s320/320OceanicLovers-m.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ठीक इसके विपरीत काल का वह क्षण जब महाकाल रुठ जाते है महाकाली से सृष्टि के प्रलय का प्रारम्भ होता है।प्राणवायु रुक जाती है,सब कुछ स्थिर हो जाता है और मोह का व्याप्क आवरण भंग होने लगता है।प्रेम अब घृणा का स्वरुप धर कर महाविनाश की ओर उद्धत होता है।और सृष्टि के प्रलय के साथ ही महाकाल और महाकाली का यह मिथ्या विरह दम्भ खत्म हो जाता है और फिर दोनों जुड़ जाते है सर्जन में।ना जाने यह कितनी बार होता है और कितनी बार आता है सृष्टि और प्रलय?महाकाल की प्रेम क्रीड़ा के बस दो आयाम होते है "सृष्टि</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> और प्रलय" जो मनुष्य के अस्तित्व की कहानी रचते है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgxtg3K8yD4hFL3cG579bgu7Fxnm1lChSz7OnuwygSvmHzeDyTrOTB2FPfxEU7Q0MRhWTJ8X0xaFESIF74RYfOQYkumOo3gb3dfbWwDFx1b3JR2OUAtCxVhJxvQF7x-AK4zFBWWF6H2nxF6/s1600/Geeta04.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgxtg3K8yD4hFL3cG579bgu7Fxnm1lChSz7OnuwygSvmHzeDyTrOTB2FPfxEU7Q0MRhWTJ8X0xaFESIF74RYfOQYkumOo3gb3dfbWwDFx1b3JR2OUAtCxVhJxvQF7x-AK4zFBWWF6H2nxF6/s1600/Geeta04.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">शिव का स्वरुप निराला है और शिव का चिंतन ही ज्ञान।शिव के गले में लिपटा भुजंग और इनकी सवारी वृषभ दोनों एक दूसरे के शत्रु प्रजाति है,पर शिव के समक्ष प्रेमरत है सब।शिव का स्वरुप सामंजस्य और नेतृत्व की अनूठी मिशाल है।जटे में समाहित गंगा सबको पावन करने वाली है और प्यास बुझाने वाली है।मस्तक पर आद्य चंद्र शीतलता,कोमलता और स्नेह का परिचायक है।व्याघ्र चर्म का आसन यह संदेश प्रेषित करता है कि अपनी ताकत पे स्वयं का वश हो और उस पर स्वामी विराजमान हो सके।हाथ में विद्यमान त्रिशुल की तीन शंकुएँ सुख,दुख और संतुष्टि है।जो बताती है कि दुख पीड़ा का क्षण है पर सुख,दुख का ही एक स्वरुप।बस समझने की आवश्यक्ता है फिर तो सुख के मूल में भी छिपा दुख का आवरण निर्वस्त्र हो जायेगा और नंगी आँखों से भी दिखने लगेगा।सांसारिक प्राणी बस सुख को ही देख पाता है परन्तु वैरागी और संन्यासी वही है,जो सुख के मूल में छुपे दुख को देख सतर्क हो जाता है।त्रिशुल का तिसरा शंकु संतुष्टि है।यह वह स्थिती है जब मनुष्य को ज्ञात हो जाये कि सुख,दुख क्या है?अर्थात दोनों बस माया है।सुख भी सीमीत है और दुख उसकी परछायी।परन्तु अपने सामर्थय में ही आनंद की प्राप्ति संतुष्टि है।यही अंतःकरण की तृप्ति है।शिव के हाथों में डमरु और शिव का नटराज स्वरुप नृत्य और संगीत का उद्भव है।संगीत के सुरों का आरम्भ यही से है और शिव का तांडव ही ह्रदय तारों का कम्पण है।जिससे हर क्षण हमारी ध्मनियों में रक्त का प्रवाह होता रहता है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhaB_Q74s-Y_m0tefmrCLEcgrhK59p1yVCtRQCa9zs-xP1IpuTlkci7LsxPxIVWCmplx32qKCckdiMM3-VaLVWPNLlZ7mQeIK9Sbe9gqfWeH7wY6OQe9FB7tkdh59lJWn4X-wC-oN7zi5t/s1600/lord_shiva+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhaB_Q74s-Y_m0tefmrCLEcgrhK59p1yVCtRQCa9zs-xP1IpuTlkci7LsxPxIVWCmplx32qKCckdiMM3-VaLVWPNLlZ7mQeIK9Sbe9gqfWeH7wY6OQe9FB7tkdh59lJWn4X-wC-oN7zi5t/s320/lord_shiva+%25281%2529.jpg" width="302" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">शिव का रहन-सहन,वेश-भूषा बिल्कुल वैरागी है।पर दाता का सामर्थय रुप में नहीं है,वो तो कार्य में दृष्टिगोचर होता है।खुद भांग,धतूरा और गंगाजल से तृप्त होने वाले शिव स्वयं पर राख लपेटे हमारी किस्मत का लेखा-जोखा करते है।शिव "भोले-भाले" है।अर्थात प्रेम के समक्ष शिव का भोलापन मनोहारी है और घृणा के सामने भाले के जैसे विध्वंसकारी।हर समय ध्यान में मग्न शिव का स्वरुप जगत की सृष्टि हेतु हितकारी है।ध्यान वही है जहाँ ज्ञान है और जब ज्ञान है तो दान है।ये सब शिव के अनंत स्वरुप में दृष्टिगोचर है।वे आदिदेव है।अर्थात ना उनका कोई आरम्भ है और ना ही अंत।वो कब से है?शायद तब से जब काल का लेखा-जोखा भी ना हो।वही जगत का सार है।जिसके स्वरुप का मंथन ही सच्चा ज्ञान है और सत्य की पहचान है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqtyNWbnoXr2113x9UkOs7uJOf2mXAbDR0buuZH1ToShsN0FCau8KBVxpp3rg7ZZeePMG3YBMbxNUaRdux5VZik21_6ik29XV6z_Z5ij96ZuzjdGmoDDhsN_40jLDMW_iw-3WX4GQxMTPE/s1600/lord-shiva-30a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqtyNWbnoXr2113x9UkOs7uJOf2mXAbDR0buuZH1ToShsN0FCau8KBVxpp3rg7ZZeePMG3YBMbxNUaRdux5VZik21_6ik29XV6z_Z5ij96ZuzjdGmoDDhsN_40jLDMW_iw-3WX4GQxMTPE/s320/lord-shiva-30a.jpg" width="244" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जीव की सार्थकता इसी में है,कि शिव रुपी अमृतवर्षा में वह पूर्णरुपेण भींग जाये।तन और मन को इस तरह भींगो ले कि हर अवसाद और क्लेश मिट जाये हर जन्म का।आध्यात्मिक एकाग्रता और व्याप्कता की नींव है शिव।शिव तथ्य है जिसका मूल है ज्ञान।तीव्र पवन के झोंको में समाहीत आवेग का हर एक प्रवाह बस शिव से सम्बंधित है।सृष्टि के हर पहलु का तार बस शिव रुपी युग्म से जुड़ा है।जहाँ शिव की अनंत सिंधु में ज्ञान और प्रेम का जल ही जल भरा हुआ है।शिव को समझना ही शिव को पूजने जैसा है।पुरुष रुपी शिव मातृत्व के अद्भूत वात्सल्य को समेटे है खुद में।जिसकी गोद में जीव को वह सुख प्राप्त होता है।जहाँ वह काल के हर एक बंधन से मुक्त होकर बस शिव में एकाकार होना चाहता है।जीव से शिव का वह मिलन कल्याणकारी है,जहाँ पशुपति शिव के समक्ष सम्पूर्ण जीवधारी नतमस्तक है और शिव ब्रह्मांड की तत्क्षण सर्जना को धारण किये हुये है। </span>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-24323302078974023762011-07-13T22:25:00.001+05:302011-07-13T22:25:33.456+05:30समर्पण और आस्था की शक्ति से मुक्कदर को पाओ<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कुछ तो है ऐसा जो शाश्वत है।वही चिर काल से चिर काल तक है।वह सर्वशक्तिमान ईश्वर है।परन्तु उस आध्यात्मिक ईमारत की नींव भी बस आस्था की अमिट भावनाओं पे पड़ी है।आस्था के बिना ना तो सृष्टि के सृजनात्मक कार्यो की कल्पना की जा सकती है और ना ही सृष्टिकर्ता की।जिसकी आस्था की शक्ति जितनी ज्यादा है,ईश्वर उसके उतने ही करीब है।आस्था ही वह बीज है,जो समर्पण की भावना को अंकुरित करता है मानव ह्रदय के भीतर।कीचड़ में जैसे कमल खिलता है और अपनी सुंदरता से वह सबको मोहीत कर लेता है।वैसे ही ह्रदय में आया समर्पण का भाव हमें अपने मुक्कदर की उँचाईयों तक पहुँचाता है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiaF-t953zIFMOeangJxkXMu73a3EbGEcWq84gNIrTTFtLsyNZTT7aV2Ma6O1uWdcLgr5oXB9878mGwbWWCNAUx_W747NeJ9s26xMYbV9vvZzKJjCkiejpJ71DvBY9Kb3U6M0G5lIXwmsyJ/s1600/the-holy-madonnas-immaculate-conception-of-the-divine-degausser-in-god-we-trust-formerly-known-as-steve-kreuscher.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiaF-t953zIFMOeangJxkXMu73a3EbGEcWq84gNIrTTFtLsyNZTT7aV2Ma6O1uWdcLgr5oXB9878mGwbWWCNAUx_W747NeJ9s26xMYbV9vvZzKJjCkiejpJ71DvBY9Kb3U6M0G5lIXwmsyJ/s320/the-holy-madonnas-immaculate-conception-of-the-divine-degausser-in-god-we-trust-formerly-known-as-steve-kreuscher.jpg" width="247" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्मयोग का मार्ग बताया है।कर्म ही श्रेष्ठ है यह अतिशयोक्ति नहीं है।पर यदि कर्म के साथ ही आस्था की शक्ति भी हो और परमसता के प्रति समर्पण का भाव भी हो तो मुक्कदर बनते देर नहीं लगती।समर्पण की उद्धात भावना के समक्ष कर्मयोग का पक्ष भी हल्का पड़ने लगता है।पर वह समर्पण ऐसा होना चाहिए जिसमें स्वयं का कोई वश ना हो।पूर्णतया खुद को सौंप दिया गया हो ईश्वर को।तब ऐसी परिस्थिती में आस्था की शक्ति और उद्धात समर्पण भाव के समक्ष भगवान अपने भक्त के लिए हर पल उपस्थित होता है।बस समर्पण का भाव पूर्णरुपेण समर्पित होना चाहिए।वहाँ किसी भी तर्क या शंका की आवश्यक्ता नहीं होनी चाहिए।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZM-Y5xqifD1ebT2ltrqj_kaiJBg2tMiqgNEKTM5xEC7GRTDQ8zHAvJsMD6PoDwtuSP5KPVr3XCqw3LB-1qYKuStYAMT_rTWzCF0BPxyEJ85da-JHTiXas0ao5PfLjhlp9SHEBeEi72JUA/s1600/painting-jesus-god-suspending-the-world-between-his-hands.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZM-Y5xqifD1ebT2ltrqj_kaiJBg2tMiqgNEKTM5xEC7GRTDQ8zHAvJsMD6PoDwtuSP5KPVr3XCqw3LB-1qYKuStYAMT_rTWzCF0BPxyEJ85da-JHTiXas0ao5PfLjhlp9SHEBeEi72JUA/s1600/painting-jesus-god-suspending-the-world-between-his-hands.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तर्क वहाँ होता है,जहाँ शंका होती है।और शंका वहाँ घर बनाता है,जहाँ आस्था की शक्ति कमजोर होती है।उद्धात समर्पण भाव के समक्ष तर्क खुद ब खुद नतमस्तक हो जाता है और जीव को शिव में एकाकार होते देर नहीं लगती।आस्था के पिछे लोभ का कोई साया नहीं होना चाहिए।किसी अमुक विषयवस्तु की प्राप्ति के लिए क्षणिक दिखाया गया समर्पण भाव कभी भी प्रगति के मार्ग का सबसे बड़ा अवरोधक है।जरुरत है स्वयं के अस्तित्व के बारे में सोचने की और अपने जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक अंतःजागृति लाने की।क्या हमारा जन्म बस इन क्षणभंगूर भौतिक वस्तुओं को पाने के लिए हुआ है या भौतिकता से ऊपर की भी कोई आकांक्षा है हमारे अंतःकरण में।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPTD_zUIgpgvdRB0fXS60LSY6mWzAAmLAX5imy9zjzAPyBqipnKNbLpsatXW3MBh6NIFwOW1jDe10leWkOPgxcCnZIO9NTaRUH_DCEJNO3gld6CTfS2HjTflWPUqHoOuzqLRRx8XMig3XF/s1600/g-fae-MelekTaus.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPTD_zUIgpgvdRB0fXS60LSY6mWzAAmLAX5imy9zjzAPyBqipnKNbLpsatXW3MBh6NIFwOW1jDe10leWkOPgxcCnZIO9NTaRUH_DCEJNO3gld6CTfS2HjTflWPUqHoOuzqLRRx8XMig3XF/s320/g-fae-MelekTaus.jpg" width="251" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">टेक्नोलाजी और आधुनिकता के इस युग में लोग समझते है कि बस कुछ वेदमंत्रों को पढ़ कर और भगवान की स्तुति भर कर हम सफलता की हर एक ऊँचाईयों को पा लेंगे।पर यह सर्वथा गलत है।भगवान मंत्रों का या अपनी प्रशंसा का भूखा नहीं है।वो तो बस भावना का भूखा है,जो समर्पण भाव ही दिला सकते है।स्वयं के लिये और अपनों के सुख दुख में तो सभी रोते है,पर वह जो भगवान से मिलन की उत्कंठता में रोता है और विरह में नैनों को अश्रु से भिगोता है।वही अंत अंत तक अपनी मँजिल को पाता है।ह्रदय के भाव उमर कर जब आँखों से दो बूँद बन कर बहते है।तभी भगवान के समक्ष अपनी पूजा पूरी होती है।आस्था की शक्ति इतनी मजबूत होनी चाहिए कि प्रलय के क्षणों में भी मन में यह अडिग समर्पण हो कि अपना रखवाला तो अपने साथ है।फिर देखिये वो बस पल भर में आपके जिन्दगी के सारे तूफानों को समेट देगा और मँजिल तक जाने का मार्ग बड़ी सुगमता से दृष्टिगोचर होने लगेगा।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsfKOTPI21_LOilVyLcBQzNYhU7f4_DVB9VbuMjZ0VDMd46opSl6nWRYDMrc3RrJkxDXjwfasoIW6rj0CVZw8WbmBTBqi9zlpVZWdv7tYm8EMHqL3eu1I9SCXmAMDH5hPLK-vJKfCdT2we/s1600/painting-10-+devotion.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="223" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsfKOTPI21_LOilVyLcBQzNYhU7f4_DVB9VbuMjZ0VDMd46opSl6nWRYDMrc3RrJkxDXjwfasoIW6rj0CVZw8WbmBTBqi9zlpVZWdv7tYm8EMHqL3eu1I9SCXmAMDH5hPLK-vJKfCdT2we/s320/painting-10-+devotion.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हमारे ईतिहास में कई ऐसे संत,महात्मा हुये है जिनके पास अक्षरों की थोड़ी सी भी समझ ना थी पर उनके पास समर्पण और आस्था की शक्ति का वो अद्भूत ज्ञान था,जो उन्हें हर पल ईश्वर का सान्निध्य देता रहा।हमारा शरीर हमारी पहचान नहीं है और ना ही हमारा वजूद आज जो है वही कल है।पर अतिसूक्ष्म आत्मा का वास ही हमारे अस्तित्व की सम्पूर्णता है।आत्मा ही सार्वभौमिक है,जो ईश्वर के द्वारा हमें दिया गया तेज है।और तन के अवसान के बाद पुनः ईश्वर को समर्पित होकर विलिन हो जाता है।मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह भविष्य के बारे में उतना ज्यादा गम्भीरता से नहीं सोचता।पर स्वयं के आध्यात्मिक परिचय के लिये उसे अपने अंतिम लक्ष्य को जानने की जरुरत है।जहाँ सच्चिदानंद की प्राप्ति होती है और आत्मा भी निर्वाण के पथ पर अग्रसर होता है।यह वही समर्पण की शक्ति से सम्भव होता है,जो जीवन मृत्यु के बंधनों को काटकर जीव को शिव बना देता है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBIHcS4FxOUpSCqSv10wMBYGs8I8wcre7ajSQXzDaSu5Zz6MgHrmtbTTt-ZTn6iVt1ohd-kOttGd3NIOHUm8e_B6hjJZVez0vw_HqvKLPO3IfkFJJ0KIHp27A84FL1uo3onTHmwID9iSzH/s1600/smriti4.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBIHcS4FxOUpSCqSv10wMBYGs8I8wcre7ajSQXzDaSu5Zz6MgHrmtbTTt-ZTn6iVt1ohd-kOttGd3NIOHUm8e_B6hjJZVez0vw_HqvKLPO3IfkFJJ0KIHp27A84FL1uo3onTHmwID9iSzH/s1600/smriti4.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कभी भी कोई कष्ट हो एक बार अपने अराध्य देव को पुकारो।बस पुकारने में भी उद्धात समर्पण की भावना नीहित होनी चाहिये।फिर देखिये समर्पण और आस्था की शक्ति से कैसे हम एक पल में मुक्कदर की ऊँचाईयों को पा लेते है।जीवन के हर रंग में रंग जाओ पर यह रंग बस तन तक ही सीमित होना चाहिए।अपने संस्कारों को कभी भी भूलना नहीं चाहिए और निरंतर भावनाओं को सम्प्रेषित करते रहना चाहिए।यही वह समर्पण है,जो कभी द्रौपदी की रक्षा करता है कान्हा बन कर तो कभी मीरा को कृष्ण प्रेम में बेसुध कर देता है।आज बस आस्था की थोड़ी बची हुई कुछ शक्ति ही है,जो घोर कलियुग में भी ईश्वर की कृपा मिल जाती है हमें।वरना आस्था के बिना पत्थर के मूर्ती का भी कोई अस्तित्व नहीं है और साक्षात ईश्वर भी पत्थर के मूर्ती सा ही है।</span>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-42691927232413260452011-07-06T01:20:00.007+05:302011-07-06T11:50:42.873+05:30आज स्त्री बस वासना की पूर्ति भर है क्या?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अपनी अश्लील भावनाओं को प्रेम की पवित्रता का नाम देकर कोई अपनी अतृप्त वासना को छुपा नहीं सकता।वासना के गंदे कीड़े जब पुरुष मन की धरातल पर रेंगने लगते है तब वह बहसी,दरिंदा हो जाता है।अपनी सारी संवेदनाओं को दावँ पर रख बस जिस्म की प्यासी भूख को पूरा करने के लिए किसी हद तक गुजर जाता है।जब तक अपनी इच्छानुसार सब कुछ ठीक होता है तब तक वह प्रेम का पुजारी बना होता है।पर जैसे ही उसे विरोध का साया मिलता है वह दरिंदगी पर उतर जाता है।वासना के कुकृत्यों में लिप्त होकर जिस्मानी भूखों के लिए किसी नरभक्षी की तरह स्त्री के मान,मर्यादा और इज्जत को रौंदता रौंदता वह समाज,परिवार और संस्कारों को ताक पर रख बस वही करता है,जो करवाती है उसकी वासना।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggE68hhEeM8TZ3HKjW0YnVSU2DFi1tkGaqj6RX9wsaCJKOwhNUv9ZTcp42DH2dbsWecqDrFXRXIG-X18nRtY4Ntq7AVHOkwROuImT-ymJmOgUaO-W_05LXBLMVTx_uIfumw5NVJO6KnXBL/s1600/FMA___Lust_and_Scar_Again_by_crashhappy.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="296" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggE68hhEeM8TZ3HKjW0YnVSU2DFi1tkGaqj6RX9wsaCJKOwhNUv9ZTcp42DH2dbsWecqDrFXRXIG-X18nRtY4Ntq7AVHOkwROuImT-ymJmOgUaO-W_05LXBLMVTx_uIfumw5NVJO6KnXBL/s320/FMA___Lust_and_Scar_Again_by_crashhappy.jpg" width="320" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हमारी संस्कृति में और हमारे धर्मग्रंथों में स्त्री को जो सम्मान मिला है।वो आज बस इतिहास के पन्नों में ही सीमट कर रह गया है।क्या स्त्री की संरचना बस पुरुष की काम और वासना पूर्ति के लिए हुई है।वो जननि है,वही हर संरचना की मूलभूत और आधारभूत सता है।पर क्या अब वही ममतामयी पवित्र स्त्री का आँचल बस वासनामय क्रीड़ा का काम स्थल बन गया है।आज समाज में स्त्री को बस वस्तु मात्र समझ कर निर्जीव वस्तुओं की तरह उनका इस्तेमाल किया जा रहा है।क्या यही है वजूद आज के समाज में स्त्री का।स्त्री पुरुषों को जन्म देकर उनका पालन पोषण कर के उन्हें इसलिए इस लायक बना रही है कि कल किसी परायी स्त्री के अस्मत को लूटों।इन घिनौने कार्यों की पूर्ति के लिए स्त्री का ऊपयोग क्या उसे वासना का परिचायक भर नहीं बना दिया है आज के समाज में।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgP045oZsESgHrDyCxoeHCU_MZG_FcwT1YiFr0J3ubUttjyA2Qf6YgH7VdU9NqUg1VXwcrP3Mz3dqqnQ_Yc5udIF1WUYf_z984RwOY2WPdV0Xrz-A1U8B3wvem6ArbbxNjil0GmcYUyPWu8/s1600/woman-in-saree--after-raja-ravi-varma-usha-shantharam+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgP045oZsESgHrDyCxoeHCU_MZG_FcwT1YiFr0J3ubUttjyA2Qf6YgH7VdU9NqUg1VXwcrP3Mz3dqqnQ_Yc5udIF1WUYf_z984RwOY2WPdV0Xrz-A1U8B3wvem6ArbbxNjil0GmcYUyPWu8/s320/woman-in-saree--after-raja-ravi-varma-usha-shantharam+%25281%2529.jpg" width="264" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हद की सीमा तब पार हो जाती है जब बाप के उम्र का कोई पुरुष अपनी बेटी की उम्र की नवयौवना के साथ अपने हवस की पूर्ति करता है और अपनी मूँछों को तावँ देते हुये अपनी मर्दांगनी पर इठलाता है।लानत है ऐसी मर्दांगनी पर जो अपनी नपुंसकता को अपनी वासनामयी हवस से दूर करने की कोशिश करता है।क्यों आज भी आजादी के कई वर्षो बाद भी जब पूरा देश स्वतंत्र है।हर व्यक्ति अपनी इच्छानुसार अपना जीवन यापन करने के लिए तत्पर है।पर जहाँ बात आती है स्त्री के सुरक्षा की सभी आँखे मूँद लेते है।क्या आज शक्ति रुपा स्त्री इतनी कमजोर हो गयी है जिसे सुरक्षा की जरुरत है।क्या उसका वजूद जंगल में रह रहे किसी कमजोर पशु सा हो गया है,जिसे हर पल यह डर बना रहता है कि कही उसका शिकार ना हो जाये।पर आज इस जंगलराज में शिकारी कौन है?वही पुरुष जिसको नियंत्रण नहीं है अपनी कामुक भावनाओं पर और यह भी पता नहीं है कि कब वो इंसान से हैवान बन जायेगा।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinWolaCXUdJk1KeX_gp5oLK7GgPTgqUghKCjgJY_cdVLhIN98O2tWmqcUmxBuUElbpXzRk9Puw925rziyoavjYXC0c6IVdcKnK4sCt1_WvlkSKm4u7cRM_ugpRUSK3P0upzyoCB-8nhCKU/s1600/tumblr_ljo71iapeR1qa5p0qo1_500.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="256" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinWolaCXUdJk1KeX_gp5oLK7GgPTgqUghKCjgJY_cdVLhIN98O2tWmqcUmxBuUElbpXzRk9Puw925rziyoavjYXC0c6IVdcKnK4sCt1_WvlkSKm4u7cRM_ugpRUSK3P0upzyoCB-8nhCKU/s320/tumblr_ljo71iapeR1qa5p0qo1_500.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">स्त्री की कुछ मजबूरियाँ है जिसने उसे बस वासना कि पूर्ति के लिए एक वस्तुमात्र बना दिया है।मजबूरीवश अपने ह्रदय पर पत्थर रख बेचती है अपने जिस्म को और निलाम करती है अपनी अस्मत को।पर वो पहलू अंधकारमय है।वह वासना का निमंत्रण नहीं है अवसान है।वह वासनामयी अग्न की वो लग्न है,जो बस वजूद तलाशती है अपनी पर वजूद पाकर भी खुद की नजरों में बहुत निचे तक गिर जाती है।स्त्री बस वासना नहीं है,वह तो सृष्टि है।सृष्टि के मूल कारण प्रेम की जन्मदात्री है।स्त्री से पुरुष का मिलन बस इक संयोग है,जो सृष्टि की संरचना हेतु आवश्यक है।पर वह वासनामयी सम्भोग नहीं है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgP5ZpMK6aEk1AL6ulXG_j8R2BrSKIMic-CvDEhMBU5B998uhRgilLqekWLWXFHkqTgZZSYEumMb691MF1jQ3v3MjhLz7slRlu4zfi4WngjbbNLDjy20a-5JF2gGcGoKsbcgCwTAyapC0fi/s1600/Draper__Mourning_for_Icarus.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgP5ZpMK6aEk1AL6ulXG_j8R2BrSKIMic-CvDEhMBU5B998uhRgilLqekWLWXFHkqTgZZSYEumMb691MF1jQ3v3MjhLz7slRlu4zfi4WngjbbNLDjy20a-5JF2gGcGoKsbcgCwTAyapC0fi/s320/Draper__Mourning_for_Icarus.jpg" width="262" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हवस के सातवें आसमां पर पुरुष खुद को सर्वशक्तिमान समझ लेता है पर अगले ही क्षण पिघल जाता है अहंकार उसका और फिर धूल में ही आ मिलता है उसका वजूद।वासना से सर्वकल्याण सम्भव नहीं है पर हाँ स्वयं का सर्वनाश निश्चित है।वासना की आग में जलता पुरुष ठीक वैसा ही हो जाता है जैसे लौ पर मँडराता पतंगा लाख मना करने पर भी खुद की आहुति दे देता है।बस यहाँ भावना विपरीत होती है।वहाँ प्रेममयी आकर्षण अंत का कारक होता है और यहाँ वासनामयी हवस सर्वनाश निश्चित करता है।स्त्री को बस वासना की पूर्ति हेतु वस्तुमात्र समझना पुरुष की सबसे बड़ी पराजय है।क्योंकि ऐसा कर वो खुद के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा बैठता है अनजाने में।अपनी हवस की पूर्ति करते करते इक रोज खुद मौत के आगोश में समा जाता है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyzv-eVbRd8VWQ6V7BM6UqfUuFfR23h_7pz7IZYaWBCSc66ZNEnmLD9r4UtAty2bxRl2Eo9e8Uujv6VKi8z_47sQdg9pyQt8ic5OxZ1udHC9G44Q7fUSqgqR3r_lQwNOkCzy5Tis7_M3SW/s1600/435422329_9263d8aa55.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="282" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyzv-eVbRd8VWQ6V7BM6UqfUuFfR23h_7pz7IZYaWBCSc66ZNEnmLD9r4UtAty2bxRl2Eo9e8Uujv6VKi8z_47sQdg9pyQt8ic5OxZ1udHC9G44Q7fUSqgqR3r_lQwNOkCzy5Tis7_M3SW/s320/435422329_9263d8aa55.jpg" width="320" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जरुरी है नजरिया बदलने की।क्योंकि सारा फर्क बस सोच का है।समाज भी वही है,लोग भी वही है और हम भी वही है।पर यह जो वासना की दरिंदगी हममें समा गयी है वो हमारी ही अभद्र मानसिकता का परिचायक है।स्त्री सुख शैय्या है,आनंद का सागर है।बस पवित्र गंगा समझ कर गोते लगाने की जरुरत है ना कि उसकी पवित्रता को धूमिल करने की।जिस दिन स्त्री का सम्मान वापस मिल जायेगा उसे।उसी दिन जग के कल्याण का मार्ग भी ढ़ूँढ़ लेगा आज का पुरुष जो 21वीं सदी में पहुँच तो गया है पर आज भी कौरवों के दुशासन की तरह स्त्री के चिरहरण का कारक है। </span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-34006865108888772322011-06-25T14:25:00.003+05:302011-06-25T14:46:14.806+05:30कल रात तुमको सुना मैने<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">चाहता है ह्रदय फिर से तुम्हें पाने को और इस बार पाकर कभी ना खोने को।सुनना चाहता है तुम्हारी हर एक वो शिकायत जो तुम इक अनूठे अधिकार के साथ करती थी मुझसे।और मै तुम्हारी डाँट सुन कर भी हँस पड़ता था उस भोलेपन पर जो छलकता था तुम्हारी हर एक शब्द से।बड़े दिन हो गये,गये हुए तुमको पर अब तो दुनियादारी की बातें सुन-सुन कर थक से गये है मेरे कान।वो तो अब भी तुम्हारी अल्हड़पन वाली कोमल भावनाओं में भिंगोयी बातें सुनने को व्याकुल है।जिन बातों में बस अपनत्व और स्नेह की मिठास घुली होती थी।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBpAGJaSAbi6_Dx_5ZPgrd9SdQ8dVYLx6dzyJ-vP6ZeUIbpOwLJgnWkcoXX_LmdqHDJlOc_IEXr_0davrSJzBELJyEgdFg5JkBIBQxk2UYiGdHyihyphenhyphenEz0JiJTAGUOEAsTggQ9KbkPlZMHL/s1600/3549066-man-sitting-in-the-night-vector-illustration-eps-file-included.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="247" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBpAGJaSAbi6_Dx_5ZPgrd9SdQ8dVYLx6dzyJ-vP6ZeUIbpOwLJgnWkcoXX_LmdqHDJlOc_IEXr_0davrSJzBELJyEgdFg5JkBIBQxk2UYiGdHyihyphenhyphenEz0JiJTAGUOEAsTggQ9KbkPlZMHL/s320/3549066-man-sitting-in-the-night-vector-illustration-eps-file-included.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">शायद ये नहीं पता तुमको पर अब भी सुनता हूँ मै तुमको।जब-जब धड़कने धड़कती है तब-तब और जब जब साँसे चलती है तब-तब।हर उस लम्हें में तुम्हारी हँसी की खनखनाहट समा जाती है मेरे कानों में।तुमसे की गयी कुछ बातें जिनको मैने अपने मोबाईल में रिकार्ड कर लिया था आज भी आधी रात में एकाकी मन को तुम्हारे संग का एहसास दे जाते है।लगता है ऐसा कि तुमसे बात हो रही है,पर विचित्र स्थिती होती है मेरी उस समय तुम्हारे किसी बात का जवाब नहीं दे पाता मै बस मौन होकर सुनता रहता हूँ तुम्हें।जाना चाहता हूँ उस बीतें पल में और फिर पूछना चाहता हूँ तुमसे कुछ पर क्या करुँ खुद को हर बार अब अनुपस्थित पाता हूँ उस क्षण में जो बीत गया है।ना रहा वो प्यार अब और ना रहे वो प्यार करने वाले पर यादों में कैद तुम्हारी आवाज आज भी याद दिलाते है अपने प्यार के वादों और कसमों को।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEP_0-KEsVUuk8_bw1ZQqKhy9cQRUdx1XNXdisQa50_Gsqwz7dUJUb7GzwdiuIhCVgwlJgc7j2_2ChhmwwhFDiRHLmII_ks2_zowiAVjzrpdVNAqzhth3xgT621EbzkkJarZ-byezxgouQ/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="226" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEP_0-KEsVUuk8_bw1ZQqKhy9cQRUdx1XNXdisQa50_Gsqwz7dUJUb7GzwdiuIhCVgwlJgc7j2_2ChhmwwhFDiRHLmII_ks2_zowiAVjzrpdVNAqzhth3xgT621EbzkkJarZ-byezxgouQ/s320/images.jpg" width="320" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">आज रात की आधी पहर में जब सांसारिकता की सारी उलझनें भूल कर चैन से सोने गया बिस्तर पर तभी सहसा तुम्हारी यादों की हवायें आने लगी मेरी खिड़की से और शायद साथ में लाये कुछ बोल तुम्हारे टकराने लगे मेरी कानों से।मन में जगी इक ईच्छा ने आज सुनना चाहा तुमको और मै हेडफोन को अपने कानों में लगा सुनने लगा तुम्हारी बातों की रिकार्डींग।पता नहीं कितना पुराना था वो पर आज भी सुन कर लगता जैसे हो रही हो अब भी बात अपनी।हर बार की तरह मानों अपने प्रेम की शंका से उपजा मेरा प्रश्न पूछ बैठता तुमसे "कितना प्यार करती हो मुझसे?" और तुम बस इतना कहती "बहुत,बहुत बता नहीं सकती।"सुन कर आज बातें तुम्हारी एहसास हुआ कितने ख्वाब और भविष्य की कल्पनायें जो देखे थे हमने कल अब भी तो उतने ही अधूरे है जितने थे कल तक और अब तो शायद उन ख्वाबों के पूरे होने का ख्वाब भी नहीं आता मुझको।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjB-2AGEeUV0w23irP521WZm-QkTge5gl34SETxpcKwVUIWA-w1dkNmIfPeZdU1oBeIKp79a1NNSxqEo0OJjOZ_oO1zjcTsVanp242UluVCcQSsCseKH_9ZljyAUuf9K9tHVVoeCtR5Sslr/s1600/49a398cf4ed535bb0182dec13d7d2ef6.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjB-2AGEeUV0w23irP521WZm-QkTge5gl34SETxpcKwVUIWA-w1dkNmIfPeZdU1oBeIKp79a1NNSxqEo0OJjOZ_oO1zjcTsVanp242UluVCcQSsCseKH_9ZljyAUuf9K9tHVVoeCtR5Sslr/s320/49a398cf4ed535bb0182dec13d7d2ef6.jpg" width="248" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हाँ तुम्हारी बातों ने तुम्हारे संग का एहसास दिया था मुझे पर इस एहसास में ना तो स्पर्श की कोई संवेदना थी और ना ही मेरे स्वयं का कोई सहयोग।बस इक मिथ्यास्पद गुजरे कल के कुछ बिखरे मोतियों को सहेज कर अपने प्रेम की माला बनाने की कोशिश कर रहा था मै और सहेज रहा था अपने आशिया के बिखरे तिनकों को जो मेरे दिल के घर को भी आज सूना सूना सा कर गये थे तुम्हारे जाने के बाद।सुनकर इक दिलासा जगा था दिल में कि चलो आज ना सही पर कभी तो हुआ था वो मेरा जिसकी चाहत ने न जाने कितनी तमन्नाएँ सौंपी थी मुझको और खुशनुमा,खुशहाल जिंदगी के कई ख्वाब दिखाये थे मुझे।जिसके साथ ने थामा था हाथ मेरा और मुझे भी सीखाया था प्यार करना पहली पहली बार मुझे।वो ही तो था पहला प्यार मेरा।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgC_avfPUkta3b4PjT6UFaxogbcEsTImZYHXZQgKDNgJqgcyACO9XXiAB4YwjgyjlOt7F_JVH9G3YQJBMul9Ki_IBFbdENFWjMY1fAPFICgxHxW4-boxNn_w3uWYS57P7Eosk993lwTIaF9/s1600/75607_163089737046310_151833511505266_366331_2682797_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="217" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgC_avfPUkta3b4PjT6UFaxogbcEsTImZYHXZQgKDNgJqgcyACO9XXiAB4YwjgyjlOt7F_JVH9G3YQJBMul9Ki_IBFbdENFWjMY1fAPFICgxHxW4-boxNn_w3uWYS57P7Eosk993lwTIaF9/s320/75607_163089737046310_151833511505266_366331_2682797_n.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुमको सुनते-सुनते न जाने कब नींद ने भर लिया अपने आगोश में मुझको और एकाएक इक झटके में जाग गया मै लगा कि मानों तुमने कहा हो "इतनी जल्दी क्यों सो गये तुम,देखो ना मै तो आज भी जागी हूँ रात-रात भर।"और मेरी आँखों से फिर दूर चला जाता वो रात जिनमें नींद ना था मेरी आँखों में बस रात थी और तुम्हारी बात।जी करता सुनता रहूँ हर रोज यूँही तुमको और इस झुठे दिलासे के संग देता रहूँ इक उम्मीद अपने कानों को भी कि हो ना हो इक रोज जरुर गूँजेंगे तुम्हारे कुछ शब्द इनमें जो अपनी प्यार की अधूरी कहानी को पूरा करेंगे और तुमको सुन लूँगा फिर आँखों को मूँद कर के शायद आखिरी बार। </span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-6261462669998383032011-06-18T16:57:00.005+05:302011-06-19T15:04:44.236+05:30प्रेमी चाँद की उलझन सा मेरा मन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हार कर आज आ बैठा मै अकेला छत पर।कितना पुकारा तुमको और तुम्हारे नाम को।अब तो शायद मेरे चारों ओर हर पल गूँजता रहता है नाम तुम्हारा प्रतिध्वनि बन कर।पर पता नहीं वो प्रतिध्वनि क्या तुमसे टकरा कर लौटती है या बस यूँ ही चली आती है मन को दिलासा दिलाने।आज मन में कई प्रश्न लिये और विरह की व्याकुलता से अधीर होकर विवश सा मन एकांत की तलाश में चाँदनी रात में छत पर ले आया मुझे।शायद आज पूछना था कई प्रश्न उसे चाँद और सितारों से या कही ढ़ूँढ़ता था अक्स तुम्हारा चाँद की प्रतिछाया में।क्या पता क्यों मन के सामने मजबूर ये प्रेमी अपनी प्रेम लगन के साथ आ बैठा आज छत पर अकेला।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxNQOppHw9GpqncEV4H7tz20WkXYwNesjtEvbQzfdDBPIyW5JJd6PMp6Ea90ttDVRLbPm8se3Zi4_uZW_L0u_jmQqVoo5R4gp9sZ7Y9JhqyejIaHVYwioQPDtRaci7Y6Z513k2quoXeEp0/s1600/images+%25283%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxNQOppHw9GpqncEV4H7tz20WkXYwNesjtEvbQzfdDBPIyW5JJd6PMp6Ea90ttDVRLbPm8se3Zi4_uZW_L0u_jmQqVoo5R4gp9sZ7Y9JhqyejIaHVYwioQPDtRaci7Y6Z513k2quoXeEp0/s1600/images+%25283%2529.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">आसमां में चाँद की चाँदनी से फुलझड़ियों सी जगमगाहट मानों मेरे मन में दुबक कर बैठे उस प्रेमी को प्रकाश का मार्ग दिखाती और ये दिलाशा भी देती की कही उस मार्ग में मिल जाये तुम्हारी प्रियतमा तुमको,जिसको ढ़ूँढ़ता आज तू यहाँ तक आया है।चाँद मुझे देख कर बादलों में छुपने लगा।शायद उसे अंदाजा था कि मेरे प्रश्नों के समक्ष वो भी इक प्रश्न सा बन जायेगा और उसके ह्रदय से भी उठने लगेंगे वो प्रश्न जो दबे-दबे से थे इन चाँदनी रातों में न जाने कब से।उसे एहसास होगा अपनी चाँदनी से विरह के हर उस क्षण का जब मै अपनी प्रियतमा के संग होता था और शायद मन ही मन जलता रहता था चाँद।उसकी जलन ही तो थी जो मुझे विरह के दिनों में बहुत खलती थी।तब वो मुस्कुराता था और मै अपने आँसू पोंछता बस एकटक देखता रहता उसको।पर आज वो भी तन्हा है और मै भी अकेला।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivVO2rGds4r9QPDIzVHdl81zaxz7PZe7Y8CuKsGkoG23E5mIKozZKxBriQpSFLpcqe0S3bZ_0WYtmPQmYXfi7picqm4MVdra3rHVWg1RUKilgWK8lJ7pncxXriBYrPlWpDFkRtqQuX138y/s1600/Full_moon_tonight_by_The_Dark_Silhouette.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivVO2rGds4r9QPDIzVHdl81zaxz7PZe7Y8CuKsGkoG23E5mIKozZKxBriQpSFLpcqe0S3bZ_0WYtmPQmYXfi7picqm4MVdra3rHVWg1RUKilgWK8lJ7pncxXriBYrPlWpDFkRtqQuX138y/s320/Full_moon_tonight_by_The_Dark_Silhouette.jpg" width="256" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">यह चाँदनी रात न जाने यादों के कितने बंद दरवाजे पर दस्तक दे गया।और यादों के किसी महल में आज भी सम्भाल कर रखी हुई तुम्हारी यादें झाँकने लगी बाहर।भूल गया मै अपना प्रश्न जो मुझे पूछना था आज चाँद से मै तो अतीत की गहराईयों में ही गोते लगाता रहा।तुम्हारे साथ का एहसास ही कुछ ऐसा खुशनुमा था कि उनके संग ही सारी उम्र गुजारने को जी करता था।एकाएक चाँद का मुझको निहारना मानों जगा गया मुझे यादों की उस स्वप्न निद्रा से और फिर मन में उभरने लगे कई प्रश्न जो चाँद से करने थे।पहले मैने ईशारा किया उसको और मुस्कुराते हुए एक ही बार में कहता चला गया अपने दिल की सारी बात।मैने कहाँ "ऐ चाँद! मै जानता हूँ तेरी चाँदनी पहुँचती होगी वहाँ भी जहाँ मेरी प्रियतमा शायद अभी भी यादों के संग खेल रही होगी और अपने सिरहाने को आँसूओं से भिगोकर रो रही होगी।।क्या तू मेरा एक पैगाम उस तक पहुँचा सकता है कि मै भी न जाने कब से राह देख रहा हूँ उस साथी का जिसके साथ के बिना जीवन बिल्कुल अधूरा सा लगता है।"</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNj8Djsh7a6zC1DCjNHbUUJultBxjrr7lvLWgWpI178UAJh8az48qTnHucbNQWNkBQZj5-NUmj8-Qx8utApTW1PHlgMJUPEsFyxBixPIgQn2y3tgAH5xQZu_W-TWfMrLcmgL_-TjBSpHH2/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNj8Djsh7a6zC1DCjNHbUUJultBxjrr7lvLWgWpI178UAJh8az48qTnHucbNQWNkBQZj5-NUmj8-Qx8utApTW1PHlgMJUPEsFyxBixPIgQn2y3tgAH5xQZu_W-TWfMrLcmgL_-TjBSpHH2/s1600/images.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कुछ पल बिल्कुल शांत और स्थिर सा चाँद शायद कुछ सोचता रहा और फिर कहने लगा "हाँ मै तुम्हारे इस पैगाम को तुम्हारी प्रियतमा तक पहुँचाउँगा पर तेरे दिल के दर्द और विरह को कैसे बतलाउँगा?मानता हूँ मेरी चाँदनी है पहुँचती हर उस जगह पर जहाँ मै बस ठहर कर देखता हूँ,छू </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">नहीं पाता।पर आज भी है दूर मुझसे मेरी चाँदनी।तू तो है बहुत दूर सनम से पर मै तो साथ रहकर भी,देखकर भी </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">छू</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> नहीं सकता उसको,प्यार नहीं कर सकता उसको।"चाँद की इस उलझन को सुन दिल में मानों भावनाओं का कोई ज्वार सा उठने लगा जो छुना चाहता था चाँद की चाँदनी को और सौंपना चाहता था चाँद को उसकी प्रियतमा।पता न था आज छत पे चाँद से पूछा गया मेरा प्रश्न खुद मुझे मौन कर जायेगा और अपनी प्रियतमा को भूल कर चाँद की चाँदनी को ही ढ़ूँढ़ता रह जाऊँगा आजीवन।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsdh01BPYeBeBo645K7W7hbDt7gsXHoMs_BpYYMzuPAJnI6Jf0eTDxr8pYIFCTpnp_8LMv8d-np7HC5wz91KEx0zJFDAT2yiX6Q_Sp5adUqGMCU2t7cKB7VSm2h1SwRw2cfANLBDWttHIF/s1600/images+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsdh01BPYeBeBo645K7W7hbDt7gsXHoMs_BpYYMzuPAJnI6Jf0eTDxr8pYIFCTpnp_8LMv8d-np7HC5wz91KEx0zJFDAT2yiX6Q_Sp5adUqGMCU2t7cKB7VSm2h1SwRw2cfANLBDWttHIF/s1600/images+%25281%2529.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">लगा ऐसा कि मेरी हथेली पर टपक कर आँसूओं की बूँद आ रही है जो शायद विरह के आशिक उस चाँद की है।जो देखता है,निहारता है अपनी प्रिया को पर दिल की उलझने दिल में ही सीमट कर रह जाती है।बेचारा शर्मीला कह भी नहीं पाता दिल की बात।अब पता चला उन दिनों जब मै साथ होता था अपनी जिन्दगी के क्यों जलता रहता था ये चाँद।शायद उस जलन में छुपी हुई थी प्यास अधूरी अपनी प्रियतमा को पाने की।दुनिया के सभी प्रेमियों को उनका प्यार सौंप कर भी आज ये चाँद और चाँदनी क्यों इतने दूर है खुद से।क्या दूर से ही प्रेम का अमिट स्पर्श छू जाता है उनके दिलों को और शायद ये दूरी करती है इस अनोखे प्यार को पूरी।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-34782348153559385482011-06-12T17:19:00.002+05:302011-06-12T17:23:06.897+05:30कभी तुम मेरी इन धड़कनों की फिक्र भी कर लिया करो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">याद आने लगा आज सदियों बाद फिर से वो दिन जब तुमसे नहीं मिला था,ना हुई थी बात अपनी,ना थी कोई जान पहचान तुमसे।पर ये दिल ना जाने क्यों तुमको अपना मान बैठा था।तुमसे जब पहली बार बात हुई थी अजीब हालत थी इन धड़कनों की।मुझसे ज्यादा अधीर तो बेचारे ये ही हो रहे थे।धड़कती रहती थी हर पल धड़कन रुकने का नाम ही नहीं लेती और इक अद्भूत आनंद सा समाता जाता था मेरी इन धड़कनों में।जिन्दगी में पहली बार अधीरता भी कुछ ऐसा खुशनुमा माहौल पैदा कर रही थी जिसमें सब कुछ स्थिर था।बस दिल की धड़कन ही चल रही थी कभी हौले हौले तो कभी जोर से।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiXWlZBPfIyOIHOSCtGZNUKZrviOnSzJUReUqiorVN33SaHJvYYQ2tIgGET5OwNATqIwlYt5Xyh_cT9Yx0i42CbuVMjHkDvn-sOHL8Q-5n1KXxH76lqmjH858_aDU6SzbV4TJOshg_B5NRn/s1600/2217485046_807c92db0b.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="234" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiXWlZBPfIyOIHOSCtGZNUKZrviOnSzJUReUqiorVN33SaHJvYYQ2tIgGET5OwNATqIwlYt5Xyh_cT9Yx0i42CbuVMjHkDvn-sOHL8Q-5n1KXxH76lqmjH858_aDU6SzbV4TJOshg_B5NRn/s320/2217485046_807c92db0b.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">इन धड़कनों में कैद है आज भी उस पहले दिन से आखिरी दिन तक की हर एक तुम्हारी साँस जिनको मेरी साँसों ने बस महसूस किया था।इन धड़कनों की अधीरता तो बस बेबाक थी दौड़ते रहते थे मीलों तक और मै स्थिर बस स्थिर कुछ सोचता रहता।कई बार जब तुमसे प्यार का इजहार करना चाहा था मै,इन धड़कनों की वजह से ही रुक गया था।डरता था कही मेरी इन धड़कनों के प्रवाह का किसी को पता न चल जाये।ऐसे ही कही भी,कभी भी जब तुम्हारा नाम अनायास ही टकरा जाता था मेरे होंठों से फिर तो देखते ही बनती थी इन धड़कनों की बेचैनी।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">एक बार तुमने रख दिया था हाथ मेरी इन धड़कनों पर और बेचारे गुमशुम से ये भी ना कह सके कि वो तो हर पल बस धड़कते है तुम्हारी खातिर।शायद उस पल धड़कनों का वेग जो तेज हो गया था वो तुम्हें कुछ कहना चाहते थे।पर निःशब्द भावों को नहीं समझ पायी तुम।क्यों तुम्हारे पास होने पर तेज हो जाते है ये और जब तुम्हारे जाने का समय आता है,तो फिर वही धक धक।पर शायद तुम्हें नहीं थी परवाह इन धड़कनों की जिनके धक धक की हर झंकार में बस तुम्हें पाने की इक अधूरी प्यास सी बजती थी,जिसे बस मै ही सुन पाता था,तुम नहीं।क्या तुम्हें महसूस नहीं होता था प्रवाह इन धड़कनों का जब तुम इनको छुती थी।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh79qczK0dkRWVMjJVQhDV6-H-eE-BPdoj1y2b5MXLPuJOvOW3dZB_k2apPO0mlcECuzIk7ZMWalHVD8jp_mMpLH1DufbdGVAoCZJkLCt8yCbpFXUkMs2GNw1yByULWqSyRrr_yyKX8Xmh-/s1600/IMG_632087GirlPaintingHeartIn2008.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh79qczK0dkRWVMjJVQhDV6-H-eE-BPdoj1y2b5MXLPuJOvOW3dZB_k2apPO0mlcECuzIk7ZMWalHVD8jp_mMpLH1DufbdGVAoCZJkLCt8yCbpFXUkMs2GNw1yByULWqSyRrr_yyKX8Xmh-/s320/IMG_632087GirlPaintingHeartIn2008.jpg" width="212" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">होंठों की सक्रियता और आँखों की बेचैनी तो समझ पाती थी तुम पर भावनाओं के उस दबे आशिक इन धड़कनों की फिक्र क्यों ना थी तुम्हें?ऐसा लगता ये धड़कन जल्दी जल्दी से किसी मँजिल तक पहुँचना चाहते है दौड़ कर पर मेरी विवशता के सामने वो भी विवश है।तुम्हारे ना होने पर थोड़े शांत रहते थे वो पर ज्योंही ख्यालों की जमीन पर उतर आती थी तुम धीरे से ये संवेदनाओं की अलौकिक रेस में जुट जाते थे।ख्वाब में आज भी तुम्हें सामने देख कर इन धड़कनों को शायद अब भी तुम्हारे आने का इंतजार है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj531ATe5JmZHGAgoCS5do8ns_D-oOvRJt8JwC6cdDi-rKOnEfkf_ITqVFU3J8J9SzkPlScz8i5PsUTUuhLKqF-nKhBC8OqJsdFgJqKFqw5PX0X2dekaTijsmE0r_64cQ7zH3CCu3gBy_lf/s1600/40759_162134567141827_151833511505266_361352_326607_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj531ATe5JmZHGAgoCS5do8ns_D-oOvRJt8JwC6cdDi-rKOnEfkf_ITqVFU3J8J9SzkPlScz8i5PsUTUuhLKqF-nKhBC8OqJsdFgJqKFqw5PX0X2dekaTijsmE0r_64cQ7zH3CCu3gBy_lf/s320/40759_162134567141827_151833511505266_361352_326607_n.jpg" width="320" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अब शायद सब कुछ रुक सा गया है तुम्हारे जाने के बाद पर आज भी न जाने किसकी खातिर ये धड़कते रहते है।शायद आज भी विश्वास है इन धड़कनों का तुम पर या इनका वो साझा जो इन्होनें तुम्हारी धड़कनों से किया था इन्हें अब भी देता है प्रवाह धड़कने का।शायद जिन्दगी के अंतिम क्षणों में जब साँस छुटने की बारी आये तब भी ये पागल धड़कन माँग ले कुछ वक्त और धड़कने को तुम्हारी खातिर।न जाने कैसा महसूस करते है ये बेवजह धड़क कर ये तो मुझे भी नहीं पता पर सच में इन धड़कनों की बदौलत ही आज भी तुम जिन्दा हो मेरी यादों की भूली बिसरी कहानी में।आज भी इन धड़कनों का फिक्र करने वाला शायद नहीं है कोई पर महसूस करने वाला तो है न।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8Nr3SK7piMEhmmMgACcvsAlpS3uX3ImkZPSiF1-93mvlcZJ0m8jAOZPbio5CQ5myMpuLs81ng2zUMTrxRKwhAn2k2qNpiJm3DudUPBdtxAO7H2-XxCZx2EM9OSgWfqosWaahdRHSRNfiz/s1600/jkjkj.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="254" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8Nr3SK7piMEhmmMgACcvsAlpS3uX3ImkZPSiF1-93mvlcZJ0m8jAOZPbio5CQ5myMpuLs81ng2zUMTrxRKwhAn2k2qNpiJm3DudUPBdtxAO7H2-XxCZx2EM9OSgWfqosWaahdRHSRNfiz/s320/jkjkj.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुमसे दूर होकर हर बार मैने महसूस किया है वो खालीपन जो तुम्हारे संग होने पर कितना भरा भरा सा होता था,जो मेरी साँसों को इक नयी जीवन उर्जा देता था।कई बार दुखाया दिल मैने तुम्हारा पर हर बार मेरा दिल समझा लेता था तुम्हारे दिल को और वो बंधन जो शायद अटूट है हमारे प्यार का जुड़ जाता था फिर से।पर इस बार तुम्हारे जाने के बाद क्या कहूँ बड़ी जोर जोर से धड़कते है ये धड़कन पर इन धड़कनों को कहाँ मालूम की कोई फिक्र ही नहीं उसे जिसकी खातिर बेवजह धड़के जा रहे है ये।कितना भी धड़क ले ये पर वो बिछुड़ा साथी अब कहाँ आने वाला जो शांत कर सके इन धड़कनों को और बस एक बार हाथ रख कर इनपर करा दे ये एहसास इनके फिक्र का।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-75822301328975039892011-06-05T13:25:00.001+05:302011-06-05T13:26:08.222+05:30क्यूँ आकर फिर चली गई तुम?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">सच में कुछ बदलाव तो था इस बार की अपनी मुलाकात में।इस बार वो इंतजार न था और ना था वो प्यार जो मै तुमसे करता था।शायद मुझे भी आभास हो रहा था इसका पर पता नहीं क्यों वो एहसास फिर धड़कनों में समा ही नहीं पा रहा था।वो खुमारी जो झलकती थी मेरी आँखों से और मेरे दिल के धड़कनों के संग धड़कती रहती थी और जो मुझे दिवाना बनाती थी तुम्हारे प्यार का।अब मेरे जेहनोदिल में उतरती ही न थी।कुछ ऊबा ऊबा सा मै तुम्हारे बातों का जवाब देता और तुमसे बात कर ऐसा लगता कि अपने प्यार पर कोई एहसान कर रहा हूँ।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8y3vEQclxR99r9C-CygJUuChJW3qGfLDdodglcq_VGSK-0IHRzzcaosl8aCZ7uyYESX-5_g32lhFiUCh6DKhB3LZV08ptvGhyphenhyphenQXU4Qt1msYzOvwuwkB2QAOUQlY1TNkMnexkj3Ji9KECn/s1600/431433-3511-50.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8y3vEQclxR99r9C-CygJUuChJW3qGfLDdodglcq_VGSK-0IHRzzcaosl8aCZ7uyYESX-5_g32lhFiUCh6DKhB3LZV08ptvGhyphenhyphenQXU4Qt1msYzOvwuwkB2QAOUQlY1TNkMnexkj3Ji9KECn/s1600/431433-3511-50.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">फिर रात होती वैसी ही चाँदनी और दिलकश जैसा हुआ करती थी कभी जब प्यार के मदहोश पलों में खोये रहते थे हम।आँखों में ना नींद होता और ना अपनी बातें कभी खत्म होने का नाम लेती।पर इस बार तो नींद से मानों मुहब्बत हो गई थी मुझे तुम्हारे न होने के दिनों में।बड़ी जल्दी मै सो जाता और तुम बस इंतजार करती रहती।मै वही हूँ,तुम वही हो पर शायद प्यार का तजुर्बा जरा बदल गया है।वो प्यार जो कभी नई रंगत लेकर आया था मेरी जिंदगी में आज बोझ सा महसूस हो रहा था।और उस बोझ तले दबा दबा सा मेरा प्यार फिर जुदाई का डर दे देता था कभी कभी।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">पता था मुझे एक दिन फिर तुम चली जाओगी मुझसे काफी दूर और फिर चाह कर भी बुला ना पाऊँगा तुम्हें।किस अधिकार से आवाज दूँगा तुम्हें।क्या कहूँगा आओ फिर से एक एहसान कर दो खुद पे।तुम मुझसे इतना प्यार करती थी पर शायद मै प्यार के काबिल ही ना था।कई बार तुमने पूछा "क्या कारण है इस बदलाव का" और मै बस यही कहता "सब तो वैसा ही है,कहाँ कुछ बदला" और कोशिश करता अपनी असमर्थता को छुपाने की।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh17UkMHmXMlrMAegClXz2FAtJ8LZtKI4el8pz_OvSSZ7ENXIwrprfRHyRobzcr54aF2urX4aPK7VQh0vXny_aq3fDVVtF2S7vH1Q68Kqw1dvxvVOBR2kXLR4iToEgoUTKTd87bOXra_IAI/s1600/draft_lens2274223module12445947photo_1234082065Cosmic-Painting.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh17UkMHmXMlrMAegClXz2FAtJ8LZtKI4el8pz_OvSSZ7ENXIwrprfRHyRobzcr54aF2urX4aPK7VQh0vXny_aq3fDVVtF2S7vH1Q68Kqw1dvxvVOBR2kXLR4iToEgoUTKTd87bOXra_IAI/s320/draft_lens2274223module12445947photo_1234082065Cosmic-Painting.jpg" width="212" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुमने कहाँ कि शायद अब तक तुम प्यार को जान ही नहीं पाये हो,आज तक जो था वो बस आकर्षण था प्यार नहीं।और मै मौन रह कर शायद हामी भरता तुम्हारे इस बात पर।कभी जब तुम ना होती तो सोचता क्या सच में आज तक मुझे प्यार नहीं हुआ,अब तक जो हुआ वो बस आकर्षण था।फिर सोचता आखिर प्यार कैसा होता है?याद आता वो पहला मुलाकात,वो पहली बार जो हुई थी तुमसे बात।कितना खुश था मै कदम जमीन पर पड़ते ही न थे।लगता था कि सारी दुनिया अब बस मेरे दामन में सीमट आयी है।शायद वो प्यार के कुछ पलों को जीने की ईच्छा दे गया था मुझे उस पहली बात में और प्यार के झोंको ने मुझे बहा लिया था खुद में।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम आई तो ऐसा लगा सदियों से थमी मेरी साँस मानों फिर से चलने लगी हो,ऐसा लगा फिर से जीने का एक बहाना मिल गया हो।जिसे ढ़ुँढ़ता ढ़ुँढ़ता कई बार मै मौत की गलियों से घुम आया था तुम्हारे न होने पर।रात फिर हसीन होने लगी और और तारों ने गुफ्तगु करना चाहा पर मेरे दिवानेपन को देख सभी शर्मा गये और चाँद भी अपनी चाँदनी की सारी छटाये हमारे प्यार पर फैलाता रहा।छत पर मै और तुम एक दूसरे के सामने निहारते रहे अपने प्यार को और यादों के हर एक बीते पन्नों को पलट पलट कर मै तुम्हें दिखाता रहा गुजरी मुहब्बत की बातें।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTcSpcxaSOKCjXXajYKWu1FTQfumKrF8KauuwJrcbgKl38jC97aY3jtJxHUbBkBbm6CDjYF7oYdby60VvgzE43sWu0Bn3wQgvI9iF0uM0YcEJ6lcfHV6U6LKg-2IB48Lkr9s2LvJCSkgqa/s1600/Henri-Martin-xx-The-Lovers.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTcSpcxaSOKCjXXajYKWu1FTQfumKrF8KauuwJrcbgKl38jC97aY3jtJxHUbBkBbm6CDjYF7oYdby60VvgzE43sWu0Bn3wQgvI9iF0uM0YcEJ6lcfHV6U6LKg-2IB48Lkr9s2LvJCSkgqa/s320/Henri-Martin-xx-The-Lovers.jpg" width="272" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">पर आज क्यूँ फिर चली गई तुम बहुत दूर।उतनी दूर जहाँ तक ना मेरी आवाज जाती है और ना मेरी नजर।ढ़ुँढ़ता रहा कई रात यूँही अकेला छत पर तुम्हें।चाँद से पूछता क्या देखा तुमने उसे,पर वो मौन रह कर शायद ये कहता वो तो आज भी तेरे साथ है पर "तू ही बदल गया है रे!" देख एक बार फिर प्यार की नजरों से वो तेरे सामने ही है।और मै शायद अपनी ही भूल के बदले फिर खो देता तुम्हें।फिर जिन्दगी मायूस होकर पूछती तुमसे "क्यूँ आकर फिर चली गई तुम" और मै बेबश होकर अब इंतजार भी ना कर पाता,क्योंकि खो दिया था मैने वो अधिकार भी इस बार।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-53282749024260609642011-05-30T18:02:00.004+05:302022-08-22T20:49:14.676+05:30जन्म दर जन्म भूल गया सब कुछ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">विराट अथाह समुद्र के बीच में खड़ा मै।जहाँ चारों ओर बस दृश्य होता जलमंडल का कभी ना अंत होने वाला छोड़।पवन अपने वेग में समेट कर लाती संदेश इस जलमग्नता का और प्राणश्वासों की विलुप्तता का।अंधकार का सम्राज्य और भी भयावह बना देता इस सम्पूर्ण परिदृश्य को और इक लकड़ी के छोटे नामात्र टुकड़े पर अड़ा मेरा अस्तित्व मुझे मेरी तुच्छता का बोध कराता रहता।जीवन पथ का यह मार्ग कभी संकीर्ण कंदराओं से गुजरता तो कभी विस्तृत जलमंडल से।जहाँ मार्ग में आलोकित करता मेरा राह एक प्रकाश पुन्ज चाँद सा हर दम मेरे साथ चलता।एक क्षण को बुझ जाता हर दीप मन का पर ये चाँद प्रतिक्षण मेरे साथ होता।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvtYSxCGhH5_6z8KjUkI_QPN6Zebdm1d8bb1SQI4JcNq9nan3Npgx76twWkZ52SCsXSbWeEPAzgT_miVHwH3x7uyKN1zAonTHVWHN_1FI1-V1VAFvudQHSKplVXcg0rLbnQJSgs_LDQubC/s1600/Moon+on+Sea.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvtYSxCGhH5_6z8KjUkI_QPN6Zebdm1d8bb1SQI4JcNq9nan3Npgx76twWkZ52SCsXSbWeEPAzgT_miVHwH3x7uyKN1zAonTHVWHN_1FI1-V1VAFvudQHSKplVXcg0rLbnQJSgs_LDQubC/s320/Moon+on+Sea.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">भूलने की ये कहानी मुझे समझ ना आती और भूलता रहता जन्म दर जन्म अपनी सारी जन्मगाथाएँ।भूल जाता सारे रिश्ते जिन्हें सहेजते अपनी कितनी जन्मों की भावनाओं को दावँ पे रखता था मै और अपना सर्वस्व समर्पित करने के बाद भी कुछ और देने की इच्छा रहती थी मन में।उस ममता को भी भूल गया और उस ममतामयी काया को भी।जन्म दर जन्म ममतामयी काया का स्वरुप बदलता रहा और मै भूल गया अपनी बीती सभी जननियों को भी।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जीवन का सत्य जन्म और मृत्यु,जन्म में आनंद की महक और मृत्यु में जुदाई की कसक।इन सभी सांसारिक लक्षणों से मुक्त होकर मै आज आया हूँ यहाँ।जानता हूँ कोई नहीं है यहाँ जो मेरा है,पता है कुछ नहीं है अपना जिसपर अधिकार जता सकता हूँ।पर ये तो बता दो मेरे परमपिता!"तुम कहाँ हो?"तुममे मिलना ही मेरी सम्पूर्णता है।तुम्हारे दर्शन ही मेरे नैनों की नैन पुतलियों की रौशनी है,जिनमें रिक्त है अब तक तुम्हारी प्रतिमूर्ति की छाया।अब तक बस बदलता रहा स्वरुप तुम्हारे कांतिमय काया का पर प्रभू आज इन नैनों की जिद के आगे विवश हूँ।वो तो बस तुम्हारे प्रकाश पुन्ज के प्रकाश से ही प्रकाशित होंगे वरना इन आँखों की रौशनी तो खो ही जायेगी।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJ0B-L4obd5BS6p8TxnghGRVQSnvqBAoYLCMejW46D3iXl1M7kwPIJtzi6fIr0_avRzrJ_U8G0qszwsZeXOqYKXXi8oKN563TttfjKktkqcNH0ekaiH7iZwvfAVXUGGakMOj7mqTMhkI6c/s1600/A15-017.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJ0B-L4obd5BS6p8TxnghGRVQSnvqBAoYLCMejW46D3iXl1M7kwPIJtzi6fIr0_avRzrJ_U8G0qszwsZeXOqYKXXi8oKN563TttfjKktkqcNH0ekaiH7iZwvfAVXUGGakMOj7mqTMhkI6c/s320/A15-017.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">नभ की ओर हाथों को फैलाकर,चारों दिशाओं को एक संग आधार बनाकर आज करना है तुम्हारा आह्वाहन।अंतर्मन से पुकारना है तुम्हें और लहु की हर बूँद का कतरा कतरा भी न्योछावर कर आज तुम्हारे वास्ते मर मिटना है।पता नहीं ये मेरी भक्ति है या समर्पण की शक्ति है पर ऐसा लगता है आओगे तुम।तुम्हारे आने पर नभ से सुगंधित पुष्पों की वृष्टि होगी।धरा खुशहाल होकर स्वागत गीत गायेगा और जलमंडल अपने खारे जल को विशुद्ध पावन बना कर तुम्हारे पावँ पखारने निकल पड़ेगा।सभी जीव,प्राणि तुम्हारे आगमन की उत्सुकता से ऐसा कोलाहल मचायेंगे जो एक संगीतमय वातावरण निर्मित करेगा।मेरा अस्तित्व जरा तुच्छ सा होगा इन विराट ब्रह्मांड के नायकों के समक्ष पर प्रभू जिसके दर्शन को सब नैन बिछायेंगे उसको तो मै अपने मन के मंदिर में ही देख लूँगा आँखें बंद कर।जिससे मिलने सम्पूर्ण संसार आगे बढ़ेगा उसे तो मै बस मन के नगर में एक कदम उतर कर ही पा लूँगा।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGm8orbJ5M8WJgCtyZqUKFlDRBNY94xWQbGqmS25lmuTaoLEExr0tNsgf1qF_QJT03V7E5GpBX24xssthw-cc9_uJaUzQJ40GINejLtJL0TmC35eOlgfWq9zYgB8KY7m0n9oKZv24Yk1qx/s1600/418609519_034f83f234.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGm8orbJ5M8WJgCtyZqUKFlDRBNY94xWQbGqmS25lmuTaoLEExr0tNsgf1qF_QJT03V7E5GpBX24xssthw-cc9_uJaUzQJ40GINejLtJL0TmC35eOlgfWq9zYgB8KY7m0n9oKZv24Yk1qx/s320/418609519_034f83f234.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">वास्तविक जीवन के वास्तविक परिचायक मेरे प्रभू तुम चिर काल से चिर काल तक मेरे पालक और संरक्षक हो।माँ-बाप,भाई-बहन अन्य सारे रिश्ते बस क्षणिक है,जिनके अस्तित्व को ताउम्र महसूस कर सकना संभव है पर जन्म दर जन्म याद रखना असम्भव।जन्म दर जन्म भूलता गया हर बात जिस बात में मै था,तुम थे और शायद कभी हम सब थे।भूल गया वो जगह जहाँ कभी मै और तुम हँसते थे,रोते थे और कई बार जागते और फिर सोते थे।बस याद रहा वो राह और राह में आलोकित वो प्रकाश पुन्ज,जो शायद तुम ही हो मेरे प्रभू।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-62503467277939077022011-05-26T15:33:00.003+05:302011-05-27T11:40:50.531+05:30नई जिन्दगी की एक नयी सुबह<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">शंकाओं से भरी हुई वो सुबह,अनिश्चिताओं के हजारों किरणों को खुद में समेटे जगाता रहा मुझे।पुरानी जिन्दगी यादों के पन्नों में सीमट गयी और नयी जिन्दगी भविष्य के सपनों को कही दूर मुझे दिखाती दे गयी एक भोर।इस सुबह कोई ना था।सब अजनबी थे मेरे आसपास।बस अकेला मै और मेरी बदली हुई नयी जिन्दगी,जिसमें आशाओं के बादल हल्के हल्के घिर जाते थे कभी और एक नयी शुरुआत का आस्वासन दे जाते थे मुझे।कभी कोई शोर कानों से टकरा जाता और कभी कोई विचार मोड़ देता राह मेरी जिन्दगी का।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvE-Rju6IvffH_xwatbsi0rcJm-v1u6SBcgszix5o-BWkdS92-ZfUrruI8nFYvHhIWDaRRekrTO2-Mj44AWZcBBO2Rk4CjePc2qloj6-6YsImlyXhiH45I3g1j_5yHmK2B0HZGc1ygxHEb/s1600/from-mt-pisgah.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="227" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvE-Rju6IvffH_xwatbsi0rcJm-v1u6SBcgszix5o-BWkdS92-ZfUrruI8nFYvHhIWDaRRekrTO2-Mj44AWZcBBO2Rk4CjePc2qloj6-6YsImlyXhiH45I3g1j_5yHmK2B0HZGc1ygxHEb/s320/from-mt-pisgah.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">सोचता मै बैठा बैठा क्या संघर्ष की शुरुआत होने वाली है या संघर्ष का ही दूसरा स्वरुप है यह आया हुआ सुबह।इस भोर में बहुत कुछ नयापन है,उजड़े हुये स्वप्न घरौंदे है जिन्हें चुन चुन कर फिर से बनाना है मुझे अपने सुनहरे भविष्य का कल।लड़ना है मुझे रिश्तों की डोर के हर एक उस एहसास से जो कमजोर करता है मुझे।समझना है नये रंग और रुप को और खुद को भी रंग लेना है उस रंग में।देखना है आकाश की उन ऊँचाईयों को जो मेरे घर के छत से काफी दूर है।पाना है हर उस मुकाम को जो इस नयी दुनिया में बड़ा दिखायेंगे मुझे।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कल्पनाओं की मेरी नगरी से बिल्कुल अलग सा है यह नया संसार।भावनाओं की कमी और इंसानियत का थोड़ा अभाव है यहाँ।संवेदनाओं को रौंद कर ही शायद मिलती है यहाँ पहचान और पैसों के बिस्तर पर ही शायद पाते है सभी सुकुन यहाँ।कभी सोचता शायद ये दुनिया मेरे लिए नहीं,मेरे लिए तो वो पुरानी दुनिया ही भली थी।पर फिर जब पिछे मुड़ कर देखता तो दूर दूर तक बस खाली खाली सा नजर आता।शायद छुट गया काफी पिछे वो बचपन का जमाना कही किसी स्मृति में।अब तो एक जिम्मेवार व्यक्ति बन कर नई दुनिया की नागरिकता हासिल करनी है मुझे।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhqk-x_F1h9Yl935-kYHFOssb_dKuJBMuyZHND-hmYG96Y49HrUj2vzuJWAtUtmbzfFgB3Z_lwYH15XnBg0DRrWs79L4Te-0XZ5uh0Ng8jXLHzO9wZffGMAUUBz2L_iF4bXmmBPj-BLixfz/s1600/new_morning_race_horse_oil_paintings__abstract_equine_art_by_texas_artist_laurie_pace_1_cde695730ccb592c886cb95785a82ddb.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhqk-x_F1h9Yl935-kYHFOssb_dKuJBMuyZHND-hmYG96Y49HrUj2vzuJWAtUtmbzfFgB3Z_lwYH15XnBg0DRrWs79L4Te-0XZ5uh0Ng8jXLHzO9wZffGMAUUBz2L_iF4bXmmBPj-BLixfz/s320/new_morning_race_horse_oil_paintings__abstract_equine_art_by_texas_artist_laurie_pace_1_cde695730ccb592c886cb95785a82ddb.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">सारे शौक और मेरे सारे हसरत दम तोड़ते रहे,चिल्लाते रहे पर जिन्दगी के भागदौड़ में भागता भागता मै शायद बड़ी दूर निकल आया था।बस एक बार भी पिछे मुड़ कर देखने की फुरसत कहाँ थी अब तो।अब ना थी वो शाम की तन्हाईयाँ जिसमें चुपचाप एकांत में चलता मै मीलों की दूरी तय करता।खुद से बातें करता और अपने दिल की भी सुनता।ना था वो सुनहरा सुबह जब सबसे पहले उठकर सूर्यनमस्कार करता और फिर योग और ध्यान।अब तो बस मेरा वजूद किसी का गुलाम था।पहले तो एक दिन में कई काम होते थे मेरे,पर अब मेरा पूरा दिन बस किसी एक काम को ही करते करते गुजर जाता।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हाँ,एक बात थी इस नयी जिंदगी में बड़ी चैन की नींद नसीब होती थी पर यहाँ भी सपने तोड़ देते थे मेरी खुशियाँ और मेरी जिम्मेवारी फिर जगा देती थी मुझे।दुनिया तो था कहने को नया,पर जिन्दगी में कुछ भी ना था नया।बस रेस जो कभी खत्म ही नहीं होती।रोज सुबह,रोज शाम और फिर वही बेचैन की नींद जो चैन सी लगती।कभी ये जिंदगी ना देती समय सोचने को कुछ बस कहती बढ़ते जाओ।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiR4hsZRCfCaDfMMaXa4wdUakUMP6O88pw4gLzj8MUBBf6pYqc5F6mVP9ndyyp3u3NirKpzeB1WRBj6NFycycX-YHYkSUhqre5K4AhFXq2JhZLgxdHhFXlUzi4KJsl9tPO_QlZlyJx7x2oX/s1600/Half+life+2+done+right.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiR4hsZRCfCaDfMMaXa4wdUakUMP6O88pw4gLzj8MUBBf6pYqc5F6mVP9ndyyp3u3NirKpzeB1WRBj6NFycycX-YHYkSUhqre5K4AhFXq2JhZLgxdHhFXlUzi4KJsl9tPO_QlZlyJx7x2oX/s320/Half+life+2+done+right.JPG" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">एक एक कर टुट गया हर ख्वाब,दफन हो गयी मेरी सारी ख्वाहिशे और जलता रहा मेरे सपनों का वो घर जिसकी नींव मैने चैन के उस हर रात में रखी थी जब कल्पनाओं का आकाश ही मेरा छत था और मेरे विचार उनपे टिमटिमाते तारों से थे जो मेरी जिन्दगी के हर रात को जगमग जगमग करते थे।पर शायद इस नयी दुनिया में महत्व नहीं है मेरे विचारों और मेरी कल्पनाकाश का।यहाँ शायद मेरी भावनाओं की भी कद्र नहीं है जो अक्सर मुझे बहुत ही बड़ा स्थान दिलाते थे कभी पर अब यही मेरी कमजोरी से बन गये है।मेरी नयी जिन्दगी की एक नयी सुबह का यह सुबह शायद पहला और आखिरी ही है मेरे लिए।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-58922187080187807022011-05-16T18:06:00.002+05:302011-05-16T18:14:20.540+05:30"वक्त ने मुझे बड़ा बना दिया-पापा"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अपने सभी अरमानों को दबा लिया दिल में ही कही और किसी से ना कुछ कहा।कई ख्बाव जो पलते थे आपकी आँखों में दिन-रात उसे आपने मेरी आँखों को सौंप दिया।क्यों किया ऐसा आपने,बस मेरे लिए ना पापा!आप हरदम बस सोचते रहे हमारी खुशी के लिए और मै कुछ ना समझा आपके प्यार को।वो आपका प्यार ही तो था जो मुझसे बार-बार बातें कर मेरे बारे में पूछना और कुछ ज्यादा ना कह पाना।मेरे उज्जवल भविष्य के लिए दिन रात यहाँ से वहाँ आपका भाग-दौड़,कुछ ना समझ पाया मै।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaLBYUfIWi85XBjmNXWR8Oh2Ed0xt-GAseaA1UE1PAyXBJvUzqpkkAE_8351Utxpe9ZcpsVS4sHkhnEAmak3dtcaRWzZ8mE_nm_hgNKbowg1DOGXMJeGqM3n4atb3EMh_gDMF_n1C7m-5I/s1600/darkness.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaLBYUfIWi85XBjmNXWR8Oh2Ed0xt-GAseaA1UE1PAyXBJvUzqpkkAE_8351Utxpe9ZcpsVS4sHkhnEAmak3dtcaRWzZ8mE_nm_hgNKbowg1DOGXMJeGqM3n4atb3EMh_gDMF_n1C7m-5I/s1600/darkness.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">बचपन से किताबों में पढ़ता आया माँ की ममता के बारे में।माँ की ममतामयी छाया में भूल गया शायद कि एक ऐसा दिल भी है,जो बहुत प्यार करता है मुझसे।आज जीवन के मायने बदल रहे है शायद अब मै बड़ा हो गया हूँ।उतना बड़ा की अब अपने जीवन के बारे में गम्भीरता से सोच सकूँ।मेरे लिए जीवन के कई रुप है परिवार,दोस्त,प्यार और कैरियर बहुत कुछ है।पर एक शख्स जिसकी हर आहट में मेरे कदमों का ही चिन्ह झलक जाता है,वो शख्स बस आप है पापा।जो बस मेरे लिए सोचते है,मुझसे बहुत प्यार करते है।पर शायद मै आपके इस प्यार की छतरी ओढ़े खुद को न जाने क्या समझ बैठता हूँ।अपने अस्तित्व की पहचान को ही गुमनाम कर बैठता हूँ।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkpuIxSjJCITwMPZGxMo7atE85mmdj3bORuCjmd8kmVoNnSGqAfkFz0tZ-1fiw7EonvU6EPCs3A7kCGmreLxr8AHUmyyIAQjWkR2uMXeWBjS-ptIADoWXlJ8NoCy5IyGwzofmAE547lkG1/s1600/father.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkpuIxSjJCITwMPZGxMo7atE85mmdj3bORuCjmd8kmVoNnSGqAfkFz0tZ-1fiw7EonvU6EPCs3A7kCGmreLxr8AHUmyyIAQjWkR2uMXeWBjS-ptIADoWXlJ8NoCy5IyGwzofmAE547lkG1/s320/father.jpg" width="222" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">आपका बार-बार कहना बेटा इस बार घर आना ऐसा प्रोग्राम है और मै तो अकड़ कर ही रह जाता।शायद क्या सोच लेता मै।समझ ना पाता क्यों जब बस एक हफ्ते ही हुये होते मेरे घर से आये आप मुझे फिर उसी उत्साह के साथ बुलाते।और इस अनोखे प्यार को तो मै अपनी सफलता का अवरोध मान लेता।शायद उस रोज जब मै सफलता की ऊँचाईयों को छू रहा होउँगा,यह निमंत्रण और प्यार फिर से पाने की इक अधूरी ख्वाहिश दिल में जगेगी।पर शायद समय कुछ बदल सा गया होगा उस वक्त।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कहा गया है कि "चीजों की कीमत मिलने से पहले और इंसान की कीमत खोने के बाद पता चलती है"।आँसू भी बरबस आँखों में तब आते है,जब आँसू पोंछने वाला बड़ी दूर जा चुका होता है।इंसान सोचता है समय को पकड़ लूँ अपने तो संग है ही पर शायद ये समय ही सभी अपनों को भी किसी भोर के सपने सा बना देता है।जिसके टुटने पर दिल को बहुत दुख होता है,क्योंकि भोर का सपना शायद भविष्य का सच होने वाला होता है।नहीं पता मुझे ये क्या है जिसके कारण जब आप सामने होते है तो कुछ ना कह पाता हूँ और ना दिखला पाता हूँ।पर एहसास बाद में कचोटने लगते है मन को और ऐसे ही जब बिल्कुल अकेला हो जाता हूँ,तो अपने उस परिवार की याद आ जाती है,जहाँ सब को मेरी चिंता रहती है,बस मेरी।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQMyUo6jWgmgs6cXOXmrBPDor27N8hLxJlhc1mEVBXjzJu_VJ2iLiqkrxneKrb8kwj3snrEtOzDd9bEpBQ9M1GMjShQh1sMhYDNgh70-zMasEYya5MinOFKdWRQPS3XYNYN83nhsvwScJU/s1600/Father_and_Son_BW.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="203" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQMyUo6jWgmgs6cXOXmrBPDor27N8hLxJlhc1mEVBXjzJu_VJ2iLiqkrxneKrb8kwj3snrEtOzDd9bEpBQ9M1GMjShQh1sMhYDNgh70-zMasEYya5MinOFKdWRQPS3XYNYN83nhsvwScJU/s320/Father_and_Son_BW.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">पूरी दुनिया में शायद बहुत कम लोग ही ऐसे है जो सोचते है मेरे बारे में।मेरी खुशियों में मेरे साथ होते है और मेरे दुख में छुप-छुप कर आँसू बहाते है।शायद समय उस दहलीज पे भी लाकर खड़ा कर दे एक दिन जब कोई गुमान ना हो खुद पे।वो जिद ना हो,वो चाहत ना हो और ना हो वो फरमाईश।जो मै अक्सर करता था आपसे और आप झट से पुरा कर देते थे उसे।कभी ये ना सोचते थे क्या गलत है और क्या सही,बस मेरे लाडले की खुशी है,सब ठीक है।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कभी कभी जो आपका दिल दुखा देता हूँ पापा बहुत अच्छा लगता है।खुश होता हूँ मै ये सोचकर कि आपको तो मेरी भावनाओं की कद्र ही नहीं।पर अब तक असमर्थ हूँ आपके भावनाओं को देख पाने में जिसमें कुछ नहीं है,कोई चाहत नहीं जीवन के उड़ानों का उसमें तो बस मेरी तस्वीर है बचपन से अब तक की।यादें है वो जो शायद अब याद नहीं आते।मेरी हर एक फरमाईश और ख्वाहिश से भरी हुई है आपकी भावनायें।जिसे मैने अपने जीवन में स्नेह का अभाव मान लिया था,वो तो बस मेरे प्रति स्नेह के अगाध पुष्पों से सजा हुआ है।आपकी वो बात "बेटे,मेरे जाने के बाद मेरी बहुत याद आयेगी तुम्हें देखना!"आज आपकी कोई कही हुई बात नहीं बस एहसास है जो अब भी उस काँधे को तरसता है जहाँ से देखता था मै सारी दुनिया।अब भी उन ऊँगलियों को पकड़ना चाहता है,जिसे थाम कर खुद को सबसे खुशनसीब समझता था।वो डाँट आपकी जिसे सुन बहुत बुरा लगता था,फिर सुनना चाहता हूँ।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRLoneD22POGo3wf38086j1-bVbRp5kvbQZap8393wAacSmktPY1f9pZMJvEU1HJ3O_JQ4XTqDnKc8WHWtyJYoxhbK1GiJVEVAg98AYi0qAxX2_wv9LBcgoN3dm5HYQM6sZKjI21cqZkIL/s1600/b%252Cw%252Cbaby%252Cchild%252Cchild%252Chands%252Cman%252Cchildren%252Cdad%252Cdaddy%252Cfather%252Cfather%252Cand%252Cson%252Chand%252Chands%252Clove%252Cman%252Cmonochrome%252Cphotography%252Ctender-f666dd7c09203f13a5bd109309b913ab_m.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRLoneD22POGo3wf38086j1-bVbRp5kvbQZap8393wAacSmktPY1f9pZMJvEU1HJ3O_JQ4XTqDnKc8WHWtyJYoxhbK1GiJVEVAg98AYi0qAxX2_wv9LBcgoN3dm5HYQM6sZKjI21cqZkIL/s1600/b%252Cw%252Cbaby%252Cchild%252Cchild%252Chands%252Cman%252Cchildren%252Cdad%252Cdaddy%252Cfather%252Cfather%252Cand%252Cson%252Chand%252Chands%252Clove%252Cman%252Cmonochrome%252Cphotography%252Ctender-f666dd7c09203f13a5bd109309b913ab_m.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जिन्दगी में जिस छावँ के तले पलता हुआ बचपन से अपनी जवानी गुजार दी वो छावँ ही अब मुझे जलन देता है,तपाता है मुझे और मेरे शरीर को और उसे छोड़ काफी दूर निकल जाता हूँ मै।वक्त के पहियों पर दिन-ब-दिन गुजरता रहता है हर पल और अपनी सभी ईच्छाओं को दफन करता जाता हूँ दिल में कही।वो बातें जो बिना आपसे कहे सार्थकता नहीं पाते थे,अब तो बस जुबान से दिल में ही दबे दबे रह जाते है।शायद अब जरुरत नहीं मुझे उस काँधे की,उन ऊँगलियों की जो अब भी बुलाते है मुझे रोज।अब तो मै खुद ही खड़ा-खड़ा देख लेता हूँ सारी दुनिया।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ऐसा लगता है "वक्त ने मुझे बड़ा बना दिया है-पापा"।शायद उतना बड़ा जहाँ से बस लम्बी-लम्बी ईमारते दिखती है।बस सितारों की रौनक दिखती है,पर वो दिल की चाहत नहीं दिखती जो अब भी गले से लगाने को बेकरार है मुझे।जो इतना बड़ा होने पर भी मुझे आज उतना ही छोटा समझता है जितना मै था कल तक।अब भी भीड़ में मै ढ़ुँढ़ता हूँ उस शख्स को जिसकी आँखों में मेरे लिए बस प्यार ही प्यार है।यकीनन वो मेरे पापा ही है,जो आज भी मेरी आँखों से देखते है मुझे और कभी-कभी जो ठोकर लगती है,गिरने को होता हूँ तो थाम लेते है मुझको।और मै कितना भी बड़ा होकर फिर से छोटा बहुत छोटा हो जाता हूँ उनके सामने.....। </span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-73301991458576245522011-05-11T13:59:00.004+05:302011-05-11T14:56:43.399+05:30अब तो तुम हो साथ मेरे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हरी हरी घासों पे लेटा,खुले आसमान के निचे संसर्ग की उन्मादकता का स्वागत करता मै।तुम्हारी नीली आँखों में गगन की सारी उड़ानों को ढ़ुँढ़ता और तुम्हारे स्पर्श से मेरे रोम रोम में हर्ष की इक नयी कली का मानों प्रस्फुटन होता।तुम्हारे साथ होने का ये आभास कही कोई कोरी कल्पना तो नहीं।खुद को विश्वास दिलाने के लिए बार बार मेरा तुमको किया गया स्पर्श इन मिलन के क्षणों का मूकदर्शक बन जाता।आँखे मूँद कर आज मन के दर्पण को पूर्णतः साफ कर बीते सभी पुराने अतीत की यादों को पोंछ देता और उस दर्पण से साफ साफ देखता सुनहरे भविष्य के आने वाले हर एक पल को जिसमें तुम्हारे साथ मै जिन्दगी के हर एक अधूरे ख्वाबों को गढ़ता जिन्हें पूरा करना अब मेरी जिन्दगी का एकमात्र लक्ष्य था।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfRJdT-tCoTTSOjzrvIGaikPQSO0Olqa2S_SnGsGrm8fayK551IrokLzq93L6TKQ39lmaj1AUSIPfX-rtKVLZ27yMFkdn3DySNuUWcT9AXdlqvP13FOkjvDgyM7dO9hCsic6G-W9R6wylQ/s1600/154746_169824913039459_151833511505266_403595_282355_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfRJdT-tCoTTSOjzrvIGaikPQSO0Olqa2S_SnGsGrm8fayK551IrokLzq93L6TKQ39lmaj1AUSIPfX-rtKVLZ27yMFkdn3DySNuUWcT9AXdlqvP13FOkjvDgyM7dO9hCsic6G-W9R6wylQ/s320/154746_169824913039459_151833511505266_403595_282355_n.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">सुबह सुबह चिड़ीयों का चहचहाना,कई मिन्नतों के बाद तुमको फिर से पाना और मन की बेसुध बाँसुरी से निकलता वो राग पुराना।सब के सब मिलन के इन क्षणों को एक अलौकिक स्वरुप देते और मेरा प्यार चुपचाप दिल के किसी कोणे से कुछ कहना चाहता।शायद तुम्हें अब साथ देखकर कुछ डर सा हो रहा था उसे क्योंकि जुदाई के हर एक दर्दभरे कल को उसने अपने अस्तित्व की संरचना का एक हिस्सा मान छुपा लिया था खुदमें।उसने ही बस महसूस किया था तुम्हारे विरह की अग्नज्वाल का जिसमें जलता जलता वो अब तो बेरस सा हो गया था।मिलन और जुदाई दोनों एक सा ही लगता था उसे पर आज तुम्हें देख फिर से मानों पा लिया उसने अपना खोया अस्तित्व।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjh8siQgh8X6gxe9K6Qei0nmgDf0_a2hPGwqvv9zhFM60NjU2PrFdnJk2TNgSRfggychorTiTjMy97OmSVrUcgGGR1ZsguCrUe4n4ZE1PDxn8Db-oDtaB5NbiRjJkHwrolcnJ07IM40jRhM/s1600/182459_147985781927165_100001472328042_286847_8142471_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="306" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjh8siQgh8X6gxe9K6Qei0nmgDf0_a2hPGwqvv9zhFM60NjU2PrFdnJk2TNgSRfggychorTiTjMy97OmSVrUcgGGR1ZsguCrUe4n4ZE1PDxn8Db-oDtaB5NbiRjJkHwrolcnJ07IM40jRhM/s320/182459_147985781927165_100001472328042_286847_8142471_n.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">लवों पे आते कितने बात और कितने बात दिल में ही दबे दबे घुटते रहते।पर हम तो कुछ ना कहते अब बस देखते रहते तुमको।तुम्हारे चेहरे पे आयी वो स्वर्णमयी स्याह लकीरें मेरे अंतरमन के सुसुप्त तारों को एकाएक झंकृत करती और तुम्हारे संग का एहसास बुझा देता मेरे मन के प्यास को जो न जाने कितनी सदियों से,कई युगों से तुम्हारे आने की आश लिए जी रहा था।तुम पूछती "क्या तुम्हें याद नहीं अपने प्यार की वो तमाम रातें"?और मै बेचारा कैसे बताता कि उन रातों की यादों के संग ही तो जी रहा था अब तक।तुम्हें क्या पता उन बिते हर एक रातों में तुम ना होकर भी मेरे कितने पास होती थी और मेरा प्यार कैसे तड़पता था तुम क्या जानों।मै तुमसे कहता "तुम्हें याद है सब"।तो तुम बस इतना कहती "हाँ हर एक बात और तुम्हारे प्यार का साथ सब याद है मुझे,कभी नहीं भूल सकती मै"।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2hJrK9KePyvPpKAYTjZJWMltwuLm5HUDdbBiTpDNcMloSn-7I5HCaRlQMHzR1uHKr75-nHxNs85rMO-lXJ1YRNOBWWOxivqylx_k5j0ZT3m1MuKY-93TrIOng_XvrdjH8Cyw2eEBIJDVE/s1600/lovers.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="234" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2hJrK9KePyvPpKAYTjZJWMltwuLm5HUDdbBiTpDNcMloSn-7I5HCaRlQMHzR1uHKr75-nHxNs85rMO-lXJ1YRNOBWWOxivqylx_k5j0ZT3m1MuKY-93TrIOng_XvrdjH8Cyw2eEBIJDVE/s320/lovers.jpg" width="320" /></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">आसमां से उतरता कोई फरिश्ता अपने हाथों में दुनिया की सारी खुशियाँ लेकर आता और धिरे से हमारी झोली में रख चला जाता।मै कुछ कदम बढ़ाता तुम्हारी ओर और तुम अब बिल्कुल करीब होती मेरे।माहौल में फूलों की सौरभता सा बिखर जाता यादों का हर एक मंजर जिसमें मिलन और विरह दोनों का समावेश होता।यादों का आईना चकनाचूर हो जाता और हर एक टुकड़े में कही तुम्हारे साथ और कही खुद को अकेला देखता मै।फिर रात आती और थोड़ी बदली बदली सी रंगत के संग एहसास दिलाती कि "अब तो तुम हो साथ मेरे"।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_lYequ7QpA2WFkS3GdPOH-jJeiOPiI3bWDiNCCV-xtZ9GBJDuWyCrEBqXP8lM6B8DWgdNy-9SCyv3dNjnvkByRTYCzLR2MCgPhiLH_3s1IZnupaV67gYPMXJ45y9t_Hz4CJ3ywQpSt3OE/s1600/eyes_and_moon_lovers.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_lYequ7QpA2WFkS3GdPOH-jJeiOPiI3bWDiNCCV-xtZ9GBJDuWyCrEBqXP8lM6B8DWgdNy-9SCyv3dNjnvkByRTYCzLR2MCgPhiLH_3s1IZnupaV67gYPMXJ45y9t_Hz4CJ3ywQpSt3OE/s1600/eyes_and_moon_lovers.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">दूर दूर तक कुछ ना दिखता अपने प्यार के सिवा और राहों में बिछा होता सुनहरे प्रेम के प्रणय गीतों में सराबोर तुम्हारे संग का रंगीन चादर।फूल बिछे होते चाँदनी रातों में जब मै तुमसे फिर करता अपने प्यार की दो बातें और तुम बिना कुछ सुने कहती "मुझे तुमसे इतना प्यार क्यों है जानां?"हर पल बस तुम्हारे बारे में सोचती और हर दिन तुमसे मिलने की चाहत लिए दरवाजे पर निगाहें गड़ाये क्यों करती हूँ तुम्हारा इंतजार।और मै बस यही कह पाता "शायद ये प्यार अब कुछ विशेष है,जो विरह की अग्नज्वाल में तप तप कर स्नेह और अनुराग का मिश्रित स्वरुप बन कर प्रेम की प्रकाष्ठा का आलोप है।"इस विशिष्ट प्यार का ही तो परिणाम है कि एक बार फिर तुम हो साथ मेरे।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-42882712667468895192011-05-03T23:28:00.002+05:302011-05-03T23:30:39.573+05:30जीवन के वीरान राहों में फिर तुम्हारा साथ चाहिए....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">वो राह जीवन का जिसपर हम हमेशा साथ होते थे।मीलों साथ चलते और कुछ ना कहते थे।बस तुम्हारे साथ की खुशी ही तो मुझे लम्बे फासलों के दर्द को भी महसूस नहीं होने देती।रास्ते चलते,हम चलते और समय भी भागता रहता अपनी रफ्तार से बस थमी होती तो ये दिल की धड़कन।लगता ऐसा कि काश यूँही सफर चलता रहता और ना होती कभी भी शहर इस रात की।इस रात में हमदोनों बैठे होते चुपचाप एक दूसरे के सामने और पूछते दिल से दिल की बात।घंटों मौन रहने की आदत जो पहले ना थी मुझमें पर तुमने सीखाया था अपने जाने के बाद।कितने अधूरे और अप्रकाशित ख्वाब मेरे अब भी शायद दिल के किसी कोणे में पड़े इंतजार कर रहे थे स्वयं के पूरे होने का।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgczV8riNyXZaRMCHb9q8IZCBxfePHZ5dBOEMQ9Ayfrh0SXwnMBtzfWdFUi6hpadN6jmvqWASfEe9-hpDlqAOGKkrg_VOUsSAVaFJ_lA4VeY7fmgpo09aw5Si66W_eGOQ0WCwagO_vr7w-X/s1600/Moon_lit_lovers_by_jmc265.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="224" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgczV8riNyXZaRMCHb9q8IZCBxfePHZ5dBOEMQ9Ayfrh0SXwnMBtzfWdFUi6hpadN6jmvqWASfEe9-hpDlqAOGKkrg_VOUsSAVaFJ_lA4VeY7fmgpo09aw5Si66W_eGOQ0WCwagO_vr7w-X/s320/Moon_lit_lovers_by_jmc265.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">प्रिया! क्या तुम भूल गयी वो सारी बातें जो मैने बस तुमसे कहने के लिए सुंदर शब्दों में पिरोकर कागज के टुकड़ों पर बार बार लिखता और मिटाता दिन भर बनाता रहता और रात को तुमसे कहने की कोशिश में घंटों यूँही बिता देता।क्या ये शर्म थी मेरी या ह्रदय की अधीरता जो मै तुम्हें वो कभी ना कह पाता जिसे कहना शायद जरुरी था तुमसे।असंख्य शब्दों के शब्दकोश से बस दो चार गिने चुने ही शब्द चुन पाता जिसे तुम्हारी उपमा से अलंकृत करता।पर फिर भी मेरी विवशता न जाने क्या थी जो उन गिने चुने शब्दों में से भी बस कुछ शब्द ही कह पाता।शायद तुम्हारी उपमा के भाव से परे थे वो शब्द या मेरे लब्जों पे आके संकुचित हो जाते थे वे।वो दूर तक तुम्हारे साथ जाने के लिए मेरा दौड़ा दौड़ा आना और बस तुम्हारे पास आकर इतना कहना "क्या चलोगी तुम साथ मेरे"।इन शब्दों से मै पूछता था क्या वीरान जीवन के इस खामोश सफर में मेरा साथ दोगी तुम।इजहार प्यार का कर तो देता पर शायद तुम मेरे इस अंदाज को समझ ना पाती और बस इस पेड़ से उस पेड़ तक जाती और कहती "हो गया ना"।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtj_HWxmsxNcJJ6vCsJlpMSaaDkGU7cutCeR7mrE2g4i6Fm8E1b2NDqw5qltgEjTbwZT8fVAGWZwDwx8vPlQl5RUAIyDARnhCf6uih8QXjsDHV5Dnoi-fgtZPlwnkxD69AcuNbrE-EPerO/s1600/autumn-leaf-litter-frank-wilson.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtj_HWxmsxNcJJ6vCsJlpMSaaDkGU7cutCeR7mrE2g4i6Fm8E1b2NDqw5qltgEjTbwZT8fVAGWZwDwx8vPlQl5RUAIyDARnhCf6uih8QXjsDHV5Dnoi-fgtZPlwnkxD69AcuNbrE-EPerO/s320/autumn-leaf-litter-frank-wilson.jpg" width="251" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">यादों के पत्तें अब भी झरते रहते है उस पेड़ से जहाँ से तुम चलती थी साथ मेरे।और मेरी विवशता पे हँसते है वे सारे मौसम जिन्होनें देखा था मुझे साथ तुम्हारे सदियों से सदियों तक।मेरा तुम्हारे साथ चलते जाना और मँजिल पर आकर ये एहसास होना सफर तो खत्म हो गया।कई रोज उन वीरान राहों पे आहटे तुम्हारी आती थी मुझे लगता था कि आज फिर तुम साथ चलोगी मेरे इस पेड़ से उस पेड़ तक।पता है शायद जिन्दगी अब इस पेड़ से उस पेड़ तक ही सीमट के रह गयी है और प्यार के हर एक किस्से मानों इन राहों में ही खुद को ढ़ुँढ़ते फिर रहे हो।वे किस्से जो ना तो कभी कहे मैने तुमसे और ना ही सुना तुमने कभी।वो बस दिल की दहलीज से झाँक कर यादों के मौसम को देख लेते है कभी कभी और अपनी दास्ता बयां करते है खुद ब खुद मेरे दिल में।तुम्हारे साथ की कल्पना में हर पल गुजरे कल में रहना ही आज मेरी पहचान है,शायद वो भूत ही मेरा वर्तमान है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhImWygGORwLVKSBka_XzCj2gLfWYMvTAkhdivUPc6ZafI7FiAKYQ2CiqsZ6A121TC_hoDyuc_sQ9szzuwaa7LeQZeRRWeiIitlAIjXHGqXfjVONnzEvScQwB2b8SmZlKc840nhdQJANuKc/s1600/lowroad.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="223" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhImWygGORwLVKSBka_XzCj2gLfWYMvTAkhdivUPc6ZafI7FiAKYQ2CiqsZ6A121TC_hoDyuc_sQ9szzuwaa7LeQZeRRWeiIitlAIjXHGqXfjVONnzEvScQwB2b8SmZlKc840nhdQJANuKc/s320/lowroad.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">पतझड़,बसंत और न जाने कितने मौसम ने कई बार मुझे भींगाया है,वो राह भी भींग जाता है और वो दोनों पेड़ जहाँ से चलकर जहाँ तक चलती थी तुम साथ मेरे वो भी अपने पत्तों के संग भींगते रहते है।पतझड़ के बाद नये पत्तें मानों भविष्य की रुपरेखा गढ़ते है और बिखरे हुए सूखे एक पत्तें को सम्भाल कर रख लेता हूँ मै अपने पास।उस एहसास को जो मुझे तुम्हारे साथ होने का झूठा दिलासा दिलाता है और भींग भींग कर पेड़ के सारे पत्तें मेरे अंतर्मन को भी कभी भींगो जाते है।आँखों से कभी बरस लेते है यादों के मोतियों को लुटाते और कभी हँस कर अपना गम भी छुपा लेते है सबसे।अब भी राह देखता है वो सूखता पेड़ शायद तुम्हारे स्पर्श का,अब भी वो राहें सूनसान ही रहती है शायद तुम्हारे बिना।बस एक बार ही उन राहों को आबाद कर दो तुम और वीरान राहों में फिर एक बार मेरे साथ चलो ना इस पेड़ से उस पेड़ तक।आज भी लगता है कि शायद मुझे जीवन के वीरान राहों में फिर तुम्हारा साथ चाहिए।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-30053665581855725142011-04-25T21:03:00.009+05:302011-05-03T23:37:16.397+05:30एहसास तुम्हारे आने का<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"></span></span><br />
<div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कितनी सुंदर लग रही है आज ये सारी छटायें,जो कल तक बेरंग थी मेरे लिए।साँझ की लालिमा में लिपटा बितता पहर आज अपने किसी पुराने साथी सा जान पड़ा जो अब मुझे अकेला नहीं देख पाया और अपनी मद्धम साँझ की लालिमा में यादों के संग समेटता गया मुझे।ये बदलाव शायद इसलिए था कि मुझे तुम्हारी आहटों का पता चल गया था।मै जान गया था कि तुम फिर आ रही हो मेरे पास बस मेरे प्यार की खातिर।उसी झील के किनारे जाकर कई घंटे निहारता रहा उसकी चुप्पी और खामोशी को।ये वही जगह था जहाँ हम कई घंटे बस यूँही बातें करते थे और एक दूसरे की नजर में अपने लिए कितना प्यार है जानने की कोशिश करते थे।तुम पूछती थी "कितना प्यार करते हो मुझसे?" और मै बाहें फैला कर आसमां को उनमें समेटने की कोशिश करता और बताता कि इस अनंत आसमां की चादर भी जहाँ तक सीमित हो जाये,उससे भी आगे तक कई गुणा प्यार करता हूँ तुमको।</span></div></div><div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6jrP9aEFz7n2YuJVJt7IV971S8sQTKS9gSf1fr4nTXoKMGPC_hNr2UcV48mqoL7jpyOmptqGaLvF8VOQ4vcS0WaP8dKM85JIvrMpE7VmOAgUZR5Zzp-99MWemzlwUxSjeKCZ7SeCVHGXT/s1600/23955-bigthumbnail.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6jrP9aEFz7n2YuJVJt7IV971S8sQTKS9gSf1fr4nTXoKMGPC_hNr2UcV48mqoL7jpyOmptqGaLvF8VOQ4vcS0WaP8dKM85JIvrMpE7VmOAgUZR5Zzp-99MWemzlwUxSjeKCZ7SeCVHGXT/s320/23955-bigthumbnail.jpg" style="cursor: move;" width="320" /></span></a></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">आज वो झील फिर से मानों मेरी नजरों में आ बसा है।तुम्हारी परछाई कही झील में दिखती और तुम्हारे आने के एहसास से मेरा रोम रोम प्रफुल्लित हो उठता।विरह की उन सारी रातों को जिसे बस मैने महसूस किया था,वेदना के उन सारे क्षणों को जिसमें बस खुद ही खुद में बड़बड़ाता कितनी बातें कही थी तुमसे याद कर रहा था मै।तुमसे ये कहूँगा,तुमसे वो पूछूँगा,फिर सोचता क्या कहूँगा तुमसे "तुम तो भूल गयी थी ना मुझे,तुम्हें पता था कि मुझे कितनी याद आती थी तुम्हारी?"कभी सोचता बस देखता रहूँगा तुमको,कही नहीं जाने दूँगा।अगर तुम होगी सामने तुमसे खुब सारी बातें करुँगा और तुम्हारे पहलू में आज खुब रोऊँगा।मेरी आँखों में समाये उस झील का प्रतिबिम्ब आज बरसेगा,नहीं रोकूँगा मै।बस बरसने दूँगा।</span></div><div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNNBQrwMhDtn-_vrEUeSSRmp5skOiSajCVjBKsCJVDiXxESi_q8qu1n0977FTiuqLItZy0pGKfciOyrretRpVldRxqvhwX6sluGosV9prO7PjTwHcYkipctYIaBpBACWIgpd6Db_FVvghS/s1600/340538qvnmf56dp7.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNNBQrwMhDtn-_vrEUeSSRmp5skOiSajCVjBKsCJVDiXxESi_q8qu1n0977FTiuqLItZy0pGKfciOyrretRpVldRxqvhwX6sluGosV9prO7PjTwHcYkipctYIaBpBACWIgpd6Db_FVvghS/s320/340538qvnmf56dp7.jpg" style="cursor: move;" width="250" /></span></a></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">फिर यही सब सोचता खोता गया मै पुरानी यादों में और वे यादें मेरे भविष्य की कल्पना गढ़ती रही।सोचता कि कही ऐसा न हो तुम मुझे पहचान ही ना पाओ,तो मै तुम्हें फिर वही गीत सुनाऊँगा जो बहुत अच्छा लगता था तुम्हें।तब तो शायद मेरी आवाज से पहचान ही लोगी तुम और अगर फिर भी ना पहचानी तो वो सारी तकियाकलाम जो मै कहता था और तुम दूहराती थी,उनका सहारा लूँगा।याद है तुमने कहा था,मेरा ये कहना "बोलो ना!"बहुत पसंद था तुम्हें।पर तुम्हारे जाने के बाद हर रोज इन पेड़ों से,आसमां से,झील से और रात को चाँद से बस यही कहता था मै "बोलो ना!"।पर तुम तो शायद सुनती ही ना थी मुझे।</span></div><div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCh6Pf8WByKNuy8SbzT1S_F66T-GvT1oVPRUYazyI0rhb3ZXKAnDjbJchgljmz5Nc7WH4qtGls_oQoJTdWH_jGeD9iw_gVip26On-2lmWEmD-nNpOfRrqaaUsCM1wNWRMnHJ8kgiSH8CHY/s1600/00233131.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="316" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCh6Pf8WByKNuy8SbzT1S_F66T-GvT1oVPRUYazyI0rhb3ZXKAnDjbJchgljmz5Nc7WH4qtGls_oQoJTdWH_jGeD9iw_gVip26On-2lmWEmD-nNpOfRrqaaUsCM1wNWRMnHJ8kgiSH8CHY/s320/00233131.jpg" style="cursor: move;" width="320" /></span></a></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हारे आने की आश इक नयी जिंदगी की सौगात लेकर आया मेरे लिए।वो जिंदगी जिसने मुझे प्रेरणा दी मेरे खुद के होने का।जिस प्रेम के अस्तित्व ने मेरे मिटते अस्तित्व को एक नयी जिंदगी की नींव दी थी।आज उदासी के हर उन क्षणों के निष्कर्ष का पल था,जो मिला था मुझे तुमसे तुम्हारे जाने के बाद।कई प्रश्न मेरे होंठों पर अब भी थे जिनका जवाब बस तुम्हारे पास था।कई बातें थी जो थी अधूरी तुम्हारे जाने के बाद।आज एक नयी आश लिए वे सभी मुझे इक अनोखे एहसास में सराबोर कर रही थी।झील की गहराई में उतरती चाँद की परछायी और सम्मोहीत करता तुम्हारे आने का एहसास।कई भाव संप्रेषित होकर जाना चाहते तुम्हारे पास और मानों यादों की पालकी पर बिठाकर ले आना चाहते मेरी जिंदगी में तुम्हें फिर से।हर एक पल जो कई सदियों सा गुजरा था अब मानों युग युग की प्यास को तरसता बस मेरे दहलीज में आकर कैद हो गया था।सब शीथिल,शांत और चुपचाप नजरें गड़ाये करते रहे तुम्हारा इंतजार।</span></div><div class="separator" style="clear: both; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhk03kiAitqsfFP0j-lBtdcFtlfnXaZFBHbGZ3Hyq9XvvOVMe2C-RAc2WHcnzCLA4RRYl2AFTZvbFj72IRsvYgr2hd3tSYcyuG9nTfkj_y63XocvXZEBQ83pqOCsHfXyFRV1zbXcb5RncuR/s1600/259051kep12x8kgt.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhk03kiAitqsfFP0j-lBtdcFtlfnXaZFBHbGZ3Hyq9XvvOVMe2C-RAc2WHcnzCLA4RRYl2AFTZvbFj72IRsvYgr2hd3tSYcyuG9nTfkj_y63XocvXZEBQ83pqOCsHfXyFRV1zbXcb5RncuR/s320/259051kep12x8kgt.jpg" style="cursor: move;" width="211" /></span></a></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हवाएँ मानों रुक गयी और चाँद भी बादलों के ओट से झाँकने लगा।झील अपनी खुशी कल कल की ध्वनि से प्रस्तुत करती और दिल की धड़कन धक धक,धक धक।पलकें अपलक सी बिना गिरे देखती रही और करती रही तुम्हारा इंतजार।किसी स्वप्न सुंदरी सी स्वर्णिम परिधानों में लिपटी आसमां के राहों से पुष्पविमान से आती तुम झील के बीचोंबीच रुक गयी और सम्पूर्ण धरती और अम्बर एक पल थम कर देखते रहे तुम्हें।मेरी साँसे महसूस करने लगी तुम्हारी उपस्थिती और जेहनोदिल में छाने लगी तुम।तुम्हारा सम्मोहन और प्रेममय अंदाज किसी इंद्रजाल सा मेरी धड़कनों की गति को और बढ़ाता रहा और एकाएक आँखे खुली सामने शांत झील और आसमां में चाँद।पर फिर भी एक आश की काश सच हो जाये आज ये एहसास तुम्हारे आने का। </span></div></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-34175384060870701532011-04-16T16:18:00.004+05:302011-06-17T23:47:39.741+05:30तुम्हारे इंतजार की वो रात<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">चाँद गुमशुम,तारे खामोश और रात की आधी पहर का सन्नाटा और दिल की धड़कन का जोर-जोर से धड़कना,यादों की पालकी पर तेरी यादों का आना और ख्वाबों में तुमसे मिलने की आश लिए सोने की कोशिश करना।कभी चाँद को देखना,कभी तारों से भरी आकाश निहारना,बेवजह दिल को तसल्ली देना आज तो तुम आओगी।रात का पहर ढ़लता गया और मेरी आँखे तुम्हारे इंतजार में और भी जगी जगी सी रहने लगी।उन्हें लगता न जाने कब निंद आ जाये और तुमको देख ना पाऊँ आते हुए।सदियों से वो जो प्यास दिल में था कैद कही सुख ना जाये आँखों में आँसू बन के।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzurkKrN_j94VHAeuiUX06T51gNzZ_IvnyM4cla-sJ2_ZxO0MpQBdDO1YTaDIamnZlwywleQDoDshb1M5VmQIW4j-XqWXApzFT0I3kk9V_HDrTGn1QzVbs8goxAG3rXTsXtvobTJQ25B_G/s1600/watching+moon.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzurkKrN_j94VHAeuiUX06T51gNzZ_IvnyM4cla-sJ2_ZxO0MpQBdDO1YTaDIamnZlwywleQDoDshb1M5VmQIW4j-XqWXApzFT0I3kk9V_HDrTGn1QzVbs8goxAG3rXTsXtvobTJQ25B_G/s1600/watching+moon.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जैसे जैसे ये रात उदास होती गयी वैसे वैसे चाँद भी छुपता रहा मुझ दिवाने से।शायद वो जानता था कि वो तो बस कुछ घंटों में खो जायेगा पर ये दिल की सुनने वाला जागता रहेगा हरदम बस किसी के इंतजार में।कभी कोई मौन सा धुन मेरे कानों से टकरा जाता और कभी कोई आहट शायद कहती मुझसे तुम आ रही हो।ऐसे ही कुछ फासलों पे अक्सर लगता बस अब कुछ पल और फिर तो ये रात इंतजार की नहीं मिलन की रात होगी।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">चाँद भी अब थक कर बादलों में खो गया,तारे भी मद्धम मद्धम से होने लगे पर हम अब भी बस नजरे गड़ाये करते रहे इंतजार तुम्हारा।तुमसे शायद यही करार था हमारे प्यार का।बस दर्द,उदासी और इंतजार इन्ही के संग तो जीने की आदत डाल रहा था मै तुमसे प्यार कर के।अकेला बिल्कुल अकेला हो गया मै।अब ना चाँद था ना तारे अब तो धिमे धिमे से रोशनी की पहली किरण आनी शुरु हो गयी थी।मै अभी भी बिल्कुल हतोत्साहीत ना था जानता था तुम तो आओगी ही।थोड़ी देर जो भी हो रही है शायद तुम्हारे आने में वो कही इस चाँद की तो कोई साजिश नहीं।कही तुम्हें देख अकेला वो अपनी चाँदनी समझ तुम्हें आवाज तो नहीं लगा बैठा।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEeEpx_XgA2zMvCKUvySLioisIMIoRKWjb4OKZ9rFIVG6uNgmF3LDn48hl4jqc2KgVmzJszlPEiqwvIQQfJ3siVhJVqQn26y5_dSvDX4svtJgyuTOUTtmcNQeUiY6IgfUtS5Pl_Efa0rbg/s1600/newange.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEeEpx_XgA2zMvCKUvySLioisIMIoRKWjb4OKZ9rFIVG6uNgmF3LDn48hl4jqc2KgVmzJszlPEiqwvIQQfJ3siVhJVqQn26y5_dSvDX4svtJgyuTOUTtmcNQeUiY6IgfUtS5Pl_Efa0rbg/s320/newange.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">पर प्रेयसी सुनो ना मै यहाँ हूँ न जाने कब से।कई रातों से यूँही तुम्हारे इंतजार में हूँ यहाँ।मै चाँद नहीं हूँ,मै रात नहीं हूँ,मै तो बस दिवाना हूँ तेरा जो अब रात और दिन में अंतर नहीं कर पा रहा तुमसे प्यार कर के।इंतजार की घड़ियाँ बस गिनता है उसे रात या दिन से क्या मतलब।ऊजाला हो या अँधेरा हो बस तुम्हारा इंतजार करता है।आवाज लगाता है,तुमको बुलाता है,और जब ना आती हो तो थक कर फिर निकल जाता है ढ़ुँढ़ने तुमको उस अजनबी रास्तें पर जहाँ पहली बार मिला था तुमसे।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrFgq86Z7YH-jMbU3LXuVNuh6C7lwKbVsqHPA0VA8eRPpSZpTNc481ELP-u5GoHtZUw-h9WFvSmR-LEwo-R5_8jcCK06_73HPRgvGEuggyhC3_zOTc_oks7t0rI0LsmsjfaygkfB0scv-c/s1600/LoversSun.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrFgq86Z7YH-jMbU3LXuVNuh6C7lwKbVsqHPA0VA8eRPpSZpTNc481ELP-u5GoHtZUw-h9WFvSmR-LEwo-R5_8jcCK06_73HPRgvGEuggyhC3_zOTc_oks7t0rI0LsmsjfaygkfB0scv-c/s320/LoversSun.jpg" width="215" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हर रात कुछ खाश होती और तुम्हारे इंतजार की रात तो मानों जिंदगी के बारात की रात हो।कितनी खुशी,स्नेह और हर्ष से भर जाता है ह्रदय कैसे दिखाऊँ तुमको?मरने में भी जीने का मजा और जिंदगी के लिए इंतजार करना कितना कोमल एहसास था कैसे बताऊँ तुम्हें?वो रात भी अजीब था,पता नहीं मिलन की कल्पना से खुश था मन या विरह की अग्न में व्यथीत।पर मन की उत्सुकता तो तुम्हारे इंतजार को और भी विशेष रंग देता था।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2kS5SCE5lhXkRJlFYWIcbgyU8KE0RiTeSybA3_8XcL51_W0UpWOYR6U4sGwOaBaU0Sd6qWKANK_SCjSDBEuddt909C8LeiZh1vjGJ81IupgTFPEt26njJab8Kg4klLzyzHecrFw5tf68D/s1600/2eb4bc8.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2kS5SCE5lhXkRJlFYWIcbgyU8KE0RiTeSybA3_8XcL51_W0UpWOYR6U4sGwOaBaU0Sd6qWKANK_SCjSDBEuddt909C8LeiZh1vjGJ81IupgTFPEt26njJab8Kg4klLzyzHecrFw5tf68D/s320/2eb4bc8.jpg" width="227" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम मत आना कभी।ऐसे ही हर रात मेरी जिंदगी में तुम्हारे इंतजार की रात होगी।और इक आश के संग जीता रहूँगा सारी उम्र।आज आओगी,कल आओगी,न जाने कब आओगी?पर सोचता हूँ जब तुम्हारे इंतजार में इतना मजा है तो तुमसे मिल कर तो शायद आनंद की प्रकाष्ठा ना पा लूँ।खुली आँखें क्या करे आँसूओं की धार ले आयी सहेज कर और बहने लगे सारे भाव दिल की आँखों से।हर बूँद पुकारता रहा तुम्हें और अब भी जिद करता रहा तुमसे मिलने की।ह्रदय अधीर होकर धड़कता रहा सारी रात और मन कभी इस पार,कभी उस पार होता रहा।एहसास होने लगा कि शायद अब तो ये इंतजार ही जीने की वजह बन गयी और हम अब से हर रोज रात रात भर करते रहे तुम्हारा इंतजार।</span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-2732969810998309693.post-53482418218752675482011-04-10T19:39:00.002+05:302011-04-12T11:10:35.656+05:30दिल ने तो बस दिल की सुनी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">काश दिल पे थोड़ा जोर होता और तुम्हें पाने की चाहत ही ना करता कभी।ये जानते हुए कि तुम नहीं हो मेरी और ना ही कभी बनोगी मेरी।कहा है तुमपे मेरा थोड़ा सा भी अधिकार,जो तुमसे पूछ लेता क्या मेरी भावनायें नहीं दिखती कभी तुम्हें।ये वही भावनायें है,जो मुझे तुम्हारी तरफ खींचता और सम्मोहीत करता है मुझे तुम्हारी चाहत की खातिर।ये वही भावनायें है,जो कभी बिल्कुल अकेला कर देता है और कभी तुम्हारी यादों की महफिल में ला छोड़ता है मुझे।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNYwXL3dFlehMmFI9EJbPyCh55qP2hy3274yb7nccf_Od6B-yUnM3Iq0eZBBQMy9fGjjcEX49Dma51mbegYXzz7o_PEy3-trqc2Kcf3lK5UtCOr45gF8kI7LQh7cenU8PBxLrIwbfVn-zY/s1600/lovers-mp3-player-apart.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="236" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNYwXL3dFlehMmFI9EJbPyCh55qP2hy3274yb7nccf_Od6B-yUnM3Iq0eZBBQMy9fGjjcEX49Dma51mbegYXzz7o_PEy3-trqc2Kcf3lK5UtCOr45gF8kI7LQh7cenU8PBxLrIwbfVn-zY/s320/lovers-mp3-player-apart.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कई दिनों से दिल की ये उधेड़बुन क्या करुँ?ना रातों को चैन,ना दिन को आराम।बस होंठों पे आ जाता है तेरा नाम।ऐसा लगता जैसे कोई नहीं है अब साथ मेरे।बिल्कुल तन्हा अकेला बस तुम्हारे इंतजार की आश के संग जगता।सोचता कह दूँगा आज तुमसे अपने दिल की बदमाशी,जो न जाने कब से छुपाये बैठा है ये अपने अंदर।सोचता आज पूछ लूँगा तुमसे क्यों तड़पाती हो इतना,बेवजह बिना आहट के मेरे सपनों में आकर क्यों हर रात तंग करती हो मुझे?फिर सोचता तुमको क्या पता ये मेरी कहानी,ये तो मैने खुद बनाया है।खुद प्यार करता हूँ तुमसे और खुद बुला लाता हूँ तुम्हें अपनी यादों में और अपने सपनों में।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggoxnlOFnp4VUQ29EA6zv4iD3691IIzeaKPrZ52HmbpoLtwyB7tit3qhefefLUbe1rR3CPur5l9kLZLbeS7LbE2sm1hygQOO3dccVkWgnJ8yL2JjUHLwhUDchS7AN75Vr1hRcFF14QPnsg/s1600/wedding-proposal-photography.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggoxnlOFnp4VUQ29EA6zv4iD3691IIzeaKPrZ52HmbpoLtwyB7tit3qhefefLUbe1rR3CPur5l9kLZLbeS7LbE2sm1hygQOO3dccVkWgnJ8yL2JjUHLwhUDchS7AN75Vr1hRcFF14QPnsg/s320/wedding-proposal-photography.jpg" width="202" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हिम्मत से आज तुमसे कहने आ रहा हूँ मै अपनी दिल की बात जो अब बड़ा दर्द देता है मुझे।वीरान राहों में अक्सर तुम्हारे ख्यालों में ला छोड़ता है।आज नहीं जरुरत थी किसी भी भूमिका की आज तो दिवानेपन की शाम थी।आज नहीं था कोई भय प्रतिकार का,आज तो बस दिल की ही सुननी थी।कुछ सोचता कभी और एक कदम पीछे हट जाता पर दिल की आवाज मुझे तुम्हारे पास लाकर खड़ा कर देता।बेचारा दिल भी आखिर दिल के वास्ते मजबूर हो जाता और परिणाम की चिंता छोड़ इजहारे मुहब्बत कर देता तुमसे।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अब थोड़ा सा चैन मिल जाता दिल को पर असमंजस की वो स्थिती जो अब आने वाली थी अंदर तक झकझोरती रहती।क्या तुम मेरा साथ दोगी या इस बेसहारे को और अकेला छोड़ दोगी अपने खुद के हाल पे?पहले तुम पूछती ये क्या कह दिया तुमने और फिर गुमशुम हो जाती।तुम्हारी ये खामोशि कौन सा जवाब था,क्या समझ पाता मै।शायद मेरी उदासी के पहर की शुरुआत का पल था वो,जब तुमने मेरी भावनाओं को रौंद कर मेरे दिल पे जख्मों का वार कर प्यार का प्रतिकार किया।ठुकरा दिया तुमने बस एक पल में मेरी हर चाहत को और दिल के आँसूओं के सैलाब में कई रात यूँही बहता रहा ये दिल बेचारा।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTreZ7juGl5Ibx717PfP9iADEV9SoPgESqUzzNnYicRqUcAbgN9YT-t928eMp8QimzX4blx29Pe1q39O3h9uzvPG5HdBnCE5FlaOOU7YNCn2oWsnoCCQ1pzfOK5ysWPEi0KLc1hmEbnbDc/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTreZ7juGl5Ibx717PfP9iADEV9SoPgESqUzzNnYicRqUcAbgN9YT-t928eMp8QimzX4blx29Pe1q39O3h9uzvPG5HdBnCE5FlaOOU7YNCn2oWsnoCCQ1pzfOK5ysWPEi0KLc1hmEbnbDc/s1600/images.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">किस कसूर की सजा पा रहा था ये दिल,ये तो शायद दिल को भी ना पता था।बस अब भी तुम्हारे प्यार के दो आँसूओं को सम्भाले तुम्हारे प्यार की कयामत का इंतजार करता।उस कयामत का इंतजार जो तोड़ देता दिल को दिल ही दिल में और अफसोस भी ना कर पाता दिल,दिल ही दिल में।आखिर दिल ने तो बस दिल की सुनी।वो कहा जान पाया तुम्हारे दिला का हाल।उसने आज भी यूँही बसा कर रखा है तुम्हारी वो यादों की तस्वीर दिल में।मानता हूँ तुम नहीं हो मेरी पर दिल तो बस दिल तक पहुँच ही जाता है कभी कभी यादों की पुल बना कर।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCfAzDKa0qXOx2d1C9rE0Sp3O8tl0gCiDK47vy3-tMJ5BujjnHN303vNBC0_1_l2YJuyQbP83afz_O8Mjk35lfa8Cj6GOm5GHzdFkXvhr3tikKPuHyOYjzNXJkUsnZ0R8dmjiDhEJscVAS/s1600/breaking+heart+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCfAzDKa0qXOx2d1C9rE0Sp3O8tl0gCiDK47vy3-tMJ5BujjnHN303vNBC0_1_l2YJuyQbP83afz_O8Mjk35lfa8Cj6GOm5GHzdFkXvhr3tikKPuHyOYjzNXJkUsnZ0R8dmjiDhEJscVAS/s1600/breaking+heart+%25281%2529.jpg" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">ना कोई अफसोस और ना कोई शिकवा तुमसे।बस इक इच्छा दिल की तुमसे दूर जाने की।शायद खुशियाँ लौट आये जीवन में तुम्हारे मेरे दूर जाने के बाद।तुम खुश रहो,मुस्कुराती रहो और बस हरदम अच्छी रहो।यही तो है मेरे दिल की चाहत जो कभी मैने कह दिया था तुमसे।सब समझते है,कि तुमने तो ठुकरा दिया था मेरे प्यार को पर तुम्हारे जीवन की हर एक मुस्कान ही तो मेरे प्यार के स्वीकार्य आमंत्रण का परिणाम है।उस वक्त दिल ने तो बस दिल की सुनी और बस तुम्हारे बिना जीवन में है एक कमी।ना जाने क्यों सब पाकर भी दिल की वो बगिया मेरी अब भी है सूनी सूनी। </span></div>Er. सत्यम शिवमhttp://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.com7