Sunday, April 10, 2011

दिल ने तो बस दिल की सुनी

काश दिल पे थोड़ा जोर होता और तुम्हें पाने की चाहत ही ना करता कभी।ये जानते हुए कि तुम नहीं हो मेरी और ना ही कभी बनोगी मेरी।कहा है तुमपे मेरा थोड़ा सा भी अधिकार,जो तुमसे पूछ लेता क्या मेरी भावनायें नहीं दिखती कभी तुम्हें।ये वही भावनायें है,जो मुझे तुम्हारी तरफ खींचता और सम्मोहीत करता है मुझे तुम्हारी चाहत की खातिर।ये वही भावनायें है,जो कभी बिल्कुल अकेला कर देता है और कभी तुम्हारी यादों की महफिल में ला छोड़ता है मुझे।
कई दिनों से दिल की ये उधेड़बुन क्या करुँ?ना रातों को चैन,ना दिन को आराम।बस होंठों पे आ जाता है तेरा नाम।ऐसा लगता जैसे कोई नहीं है अब साथ मेरे।बिल्कुल तन्हा अकेला बस तुम्हारे इंतजार की आश के संग जगता।सोचता कह दूँगा आज तुमसे अपने दिल की बदमाशी,जो न जाने कब से छुपाये बैठा है ये अपने अंदर।सोचता आज पूछ लूँगा तुमसे क्यों तड़पाती हो इतना,बेवजह बिना आहट के मेरे सपनों में आकर क्यों हर रात तंग करती हो मुझे?फिर सोचता तुमको क्या पता ये मेरी कहानी,ये तो मैने खुद बनाया है।खुद प्यार करता हूँ तुमसे और खुद बुला लाता हूँ तुम्हें अपनी यादों में और अपने सपनों में।
हिम्मत से आज तुमसे कहने आ रहा हूँ मै अपनी दिल की बात जो अब बड़ा दर्द देता है मुझे।वीरान राहों में अक्सर तुम्हारे ख्यालों में ला छोड़ता है।आज नहीं जरुरत थी किसी भी भूमिका की आज तो दिवानेपन की शाम थी।आज नहीं था कोई भय प्रतिकार का,आज तो बस दिल की ही सुननी थी।कुछ सोचता कभी और एक कदम पीछे हट जाता पर दिल की आवाज मुझे तुम्हारे पास लाकर खड़ा कर देता।बेचारा दिल भी आखिर दिल के वास्ते मजबूर हो जाता और परिणाम की चिंता छोड़ इजहारे मुहब्बत कर देता तुमसे।


अब थोड़ा सा चैन मिल जाता दिल को पर असमंजस की वो स्थिती जो अब आने वाली थी अंदर तक झकझोरती रहती।क्या तुम मेरा साथ दोगी या इस बेसहारे को और अकेला छोड़ दोगी अपने खुद के हाल पे?पहले तुम पूछती ये क्या कह दिया तुमने और फिर गुमशुम हो जाती।तुम्हारी ये खामोशि कौन सा जवाब था,क्या समझ पाता मै।शायद मेरी उदासी के पहर की शुरुआत का पल था वो,जब तुमने मेरी भावनाओं को रौंद कर मेरे दिल पे जख्मों का वार कर प्यार का प्रतिकार किया।ठुकरा दिया तुमने बस एक पल में मेरी हर चाहत को और दिल के आँसूओं के सैलाब में कई रात यूँही बहता रहा ये दिल बेचारा।
किस कसूर की सजा पा रहा था ये दिल,ये तो शायद दिल को भी ना पता था।बस अब भी तुम्हारे प्यार के दो आँसूओं को सम्भाले तुम्हारे प्यार की कयामत का इंतजार करता।उस कयामत का इंतजार जो तोड़ देता दिल को दिल ही दिल में और अफसोस भी ना कर पाता दिल,दिल ही दिल में।आखिर दिल ने तो बस दिल की सुनी।वो कहा जान पाया तुम्हारे दिला का हाल।उसने आज भी यूँही बसा कर रखा है तुम्हारी वो यादों की तस्वीर दिल में।मानता हूँ तुम नहीं हो मेरी पर दिल तो बस दिल तक पहुँच ही जाता है कभी कभी यादों की पुल बना कर।
ना कोई अफसोस और ना कोई शिकवा तुमसे।बस इक इच्छा दिल की तुमसे दूर जाने की।शायद खुशियाँ लौट आये जीवन में तुम्हारे मेरे दूर जाने के बाद।तुम खुश रहो,मुस्कुराती रहो और बस हरदम अच्छी रहो।यही तो है मेरे दिल की चाहत जो कभी मैने कह दिया था तुमसे।सब समझते है,कि तुमने तो ठुकरा दिया था मेरे प्यार को पर तुम्हारे जीवन की हर एक मुस्कान ही तो मेरे प्यार के स्वीकार्य आमंत्रण का परिणाम है।उस वक्त दिल ने तो बस दिल की सुनी और बस तुम्हारे बिना जीवन में है एक कमी।ना जाने क्यों सब पाकर भी दिल की वो बगिया मेरी अब भी है सूनी सूनी।  

7 comments:

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

मनोज कुमार said...

सुंदर भावाभिव्यक्ति।

ज्योति सिंह said...

कुछ सोचता कभी और एक कदम पीछे हट जाता पर दिल की आवाज मुझे तुम्हारे पास लाकर खड़ा कर देता।बेचारा दिल भी आखिर दिल के वास्ते मजबूर हो जाता और परिणाम की चिंता छोड़ इजहारे मुहब्बत कर देता तुमसे।
ye hame aksar uljha deta hai ,bahut badhiya likha hai .

Amrita Tanmay said...

निस्संदेह प्रेम ऐसा ही होता है .बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .

Vivek Jain said...

बहुत ही सुंदर है आपकी प्रस्तुति!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

विभूति" said...

such yahi pyar hai...

POOJA... said...

bahut khoob...
kitna prem samet ke likh diya... aur ye to babato ki ksike liye likha hai ye sab???
publicly na batana ho to mail kar dena... :P