कोमल भावनाओं की जितनी भी अभिव्यक्तियाँ मेरे अंतरमन में समायी है,वो सब तुम्हीं से पाया है मैने।तुम्हीं ने आभास कराया है मुझे मेरे अस्तित्व का और सौंपा है मुझे मेरा वजूद।तुम्हारे बिना मै स्वयं की कल्पना भी नहीं कर सकता माँ।माँ मेरी कोई भी पहचान बस तुम तक ही सीमित है।आज भले बहुत बड़ा हो गया हूँ मै पर तुम्हारे स्नेह और आशीर्वाद के बिना सब कुछ व्यर्थ है।ये देखो ना माँ मै कितना लम्बा हो गया हूँ।तुम तो मेरे सामने छोटी हो गयी माँ।बचपन में तुम मेरी उँगलियों पर हाथ रखकर कहती बेटा तुम्हें इतना बड़ा होना है।और आज सच में मै तुमसे बड़ा हो गया माँ।कल तक दो कदम भी चलने को जिन छोटे छोटे हाथों को तुम्हारी हाथों की जरुरत पड़ती थी।वो आज खुद चल रहा है माँ।सच में मै तुमसे भी बड़ा हो गया माँ।बहुत बड़ा जिसमें शायद तुम बहुत छोटी हो गयी हो और अब तुमसे दूर रहते रहते शायद याद भी नहीं करता मै तुमको।
अक्सर तुमको चिंता होती मेरे बारे में।अक्सर तुम मेरे अच्छे के लिएँ सोचती और मै तुम्हारी इस चिंता को कमजोरी समझ हर बार तुम्हारा दिल दुखा देता।मुझे लगता कि मुझे खुद से दूर कर के अपने दिल से भी दूर कर दिया है तुमने।पर यह कभी ना समझ पाया कि हर पल जो मेरे दिल में धड़कन बन कर धड़कती रहती है।वो तो तुम्हीं हो माँ।जो हर पल मेरे साथ होती और जब कोई परेशानी होती तो बस दिल पर हाथ रख देता और सुकुन मिल जाता मुझे।कभी कभी जब अकेला होता और दुनियादारी को कुछ पल पिछे छोड़ खुद के बारे में सोचता।तो मुझे मेरे हर एक विचार में मुस्कुराती,प्यार से अपने पास बुलाती तुम ही नजर आ जाती माँ।जो शायद मेरी सारी गलतियों को माफ कर फिर से मुझे अपनी ममता के स्नेहाकाश में चैन और सुकुन देती।मै गुनहगार हूँ आज माँ तेरा और तेरी ममता का।क्योंकि मैने हर बार बस तुम्हारे प्यार के बदले तुम्हारा दिल दुखाया है।और अपने वर्चस्व की लड़ाई में हर बार हारा हूँ मै तुम्हें जलील कर खुद से।
कल जब तुम्हारी भेजी हुई तस्वीरों को देख रहा था।एकाएक तुम्हारी तस्वीर पर नजर रुक गयी।मै मायूस हो गया माँ।ये देखकर कि तुम्हारे कोमल प्रफुल्लित चेहरे पर झुर्रिया आने लगी है।क्या माँ मै इतना बड़ा हो गया कि तू बूढ़ी हो गयी।नहीं माँ मै अभी भी तुम्हारा छोटा सा लाडला बन कर ही रहना चाहता हूँ।मै रोक दूँगा वक्त के सारे पहियों को,मै थाम लूँगा हर एक उस लम्हें को जिसमें तुम्हारी गोद में खेलता मै नन्हा सा हूँ।मै तुम्हें उम्र के परावों में उलझने नहीं दूँगा।पता है माँ मुझे तुम्हारे चेहरे पर मायूसी का कोई भी भाव तनिक भी नहीं सुहाता है।क्यों मायूस हो तुम?क्या चिंता है तुम्हारी?यही न कि मै अच्छा बन जाऊँ और जिन्दगी भर खुश रहूँ।तू चिंता मत कर माँ मै तुम्हारे सभी अरमानों को पँख देकर एक दिन व्योम की सैर जरुर करवाऊँगा।
उलझनों में उलझी मेरी जिन्दगी नहीं देती है समय खुद के बारे में सोचने की भी और एक तू है जो खुद के बारे में कभी नहीं सोचती बस मेरे बारे में सोचती है।माँ आज एक बात मेरे दिल में है,जो मुझे तुमसे कहनी है।मत रुठना कभी अपने लाडले से माँ।तुम रुठ जाती हो जब तो बहुत बुरा लगता है।पता है तुमको पूरे दिन इंतजार करता हूँ कि कब तुमसे बात होगी और मै ये बताऊँगा ,वो बताऊँगा।और बस तुमसे बात कर लेता हूँ सच में आत्मा को संतुष्टि मिल जाती है।सब कहते है कि अब तू बड़ा हो गया है।छोटा बच्चा नहीं जो हर छोटी बड़ी बात माँ से बताता है।पर उन्हें क्या पता मै आज भी तेरे सामने कितना छोटा हूँ।एक तू ही तो है सारी दुनिया में माँ जिसकी हर एक बात में बस "हाँ" है मेरे लिये।जिसकी सारी खुशियों की मँजिल बस मै हूँ,बस मै।
कभी कभी बहुत डर जाता हूँ यह सोच कि क्या होगा मेरा कल जब तू ना होगी।माँ सच में बहुत अकेला हो जाऊँगा मै।तुम्हारे बिन किससे झगरुँगा माँ?तुम्हारे बिना किससे अपनी छोटी बड़ी हर बात कहूँगा मै?कौन होगा अब बस मेरे बारे में सोचने वाला?किसकी आँचल में सबकुछ भूल बस चैन की नींद सोता रहूँगा?किसकी गोद में रहकर मुझे स्वर्ग की शानोशौकत भी फीकी लगेगी?घर पहुँच कर बड़े दिन बाद किससे मिलने की बेसब्री होगी?अब ना कोई इंतजार होगा तुम्हारी किसी फोन का और ना ही तुम्हारी प्यारी सी आवाज सुन पाऊँगा मै।बस अपनी धड़कनों में तुझे महसूस कर थोड़ा सुकुन मिलेगा तुम्हारे साथ होने का पर अगले ही पल तुम्हें सामने ना देख कर इन आँसूओं को कैसे रोक पाऊँगा मै?तुम्हीं कहो ना माँ क्या करुँगा मै?इसलिए माँ आज कुछ माँगना चाहता हूँ तुमसे कि बस हरदम यूँही अपने आँचल की ओट में छुपाये रख मुझे।बाहरी दुनिया में दम घुटने लगता है मेरा।
समय का चक्र निरंतर बढ़ता बढ़ता जाने कहा से कहा लेकर आया है हमे।कल तक एक पल भी तुमसे दूर नहीं रह पाता था मै और आज न जाने कितने सालों से दूर हूँ तुमसे।हर वो उमंग त्योंहारों का और उत्साह अपनों के साथ होने का भूलता जा रहा हूँ मै।वक्त के दरिया ने बीच मझदार में लाकर बिल्कुल अकेला छोड़ दिया है मुझे।कोई किनारा नजर ही नहीं आता।कुछ पाने की चाहत में सब कुछ गँवाता हुआ मै कैसा बन गया हूँ समझ ही नहीं आता।
निःशब्द हूँ तुम्हारे समक्ष आज अपनी भावनाओं की चिता जला कर,दुनियादारी के बोझ तले दब गया हूँ मै।माँ आज फिर मुझे तेरे उन ऊँगलियों की जरुरत है,जो बचपन में मुझे चलना सिखाती थी।मुझे आज फिर तेरी उस मुस्कुराहट की जरुरत है,जो मुझे निश्चिंत कर देती थी कि हो ना हो मै जो भी कर रहा हूँ सही कर रहा हूँ।आज तेरी याद ने मुझे याद दिलाया मेरे खुद के होने का।क्योंकि बड़े दिन हो गये थे मेरे खोये हुये।न जाने किन पगडंडियों से होता हुआ किस जर्जर सी झोपड़ी में रहने लगा था मै जो बाहर से बड़ा सुनहरा दिखता था पर अंदर कुछ नहीं था।माँ आज भले मै तुमसे कद में काफी बड़ा हो गया हूँ पर अब भी मेरा बचपन जिंदा है मुझमें जो मुझे तेरी ममतामयी मूरत का आभास कराता है।और हर रोज तेरी इस ममतामयी मूरत को अपने आँसूओं के दो फूल चढ़ा आता हूँ मै आज भी।
अक्सर तुमको चिंता होती मेरे बारे में।अक्सर तुम मेरे अच्छे के लिएँ सोचती और मै तुम्हारी इस चिंता को कमजोरी समझ हर बार तुम्हारा दिल दुखा देता।मुझे लगता कि मुझे खुद से दूर कर के अपने दिल से भी दूर कर दिया है तुमने।पर यह कभी ना समझ पाया कि हर पल जो मेरे दिल में धड़कन बन कर धड़कती रहती है।वो तो तुम्हीं हो माँ।जो हर पल मेरे साथ होती और जब कोई परेशानी होती तो बस दिल पर हाथ रख देता और सुकुन मिल जाता मुझे।कभी कभी जब अकेला होता और दुनियादारी को कुछ पल पिछे छोड़ खुद के बारे में सोचता।तो मुझे मेरे हर एक विचार में मुस्कुराती,प्यार से अपने पास बुलाती तुम ही नजर आ जाती माँ।जो शायद मेरी सारी गलतियों को माफ कर फिर से मुझे अपनी ममता के स्नेहाकाश में चैन और सुकुन देती।मै गुनहगार हूँ आज माँ तेरा और तेरी ममता का।क्योंकि मैने हर बार बस तुम्हारे प्यार के बदले तुम्हारा दिल दुखाया है।और अपने वर्चस्व की लड़ाई में हर बार हारा हूँ मै तुम्हें जलील कर खुद से।
कल जब तुम्हारी भेजी हुई तस्वीरों को देख रहा था।एकाएक तुम्हारी तस्वीर पर नजर रुक गयी।मै मायूस हो गया माँ।ये देखकर कि तुम्हारे कोमल प्रफुल्लित चेहरे पर झुर्रिया आने लगी है।क्या माँ मै इतना बड़ा हो गया कि तू बूढ़ी हो गयी।नहीं माँ मै अभी भी तुम्हारा छोटा सा लाडला बन कर ही रहना चाहता हूँ।मै रोक दूँगा वक्त के सारे पहियों को,मै थाम लूँगा हर एक उस लम्हें को जिसमें तुम्हारी गोद में खेलता मै नन्हा सा हूँ।मै तुम्हें उम्र के परावों में उलझने नहीं दूँगा।पता है माँ मुझे तुम्हारे चेहरे पर मायूसी का कोई भी भाव तनिक भी नहीं सुहाता है।क्यों मायूस हो तुम?क्या चिंता है तुम्हारी?यही न कि मै अच्छा बन जाऊँ और जिन्दगी भर खुश रहूँ।तू चिंता मत कर माँ मै तुम्हारे सभी अरमानों को पँख देकर एक दिन व्योम की सैर जरुर करवाऊँगा।
उलझनों में उलझी मेरी जिन्दगी नहीं देती है समय खुद के बारे में सोचने की भी और एक तू है जो खुद के बारे में कभी नहीं सोचती बस मेरे बारे में सोचती है।माँ आज एक बात मेरे दिल में है,जो मुझे तुमसे कहनी है।मत रुठना कभी अपने लाडले से माँ।तुम रुठ जाती हो जब तो बहुत बुरा लगता है।पता है तुमको पूरे दिन इंतजार करता हूँ कि कब तुमसे बात होगी और मै ये बताऊँगा ,वो बताऊँगा।और बस तुमसे बात कर लेता हूँ सच में आत्मा को संतुष्टि मिल जाती है।सब कहते है कि अब तू बड़ा हो गया है।छोटा बच्चा नहीं जो हर छोटी बड़ी बात माँ से बताता है।पर उन्हें क्या पता मै आज भी तेरे सामने कितना छोटा हूँ।एक तू ही तो है सारी दुनिया में माँ जिसकी हर एक बात में बस "हाँ" है मेरे लिये।जिसकी सारी खुशियों की मँजिल बस मै हूँ,बस मै।
कभी कभी बहुत डर जाता हूँ यह सोच कि क्या होगा मेरा कल जब तू ना होगी।माँ सच में बहुत अकेला हो जाऊँगा मै।तुम्हारे बिन किससे झगरुँगा माँ?तुम्हारे बिना किससे अपनी छोटी बड़ी हर बात कहूँगा मै?कौन होगा अब बस मेरे बारे में सोचने वाला?किसकी आँचल में सबकुछ भूल बस चैन की नींद सोता रहूँगा?किसकी गोद में रहकर मुझे स्वर्ग की शानोशौकत भी फीकी लगेगी?घर पहुँच कर बड़े दिन बाद किससे मिलने की बेसब्री होगी?अब ना कोई इंतजार होगा तुम्हारी किसी फोन का और ना ही तुम्हारी प्यारी सी आवाज सुन पाऊँगा मै।बस अपनी धड़कनों में तुझे महसूस कर थोड़ा सुकुन मिलेगा तुम्हारे साथ होने का पर अगले ही पल तुम्हें सामने ना देख कर इन आँसूओं को कैसे रोक पाऊँगा मै?तुम्हीं कहो ना माँ क्या करुँगा मै?इसलिए माँ आज कुछ माँगना चाहता हूँ तुमसे कि बस हरदम यूँही अपने आँचल की ओट में छुपाये रख मुझे।बाहरी दुनिया में दम घुटने लगता है मेरा।
समय का चक्र निरंतर बढ़ता बढ़ता जाने कहा से कहा लेकर आया है हमे।कल तक एक पल भी तुमसे दूर नहीं रह पाता था मै और आज न जाने कितने सालों से दूर हूँ तुमसे।हर वो उमंग त्योंहारों का और उत्साह अपनों के साथ होने का भूलता जा रहा हूँ मै।वक्त के दरिया ने बीच मझदार में लाकर बिल्कुल अकेला छोड़ दिया है मुझे।कोई किनारा नजर ही नहीं आता।कुछ पाने की चाहत में सब कुछ गँवाता हुआ मै कैसा बन गया हूँ समझ ही नहीं आता।
निःशब्द हूँ तुम्हारे समक्ष आज अपनी भावनाओं की चिता जला कर,दुनियादारी के बोझ तले दब गया हूँ मै।माँ आज फिर मुझे तेरे उन ऊँगलियों की जरुरत है,जो बचपन में मुझे चलना सिखाती थी।मुझे आज फिर तेरी उस मुस्कुराहट की जरुरत है,जो मुझे निश्चिंत कर देती थी कि हो ना हो मै जो भी कर रहा हूँ सही कर रहा हूँ।आज तेरी याद ने मुझे याद दिलाया मेरे खुद के होने का।क्योंकि बड़े दिन हो गये थे मेरे खोये हुये।न जाने किन पगडंडियों से होता हुआ किस जर्जर सी झोपड़ी में रहने लगा था मै जो बाहर से बड़ा सुनहरा दिखता था पर अंदर कुछ नहीं था।माँ आज भले मै तुमसे कद में काफी बड़ा हो गया हूँ पर अब भी मेरा बचपन जिंदा है मुझमें जो मुझे तेरी ममतामयी मूरत का आभास कराता है।और हर रोज तेरी इस ममतामयी मूरत को अपने आँसूओं के दो फूल चढ़ा आता हूँ मै आज भी।
15 comments:
बहुत अच्छा लिखा है .माँ ke साथ हमारा आत्मिक सम्बन्ध होता है .बहुत सुन्दर .आभार
बड़े बच्चे की देखभाल के लिए माँ को भी और बड़ा होना पड़ता है... चेहरे की झुर्रियां बूढ़े होने की निशानी नहीं, उन लम्हों की निशानी है - जो ज़िन्दगी के राज़ खोलती है
sarthak post...
देश की swadheenta के is shubhavsar पर आपका maa को याद karna बहुत achchha laga .sach में maa से badhkar dunia में कुछ nahi satyam जी आभार हमें भी कुछ याद दिलाने के लिए.
माँ के प्रति मन के कोमल भावों की बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति ! कद काठी में बच्चा चाहे जितना भी बड़ा हो जाये अपनी माँ से कभी बड़ा नहीं हो सकता ! माँ को आपने जिस शिद्दत के साथ याद किया बहुत अच्छा लगा ! आपके सर के ऊपर उनका ममता और वात्सल्य से परिपूर्ण हाथ सदैव आशीर्वाद स्वरुप बना रहे यही कामना है ! सुन्दर आलेख !
आस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर रचना !
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
संवेदना से भरी रचना......
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
sandar rachna
सुन्दर आलेख ! संवेदना से भरी रचना
माँ के प्रति मन के कोमल भावों की बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति..
आप सबको 65 स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं....
neelkamalkosir.blogspot.com
neelkamal5545.blogspot.com
neelkamaluvaach.blogspot.com
सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ भावपूर्ण प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
Beautiful post
lekin chachai to bas itni hi hai ki
ाँ।माँ मेर कोई भी पहचान बस तुम तक ह सीिमत है।आज
maa ae basa koi nahi ho sakta
ahankaar bhi nahi.
माँ के सामने हम हमेशा बच्चे ही बने रहना चाहते हैं मगर एक दिन माँ और बच्चों दोनों को ही बड़ा होना ही पड़ता है !
अच्छी प्रस्तुति!
behad komal bhawnaon ka mishran hai......bahut sunder.
बहुत अच्छा लिखा है .माँ के साथ अटूट सम्बन्ध है |
सुन्दर अनुभूति के साथ सार्थक अभिव्यक्ति...
Post a Comment