विराट अथाह समुद्र के बीच में खड़ा मै।जहाँ चारों ओर बस दृश्य होता जलमंडल का कभी ना अंत होने वाला छोड़।पवन अपने वेग में समेट कर लाती संदेश इस जलमग्नता का और प्राणश्वासों की विलुप्तता का।अंधकार का सम्राज्य और भी भयावह बना देता इस सम्पूर्ण परिदृश्य को और इक लकड़ी के छोटे नामात्र टुकड़े पर अड़ा मेरा अस्तित्व मुझे मेरी तुच्छता का बोध कराता रहता।जीवन पथ का यह मार्ग कभी संकीर्ण कंदराओं से गुजरता तो कभी विस्तृत जलमंडल से।जहाँ मार्ग में आलोकित करता मेरा राह एक प्रकाश पुन्ज चाँद सा हर दम मेरे साथ चलता।एक क्षण को बुझ जाता हर दीप मन का पर ये चाँद प्रतिक्षण मेरे साथ होता।
भूलने की ये कहानी मुझे समझ ना आती और भूलता रहता जन्म दर जन्म अपनी सारी जन्मगाथाएँ।भूल जाता सारे रिश्ते जिन्हें सहेजते अपनी कितनी जन्मों की भावनाओं को दावँ पे रखता था मै और अपना सर्वस्व समर्पित करने के बाद भी कुछ और देने की इच्छा रहती थी मन में।उस ममता को भी भूल गया और उस ममतामयी काया को भी।जन्म दर जन्म ममतामयी काया का स्वरुप बदलता रहा और मै भूल गया अपनी बीती सभी जननियों को भी।
जीवन का सत्य जन्म और मृत्यु,जन्म में आनंद की महक और मृत्यु में जुदाई की कसक।इन सभी सांसारिक लक्षणों से मुक्त होकर मै आज आया हूँ यहाँ।जानता हूँ कोई नहीं है यहाँ जो मेरा है,पता है कुछ नहीं है अपना जिसपर अधिकार जता सकता हूँ।पर ये तो बता दो मेरे परमपिता!"तुम कहाँ हो?"तुममे मिलना ही मेरी सम्पूर्णता है।तुम्हारे दर्शन ही मेरे नैनों की नैन पुतलियों की रौशनी है,जिनमें रिक्त है अब तक तुम्हारी प्रतिमूर्ति की छाया।अब तक बस बदलता रहा स्वरुप तुम्हारे कांतिमय काया का पर प्रभू आज इन नैनों की जिद के आगे विवश हूँ।वो तो बस तुम्हारे प्रकाश पुन्ज के प्रकाश से ही प्रकाशित होंगे वरना इन आँखों की रौशनी तो खो ही जायेगी।
नभ की ओर हाथों को फैलाकर,चारों दिशाओं को एक संग आधार बनाकर आज करना है तुम्हारा आह्वाहन।अंतर्मन से पुकारना है तुम्हें और लहु की हर बूँद का कतरा कतरा भी न्योछावर कर आज तुम्हारे वास्ते मर मिटना है।पता नहीं ये मेरी भक्ति है या समर्पण की शक्ति है पर ऐसा लगता है आओगे तुम।तुम्हारे आने पर नभ से सुगंधित पुष्पों की वृष्टि होगी।धरा खुशहाल होकर स्वागत गीत गायेगा और जलमंडल अपने खारे जल को विशुद्ध पावन बना कर तुम्हारे पावँ पखारने निकल पड़ेगा।सभी जीव,प्राणि तुम्हारे आगमन की उत्सुकता से ऐसा कोलाहल मचायेंगे जो एक संगीतमय वातावरण निर्मित करेगा।मेरा अस्तित्व जरा तुच्छ सा होगा इन विराट ब्रह्मांड के नायकों के समक्ष पर प्रभू जिसके दर्शन को सब नैन बिछायेंगे उसको तो मै अपने मन के मंदिर में ही देख लूँगा आँखें बंद कर।जिससे मिलने सम्पूर्ण संसार आगे बढ़ेगा उसे तो मै बस मन के नगर में एक कदम उतर कर ही पा लूँगा।
वास्तविक जीवन के वास्तविक परिचायक मेरे प्रभू तुम चिर काल से चिर काल तक मेरे पालक और संरक्षक हो।माँ-बाप,भाई-बहन अन्य सारे रिश्ते बस क्षणिक है,जिनके अस्तित्व को ताउम्र महसूस कर सकना संभव है पर जन्म दर जन्म याद रखना असम्भव।जन्म दर जन्म भूलता गया हर बात जिस बात में मै था,तुम थे और शायद कभी हम सब थे।भूल गया वो जगह जहाँ कभी मै और तुम हँसते थे,रोते थे और कई बार जागते और फिर सोते थे।बस याद रहा वो राह और राह में आलोकित वो प्रकाश पुन्ज,जो शायद तुम ही हो मेरे प्रभू।
भूलने की ये कहानी मुझे समझ ना आती और भूलता रहता जन्म दर जन्म अपनी सारी जन्मगाथाएँ।भूल जाता सारे रिश्ते जिन्हें सहेजते अपनी कितनी जन्मों की भावनाओं को दावँ पे रखता था मै और अपना सर्वस्व समर्पित करने के बाद भी कुछ और देने की इच्छा रहती थी मन में।उस ममता को भी भूल गया और उस ममतामयी काया को भी।जन्म दर जन्म ममतामयी काया का स्वरुप बदलता रहा और मै भूल गया अपनी बीती सभी जननियों को भी।
जीवन का सत्य जन्म और मृत्यु,जन्म में आनंद की महक और मृत्यु में जुदाई की कसक।इन सभी सांसारिक लक्षणों से मुक्त होकर मै आज आया हूँ यहाँ।जानता हूँ कोई नहीं है यहाँ जो मेरा है,पता है कुछ नहीं है अपना जिसपर अधिकार जता सकता हूँ।पर ये तो बता दो मेरे परमपिता!"तुम कहाँ हो?"तुममे मिलना ही मेरी सम्पूर्णता है।तुम्हारे दर्शन ही मेरे नैनों की नैन पुतलियों की रौशनी है,जिनमें रिक्त है अब तक तुम्हारी प्रतिमूर्ति की छाया।अब तक बस बदलता रहा स्वरुप तुम्हारे कांतिमय काया का पर प्रभू आज इन नैनों की जिद के आगे विवश हूँ।वो तो बस तुम्हारे प्रकाश पुन्ज के प्रकाश से ही प्रकाशित होंगे वरना इन आँखों की रौशनी तो खो ही जायेगी।
नभ की ओर हाथों को फैलाकर,चारों दिशाओं को एक संग आधार बनाकर आज करना है तुम्हारा आह्वाहन।अंतर्मन से पुकारना है तुम्हें और लहु की हर बूँद का कतरा कतरा भी न्योछावर कर आज तुम्हारे वास्ते मर मिटना है।पता नहीं ये मेरी भक्ति है या समर्पण की शक्ति है पर ऐसा लगता है आओगे तुम।तुम्हारे आने पर नभ से सुगंधित पुष्पों की वृष्टि होगी।धरा खुशहाल होकर स्वागत गीत गायेगा और जलमंडल अपने खारे जल को विशुद्ध पावन बना कर तुम्हारे पावँ पखारने निकल पड़ेगा।सभी जीव,प्राणि तुम्हारे आगमन की उत्सुकता से ऐसा कोलाहल मचायेंगे जो एक संगीतमय वातावरण निर्मित करेगा।मेरा अस्तित्व जरा तुच्छ सा होगा इन विराट ब्रह्मांड के नायकों के समक्ष पर प्रभू जिसके दर्शन को सब नैन बिछायेंगे उसको तो मै अपने मन के मंदिर में ही देख लूँगा आँखें बंद कर।जिससे मिलने सम्पूर्ण संसार आगे बढ़ेगा उसे तो मै बस मन के नगर में एक कदम उतर कर ही पा लूँगा।
वास्तविक जीवन के वास्तविक परिचायक मेरे प्रभू तुम चिर काल से चिर काल तक मेरे पालक और संरक्षक हो।माँ-बाप,भाई-बहन अन्य सारे रिश्ते बस क्षणिक है,जिनके अस्तित्व को ताउम्र महसूस कर सकना संभव है पर जन्म दर जन्म याद रखना असम्भव।जन्म दर जन्म भूलता गया हर बात जिस बात में मै था,तुम थे और शायद कभी हम सब थे।भूल गया वो जगह जहाँ कभी मै और तुम हँसते थे,रोते थे और कई बार जागते और फिर सोते थे।बस याद रहा वो राह और राह में आलोकित वो प्रकाश पुन्ज,जो शायद तुम ही हो मेरे प्रभू।
5 comments:
प्रभु पर आश्वस्ति दर्शाती ..प्रभुप्रेम में डूबा सुंदर आलेख ...!!
a pure and divine post !!
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण आलेख! बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
तुम हँसते थे,रोते थे और कई बार जागते और फिर सोते थे।बस याद रहा वो राह और राह में आलोकित वो प्रकाश पुन्ज,जो शायद तुम ही हो मेरे प्रभू
prabhu ko samarpit bahut sundar aalekh.badhai.
बहुत सुन्दर पोस्ट
Happy Environmental Day !
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