Monday, February 14, 2011

प्यार की वो आखिरी रात

सहम गया था मै अंदर तक बस तुम्हारी एक बात सुनकर "मुझे भूल जाओ,हमारा साथ शायद इतना ही था अब कल से हम नहीं मिल सकते।"मानों ऐसा लगा कि कोई जोर का तूफान आया हो मेरे जीवन में जो अंदर तक जाने कहा तक मुझे झकझोर के रख दिया।कुछ भी कहने की स्थिती में था मै,सब कुछ तो कह दिया था तुमने ये कह कर "मुझे भूल जाओ।"
 हर रोज तुम मिलती और एक नये एहसास के साथ हमारे प्यार की मानों रोज एक नये सिरे से शुरुआत होती।कुछ तुम कहती,कुछ मै कहता।कुछ तुम सुनती,कुछ मै सुनता।ना ही समय की पाबंदी होती और ना ही कोई भी होता हमारे प्यार के बीच।पर आज क्यों इक मौन की नजर लग गयी थी हमारे प्यार के हलचल में।होंठ कुछ बोलते ना थे,पर बेचारे आँख खुद पर काबु ना रख पाये।बहने लगी धार आँसूओं की और भींग गया मेरा अंतरमन पूरे अंदर तक।

आज क्यों ना जाने बस दो पग की अपनी दूरी हजारों मीलों के फासलों जैसा लगा।सीमट गई सारी दूरी बस इक मेरे दायरे में और मै चाह के भी ना छु सका तुम्हे।इक अजीब सी खामोशी कही से के बस गयी थी हमारे प्यार के खिलखिलाते घर में।बस दो शब्दों ने तबाह कर दिया था अपने सपनों का रँगीला भविष्य।
 यादें झाँकती और हर पल नजरों के सामने वो सारी बाते तुम्हारी किसी चलचित्र की भाँति उमरने लगती।कानों में मेरे गूँजने लगता तुम्हारा वो स्नेहभरा प्रेम पूर्ण शब्द "मै तुमसे प्यार करती हूँ।"बस इतना सुनते ही रोमांचित हो जाता मेरा रोम रोम और घुलने लगती प्यार की इक भींगी खुशबु।ऐसा प्रतीत होता कि मै दुनिया का सबसे खुशनसीब हूँ जो मुझे कोई प्रेम करने वाला मिला है।कोई है जिसे बस मेरी चिंता है।मेरी खुशी में वो हँसती है,और गम में आँसू बहाती है।

हर रोज की भाँति आज शाम को भी तुमसे मिलने निकल पड़ा मै और तुम भी मेरे इंतजार में पहले से खड़ी थी।पर मुझे कहा ये पता था कि आज तुम्हारे इतने करीब होकर भी मै तुमसे बहुत दूर हो गया था।मैने तुम्हारे चेहरे पे उभरी हुई सिकन की लकीरे देख ली थी।मैने पूछा तुमसे क्या बात है,क्यों उदास हो तुम?कुछ देर तक तुमने कुछ ना कहा और फिर तुम्हारे दो शब्द "मुझे भूल जाओ" कही अंदर तक झकझोरते रहे मुझे।मुझे नहीं पता कि ये तुम्हारी विवशता थी या और कुछ।मेरे पास नहीं थे शब्द,कि मै तुमसे पूँछु कि तुमने क्यों कहा ये शब्द?

बस एक प्रश्न मेरे जेहन में छा सा गया।क्या भूल गयी तुम वो सारी वादे,कसमें अपने प्यार की।मै तुम्हारे लिए सबकुछ था और तुम थी मेरे लिए सबकुछ मेरी जिंदगी।पर जाने क्यों आज हमारा प्यार बिल्कुल मजबूर होकर रह गया था।खुद खुद बिना जाने कोई कारण तुम्हारी इस विवशता का मेरे पाँव मुड़ गये लौटने की राह में।आँखों में आँसू,दिल में तुम्हारा प्यार और यादों में गुजरा हुआ हर क्षण समेट लाया मै।
 उस रात जाने क्यों बड़ा बेबश हो गया था मै।चाह कर भी ना पूछ पाया तुमसे कुछ और।असमर्थ था किसी से क्या कहता अपनी प्यार की दास्ता।कभी बस ये सोच के कि तुमसे जुदा होकर मुझे रहना होगा।मेरा ह्रदय बड़ा भयभीत हो जाता।और आज उसी बुरे सपने में जी रहा था मै।तुम अब नहीं मिलोगी मुझसे,तुम अब नहीं बात करोगी मुझसे।कैसे रह पाऊँगा मै अब तुम्हारे बिन यही सोचता सोचता उस रात मै खुद में बिल्कुल बेबश सा होकर रह गया।वो आखिरी रात हमारे प्यार की मुझे मेरे जीवन का अवसान लगने लगा।एक समय पहली बार मिली थी तुम मानों जिंदगी मिल गयी थी।और आज बस तुम्हारे दो शब्दों ने मुझे और हमारे प्यार को लाकर खड़ा कर दिया प्यार के उस आखिरी रात में।

7 comments:

shikha varshney said...

सुन्दर और अह्सासपूर्ण प्रस्तुति.

Atul Shrivastava said...

वेलेन्‍टाईन डे पर बिछोह की कहानी। बडी नाइंसाफी है...। बेहतरीन प्रस्‍तुति।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

प्यार के गहरे अहसास को जगाती प्रस्तुति !

mridula pradhan said...

dard jaise saakaar ho utha hai....bahut hi bhawpurn.

vandana gupta said...

भाव बह रहे हैं दर्द मे डूबकर्……………फिर भी एक बार पूछना तो चाहिये था कम से कम कोई मलाल तो न रहता दिल मे…………अब किस मोड पर लाकर दिल तूने तोडा , अपना बनाना रहा दूर तूने औरो के हो जाये ऐसा ना छोडा।

Manoj Kumar said...

very nice....very imotional...!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
सूचनार्थ