कितनी सुंदर लग रही है आज ये सारी छटायें,जो कल तक बेरंग थी मेरे लिए।साँझ की लालिमा में लिपटा बितता पहर आज अपने किसी पुराने साथी सा जान पड़ा जो अब मुझे अकेला नहीं देख पाया और अपनी मद्धम साँझ की लालिमा में यादों के संग समेटता गया मुझे।ये बदलाव शायद इसलिए था कि मुझे तुम्हारी आहटों का पता चल गया था।मै जान गया था कि तुम फिर आ रही हो मेरे पास बस मेरे प्यार की खातिर।उसी झील के किनारे जाकर कई घंटे निहारता रहा उसकी चुप्पी और खामोशी को।ये वही जगह था जहाँ हम कई घंटे बस यूँही बातें करते थे और एक दूसरे की नजर में अपने लिए कितना प्यार है जानने की कोशिश करते थे।तुम पूछती थी "कितना प्यार करते हो मुझसे?" और मै बाहें फैला कर आसमां को उनमें समेटने की कोशिश करता और बताता कि इस अनंत आसमां की चादर भी जहाँ तक सीमित हो जाये,उससे भी आगे तक कई गुणा प्यार करता हूँ तुमको।
आज वो झील फिर से मानों मेरी नजरों में आ बसा है।तुम्हारी परछाई कही झील में दिखती और तुम्हारे आने के एहसास से मेरा रोम रोम प्रफुल्लित हो उठता।विरह की उन सारी रातों को जिसे बस मैने महसूस किया था,वेदना के उन सारे क्षणों को जिसमें बस खुद ही खुद में बड़बड़ाता कितनी बातें कही थी तुमसे याद कर रहा था मै।तुमसे ये कहूँगा,तुमसे वो पूछूँगा,फिर सोचता क्या कहूँगा तुमसे "तुम तो भूल गयी थी ना मुझे,तुम्हें पता था कि मुझे कितनी याद आती थी तुम्हारी?"कभी सोचता बस देखता रहूँगा तुमको,कही नहीं जाने दूँगा।अगर तुम होगी सामने तुमसे खुब सारी बातें करुँगा और तुम्हारे पहलू में आज खुब रोऊँगा।मेरी आँखों में समाये उस झील का प्रतिबिम्ब आज बरसेगा,नहीं रोकूँगा मै।बस बरसने दूँगा।
फिर यही सब सोचता खोता गया मै पुरानी यादों में और वे यादें मेरे भविष्य की कल्पना गढ़ती रही।सोचता कि कही ऐसा न हो तुम मुझे पहचान ही ना पाओ,तो मै तुम्हें फिर वही गीत सुनाऊँगा जो बहुत अच्छा लगता था तुम्हें।तब तो शायद मेरी आवाज से पहचान ही लोगी तुम और अगर फिर भी ना पहचानी तो वो सारी तकियाकलाम जो मै कहता था और तुम दूहराती थी,उनका सहारा लूँगा।याद है तुमने कहा था,मेरा ये कहना "बोलो ना!"बहुत पसंद था तुम्हें।पर तुम्हारे जाने के बाद हर रोज इन पेड़ों से,आसमां से,झील से और रात को चाँद से बस यही कहता था मै "बोलो ना!"।पर तुम तो शायद सुनती ही ना थी मुझे।
तुम्हारे आने की आश इक नयी जिंदगी की सौगात लेकर आया मेरे लिए।वो जिंदगी जिसने मुझे प्रेरणा दी मेरे खुद के होने का।जिस प्रेम के अस्तित्व ने मेरे मिटते अस्तित्व को एक नयी जिंदगी की नींव दी थी।आज उदासी के हर उन क्षणों के निष्कर्ष का पल था,जो मिला था मुझे तुमसे तुम्हारे जाने के बाद।कई प्रश्न मेरे होंठों पर अब भी थे जिनका जवाब बस तुम्हारे पास था।कई बातें थी जो थी अधूरी तुम्हारे जाने के बाद।आज एक नयी आश लिए वे सभी मुझे इक अनोखे एहसास में सराबोर कर रही थी।झील की गहराई में उतरती चाँद की परछायी और सम्मोहीत करता तुम्हारे आने का एहसास।कई भाव संप्रेषित होकर जाना चाहते तुम्हारे पास और मानों यादों की पालकी पर बिठाकर ले आना चाहते मेरी जिंदगी में तुम्हें फिर से।हर एक पल जो कई सदियों सा गुजरा था अब मानों युग युग की प्यास को तरसता बस मेरे दहलीज में आकर कैद हो गया था।सब शीथिल,शांत और चुपचाप नजरें गड़ाये करते रहे तुम्हारा इंतजार।
हवाएँ मानों रुक गयी और चाँद भी बादलों के ओट से झाँकने लगा।झील अपनी खुशी कल कल की ध्वनि से प्रस्तुत करती और दिल की धड़कन धक धक,धक धक।पलकें अपलक सी बिना गिरे देखती रही और करती रही तुम्हारा इंतजार।किसी स्वप्न सुंदरी सी स्वर्णिम परिधानों में लिपटी आसमां के राहों से पुष्पविमान से आती तुम झील के बीचोंबीच रुक गयी और सम्पूर्ण धरती और अम्बर एक पल थम कर देखते रहे तुम्हें।मेरी साँसे महसूस करने लगी तुम्हारी उपस्थिती और जेहनोदिल में छाने लगी तुम।तुम्हारा सम्मोहन और प्रेममय अंदाज किसी इंद्रजाल सा मेरी धड़कनों की गति को और बढ़ाता रहा और एकाएक आँखे खुली सामने शांत झील और आसमां में चाँद।पर फिर भी एक आश की काश सच हो जाये आज ये एहसास तुम्हारे आने का।