Thursday, January 12, 2012

हे मेरे प्रेम! तुम लौट आओ ना फिर

हे मेरे प्रेम! तुम कहाँ हो?क्यूँ ना नजर आते हो आजकल मुझे।क्या तुम अबतक मुझसे रुठे हो,कभी आवाज भी नहीं देते या भूला दिया है तुमने मुझे।मै अब भी अक्सर हर रात तुम्हारा इंतजार करता हूँ उसी छत पर जहाँ तुम मुझसे पहले ही पहुँच कर मेरा इंतजार करते थे और मेरे पहुँचने पर दुसरी तरफ मुँह फेर कर अपनी नाराजगी जाहीर करते थे।जब मै तुमको मनाकर थक कर एक ओर बैठ जाता तो तुम खुद ही आ जाते थे मेरे पास।हे मेरे प्रेम! तुम तो मेरी प्रेमिका के स्वरुप में थे ना जो मुझपर जान छिड़कती थी,जो मुझको बेतहासा पागलों की तरह चाहती थी,जो मेरे बगैर एक पल भी नहीं रह पाती थी।पर क्या आज मौसम के बदलने से मेरी प्रेमिका भी बदल गयी,प्रेम का स्वरुप भी बदल गया।
हे मेरी सलोनी साँवली! मेरे साँसों में बसने वाली।क्या अब तुम्हें जरा भी फिक्र नहीं मेरी इन धड़कनों का।तुम्हारे बिन ये बड़े रुक रुक के चलते है।पता है तुम्हें हर वो रात कैद है अब भी मेरी यादों में।जब भी याद करता हूँ हँस पड़ता हूँ।जानती हो क्यों?क्योंकि कभी कभी ताजुब्ब सा होता है तुम्हारे ना होने पर भी मेरे होने का।हे प्रियतमा! आँसू बहते है पर अब इनका मोल नहीं है जो तुम नहीं हो इन्हें पोंछने वाली।क्या मेरे सारे प्रश्नों का जवाब दिये बिना ही तुम चली जाओगी।अक्सर तुम कहती थी "आप सवाल बहुत करते हो" पर अब क्यों ना आती हो जवाब लेकर मेरे बेवजह सवालों का।
तुम्हें याद करते करते रात ढ़लती जाती है और मै ख्वाब में ही सही तुमसे मिलने की जिद लिये आँखों को जबरदस्ती बंद करता हूँ।पर ना जाने क्यूँ तुम मेरे ख्वाबों से भी रुठ गयी हो।हर सुबह इसी उम्मीद के साथ आँखें खोलता हूँ कि कही तुम्हें सामने देख लूँ पर स्मृति की रेखाओं से बहुत दूर हो गयी हो तुम।ह्रदय का हाल बड़ा ही अजीब है आजकल तुम्हारे बाद।मेरा ये लाचार प्यार बस आहें भरता भरता हर दिन गुजारता जाता है।तड़पता हूँ और फिर मुस्कुरा लेता हूँ ये सोच कर की कही ना कही,कभी ना कभी तो मिलोगे तुम।हमारे प्यार की इस कहानी में कई बार ऐसा हुआ है कि हम बार बार बिछड़ कर फिर मिल गये है।पर अब इस दिल को सब्र नहीं है खुद पर।बेचार अक्सर पुकारता रहता है तुमको।
हे प्रियतमा! आकाश की ऊँचाईयों में कही गुम सा हो गया है मेरा वो हर एक शब्द जो मैने तुमसे कहे थे।मेरे जीवन की हर शाम बस तन्हाईयों से भरी हुई है।महफिल में भी सूनापन घेरे हुये है मुझे और हर पल तुम्हारी याद तुम्हें भूलने के सभी प्रयत्नों को व्यर्थ सा करता जा रहा है।शायद तुम्हारे बाद अब मेरे जीवन में रात का ऐसा सन्नाटा छाया है जिसे तुम्हारे प्यार के अलावे और कुछ नहीं मिटा सकता।सुनता हूँ अब भी धड़कनों में तुमको और उस चाँद से रोज सिफारीश करता हूँ तुम तक मेरे अनकहे संदेशों को पहुँचाने का।हे प्रियतमा! क्या तुम अब उस चाँद में मेरी छवि नहीं निहारती।क्या तुम सच में अब मुझसे प्यार नहीं करती या बस दो पल का प्यार ही मेरी किसमत में था।
तुम्हारे बाद कुछ अजीब सी बहती है ये हवायें कभी कानों में कुछ कहती है तो कभी रास्ते के पत्तों को उड़ाकर जमीन पर तुम्हारा नाम लिख देती है।तुम्हारे बिन चाँद मुझको दिलकश नहीं लगता।फिकी लगती है सारी फिजाएँ और मायूस सा लगता है हर आलम।पता है तुम्हें तुम्हारे बाद अब वो झील भी नहीं बहती पहले की तरह।खुद ही अपने आँसूओं को धोता धोता दिन से रात कर देता है।सामने का वो मोड़ जहाँ से हम अक्सर एक दुसरे की हाथों में हाथे डाले चलते रहते थे अब नहीं मुड़ता कही।शायद वो भी अब लक्ष्यविहीन हो गया है तुम्हारे बाद।तुम्हारे बाद बस यादों की हवायें चलती है जो मेरे ह्रदय पृष्ठों पे रेत से लिखे तुम्हारे नाम को पल भर में तहस नहस कर देती है।तुम्हारे बाद आसमां में चाँद काले बादलों की ओट में ही छुपा रहता है।शायद अब उसकी हिम्मत नहीं मुझसे नजरे मिलाने की या कही तरस आता हो उसे मेरे हाल पर।
एक बात पुछू तुमसे क्या मेरे बाद तुम्हें मेरी याद नहीं आती कभी।क्या बस चंद पलों में कई जन्मों के रिश्ते को भूला दिया तुमने।क्या तुम्हें मेरी कोई परवाह नहीं होती।शायद तुम सच में भूल चुकी हो मुझे तभी तो अब कभी हिचकीयाँ भी नहीं आती मुझे।जानती हो आज मैने अपनी आँखों से एक करार किया है।तुमसे मिलने पर इनसे बहे हर एक आँसूओं का बदला लूँगा।टूट चुका हूँ पूरी तरह और बिखर गये है मेरे सारे ख्वाब किसी रेत के महल की तरह।मै तुमको नहीं खोना चाहता हूँ इसलिए हर दर्द को मरहम बना कर खुद में ही छुपाये रखता हूँ।बहुत कुछ खो दिया है मैने अब तक।पर यदि इस बार तुम्हें खो दूँगा तो कही बर्दाश्त ना कर पाऊँ और तुम्हारे बाद हमेशा के लिये आँखें बंद कर सो जाऊँ।यदि अब तुमने थोड़ा भी देर किया आने में तो सच में हे प्रियतमा! मै चिर निद्रा की आगोश में चला जाऊँगा सदा के लिये तुमसे और इस दुनिया से काफी दुर।हे मेरे प्रेम! तुमने क्यों खेला मेरे साथ ऐसा खेल जिसने मुझे बस दर्द के सिवा कुछ ना दिया।हर जीतने में भी हारता रहा मै और तू हर बार मुझे आँसूओं से पुरस्कृत करता रहा।हे मेरे प्रेम! लौट आओ ना फिर बस एक बार मेरी खातिर।बस एक बार.....।क्योंकि तुम्हारे बिना कुछ नहीं है मेरे पास सिवाये दर्द  के और पुरानी यादों के।तुम ही कहो ना कितना सहूँ मै दर्द।हे मेरे प्रेम! तुम लौट आओ ना फिर।मुझे पता है तुम गुस्सा हो मुझसे क्योंकि मैने तुम्हारी कदर ना कि पर क्या मुझे बस एक बार मौका नहीं दोगे सुधरने का।

6 comments:

Ravi Chauhan said...

Very Nice post

विभूति" said...

सुंदर अभिव्यक्ति..

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..बधाई ..

रेखा said...

वाह ...बहुत खूब

Anonymous said...

A must read post! Good way of describing and pleasure piece of writing. Thanks!

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Anonymous said...

I feel very grateful that I read this. It is very helpful and very informative and I really learned a lot from it.

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