चाहता है ह्रदय फिर से तुम्हें पाने को और इस बार पाकर कभी ना खोने को।सुनना चाहता है तुम्हारी हर एक वो शिकायत जो तुम इक अनूठे अधिकार के साथ करती थी मुझसे।और मै तुम्हारी डाँट सुन कर भी हँस पड़ता था उस भोलेपन पर जो छलकता था तुम्हारी हर एक शब्द से।बड़े दिन हो गये,गये हुए तुमको पर अब तो दुनियादारी की बातें सुन-सुन कर थक से गये है मेरे कान।वो तो अब भी तुम्हारी अल्हड़पन वाली कोमल भावनाओं में भिंगोयी बातें सुनने को व्याकुल है।जिन बातों में बस अपनत्व और स्नेह की मिठास घुली होती थी।
शायद ये नहीं पता तुमको पर अब भी सुनता हूँ मै तुमको।जब-जब धड़कने धड़कती है तब-तब और जब जब साँसे चलती है तब-तब।हर उस लम्हें में तुम्हारी हँसी की खनखनाहट समा जाती है मेरे कानों में।तुमसे की गयी कुछ बातें जिनको मैने अपने मोबाईल में रिकार्ड कर लिया था आज भी आधी रात में एकाकी मन को तुम्हारे संग का एहसास दे जाते है।लगता है ऐसा कि तुमसे बात हो रही है,पर विचित्र स्थिती होती है मेरी उस समय तुम्हारे किसी बात का जवाब नहीं दे पाता मै बस मौन होकर सुनता रहता हूँ तुम्हें।जाना चाहता हूँ उस बीतें पल में और फिर पूछना चाहता हूँ तुमसे कुछ पर क्या करुँ खुद को हर बार अब अनुपस्थित पाता हूँ उस क्षण में जो बीत गया है।ना रहा वो प्यार अब और ना रहे वो प्यार करने वाले पर यादों में कैद तुम्हारी आवाज आज भी याद दिलाते है अपने प्यार के वादों और कसमों को।
आज रात की आधी पहर में जब सांसारिकता की सारी उलझनें भूल कर चैन से सोने गया बिस्तर पर तभी सहसा तुम्हारी यादों की हवायें आने लगी मेरी खिड़की से और शायद साथ में लाये कुछ बोल तुम्हारे टकराने लगे मेरी कानों से।मन में जगी इक ईच्छा ने आज सुनना चाहा तुमको और मै हेडफोन को अपने कानों में लगा सुनने लगा तुम्हारी बातों की रिकार्डींग।पता नहीं कितना पुराना था वो पर आज भी सुन कर लगता जैसे हो रही हो अब भी बात अपनी।हर बार की तरह मानों अपने प्रेम की शंका से उपजा मेरा प्रश्न पूछ बैठता तुमसे "कितना प्यार करती हो मुझसे?" और तुम बस इतना कहती "बहुत,बहुत बता नहीं सकती।"सुन कर आज बातें तुम्हारी एहसास हुआ कितने ख्वाब और भविष्य की कल्पनायें जो देखे थे हमने कल अब भी तो उतने ही अधूरे है जितने थे कल तक और अब तो शायद उन ख्वाबों के पूरे होने का ख्वाब भी नहीं आता मुझको।
हाँ तुम्हारी बातों ने तुम्हारे संग का एहसास दिया था मुझे पर इस एहसास में ना तो स्पर्श की कोई संवेदना थी और ना ही मेरे स्वयं का कोई सहयोग।बस इक मिथ्यास्पद गुजरे कल के कुछ बिखरे मोतियों को सहेज कर अपने प्रेम की माला बनाने की कोशिश कर रहा था मै और सहेज रहा था अपने आशिया के बिखरे तिनकों को जो मेरे दिल के घर को भी आज सूना सूना सा कर गये थे तुम्हारे जाने के बाद।सुनकर इक दिलासा जगा था दिल में कि चलो आज ना सही पर कभी तो हुआ था वो मेरा जिसकी चाहत ने न जाने कितनी तमन्नाएँ सौंपी थी मुझको और खुशनुमा,खुशहाल जिंदगी के कई ख्वाब दिखाये थे मुझे।जिसके साथ ने थामा था हाथ मेरा और मुझे भी सीखाया था प्यार करना पहली पहली बार मुझे।वो ही तो था पहला प्यार मेरा।
तुमको सुनते-सुनते न जाने कब नींद ने भर लिया अपने आगोश में मुझको और एकाएक इक झटके में जाग गया मै लगा कि मानों तुमने कहा हो "इतनी जल्दी क्यों सो गये तुम,देखो ना मै तो आज भी जागी हूँ रात-रात भर।"और मेरी आँखों से फिर दूर चला जाता वो रात जिनमें नींद ना था मेरी आँखों में बस रात थी और तुम्हारी बात।जी करता सुनता रहूँ हर रोज यूँही तुमको और इस झुठे दिलासे के संग देता रहूँ इक उम्मीद अपने कानों को भी कि हो ना हो इक रोज जरुर गूँजेंगे तुम्हारे कुछ शब्द इनमें जो अपनी प्यार की अधूरी कहानी को पूरा करेंगे और तुमको सुन लूँगा फिर आँखों को मूँद कर के शायद आखिरी बार।
शायद ये नहीं पता तुमको पर अब भी सुनता हूँ मै तुमको।जब-जब धड़कने धड़कती है तब-तब और जब जब साँसे चलती है तब-तब।हर उस लम्हें में तुम्हारी हँसी की खनखनाहट समा जाती है मेरे कानों में।तुमसे की गयी कुछ बातें जिनको मैने अपने मोबाईल में रिकार्ड कर लिया था आज भी आधी रात में एकाकी मन को तुम्हारे संग का एहसास दे जाते है।लगता है ऐसा कि तुमसे बात हो रही है,पर विचित्र स्थिती होती है मेरी उस समय तुम्हारे किसी बात का जवाब नहीं दे पाता मै बस मौन होकर सुनता रहता हूँ तुम्हें।जाना चाहता हूँ उस बीतें पल में और फिर पूछना चाहता हूँ तुमसे कुछ पर क्या करुँ खुद को हर बार अब अनुपस्थित पाता हूँ उस क्षण में जो बीत गया है।ना रहा वो प्यार अब और ना रहे वो प्यार करने वाले पर यादों में कैद तुम्हारी आवाज आज भी याद दिलाते है अपने प्यार के वादों और कसमों को।
आज रात की आधी पहर में जब सांसारिकता की सारी उलझनें भूल कर चैन से सोने गया बिस्तर पर तभी सहसा तुम्हारी यादों की हवायें आने लगी मेरी खिड़की से और शायद साथ में लाये कुछ बोल तुम्हारे टकराने लगे मेरी कानों से।मन में जगी इक ईच्छा ने आज सुनना चाहा तुमको और मै हेडफोन को अपने कानों में लगा सुनने लगा तुम्हारी बातों की रिकार्डींग।पता नहीं कितना पुराना था वो पर आज भी सुन कर लगता जैसे हो रही हो अब भी बात अपनी।हर बार की तरह मानों अपने प्रेम की शंका से उपजा मेरा प्रश्न पूछ बैठता तुमसे "कितना प्यार करती हो मुझसे?" और तुम बस इतना कहती "बहुत,बहुत बता नहीं सकती।"सुन कर आज बातें तुम्हारी एहसास हुआ कितने ख्वाब और भविष्य की कल्पनायें जो देखे थे हमने कल अब भी तो उतने ही अधूरे है जितने थे कल तक और अब तो शायद उन ख्वाबों के पूरे होने का ख्वाब भी नहीं आता मुझको।
हाँ तुम्हारी बातों ने तुम्हारे संग का एहसास दिया था मुझे पर इस एहसास में ना तो स्पर्श की कोई संवेदना थी और ना ही मेरे स्वयं का कोई सहयोग।बस इक मिथ्यास्पद गुजरे कल के कुछ बिखरे मोतियों को सहेज कर अपने प्रेम की माला बनाने की कोशिश कर रहा था मै और सहेज रहा था अपने आशिया के बिखरे तिनकों को जो मेरे दिल के घर को भी आज सूना सूना सा कर गये थे तुम्हारे जाने के बाद।सुनकर इक दिलासा जगा था दिल में कि चलो आज ना सही पर कभी तो हुआ था वो मेरा जिसकी चाहत ने न जाने कितनी तमन्नाएँ सौंपी थी मुझको और खुशनुमा,खुशहाल जिंदगी के कई ख्वाब दिखाये थे मुझे।जिसके साथ ने थामा था हाथ मेरा और मुझे भी सीखाया था प्यार करना पहली पहली बार मुझे।वो ही तो था पहला प्यार मेरा।
तुमको सुनते-सुनते न जाने कब नींद ने भर लिया अपने आगोश में मुझको और एकाएक इक झटके में जाग गया मै लगा कि मानों तुमने कहा हो "इतनी जल्दी क्यों सो गये तुम,देखो ना मै तो आज भी जागी हूँ रात-रात भर।"और मेरी आँखों से फिर दूर चला जाता वो रात जिनमें नींद ना था मेरी आँखों में बस रात थी और तुम्हारी बात।जी करता सुनता रहूँ हर रोज यूँही तुमको और इस झुठे दिलासे के संग देता रहूँ इक उम्मीद अपने कानों को भी कि हो ना हो इक रोज जरुर गूँजेंगे तुम्हारे कुछ शब्द इनमें जो अपनी प्यार की अधूरी कहानी को पूरा करेंगे और तुमको सुन लूँगा फिर आँखों को मूँद कर के शायद आखिरी बार।