पूरा जिस्म काँपने लगा,एक अजीब सी घबड़ाहट होने लगी,साँसे फूल गयी,और मै मानों दौड़ता भागता एक भयानक सपने को पीछे छोड़ जाग गया।बड़ा ही डरावना और भययुक्त था,वो सपना उस रात का।सपने में देखा मैने अपने वजूद का जुदा होना और तुम्हारा मुझसे दूर जाना।बिल्कुल असहाय सा चिल्लाता रहा,अपने जिंदगी को खुद से जुदा होते देखता रहा,और कुछ ना कर सका।अचानक ख्वाब टुटा और खुद को फर्श पर पाया,न जाने कैसे जुदा हो गया मुझसे तेरे प्यार का साया।जागने पर एहसास हुआ उस भयानक सपने के टुटने का और तसल्ली मिली तुम्हारे साथ होने का।
यथार्थ से बिल्कुल उल्टा और मीलों दूर होती है सपनों की नगरी।इंसान सपने संजोता है,खुश होता है,और उसके टुट जाने पर खुद भी टुट कर बिखर जाता है।इक स्वप्न निंद के आगोश में ही पैठ बनाता है,और दूसरा वो स्वप्न होता है जिसे इंसान अपनी जागती हुई आँखों से देखता है।रात का ख्वाब टुटता है और इंसान ये कह कर दिल को तसल्ली दे लेता है,कि वो तो बस मेरा एक भ्रम था।एक सैर थी मेरे स्थूल शरीर और विचारों की मिथ्याकाश में।पर जब टुटता है,व्यक्ति का दिवा स्वप्न तो वो बिल्कुल अधीर हो जाता है।क्योंकि न चाहते हुए भी उसे सत्य की चादर में समेटने की कोशिश करता है इंसान।
आज फिर टुट गएँ मेरे कई ख्वाब एक साथ और तुमसे जुदाई का डर सताने लगा।आज सच में मुझे बेवजह ही उस रात के सपने पर विश्वास होने लगा।कभी कभी प्यार का अनोखा एहसास होता और कभी जुदाई का भयावह डर सताता।बिल्कुल किसी असहाय प्रेमी की भाँति मेरा प्रेम भी अब समाज की कुंठित मान्यताओं की बलि चढ़ने वाला था।पर चाह कर भी तुमसे एक पल भी जुदा होना मेरे लिएँ गँवारा न था।तुम्हारा प्रीत भले आज कच्चे धागों में बदल गया हो,पर मेरे प्रीत की डोर तो अब भी बिल्कुल वैसी ही है,जेसी हुआ करती थी पहले।
बस गिने चुने दिन ही गुजार पाया था मै संग तुम्हारे और अचानक एक भयंकर तूफान सा ले के आया मेरी जिंदगी में आज का वो स्वप्न।जिन हाथों को थामा था मैने,जिन पलकों पर हौले से अपने कुछ अधूरे ख्वाबों को पनाह दी थी।जिन होंठों पर थे हमारे प्रीत के गीत।वो सब जुदा कर बैठा था मेरा वो भयानक स्वप्न।अभी तो अच्छे से एक बार तुम्हारी आँखों को भी नहीं देखा था।जिन आँखों की गहराई में ही कही डूबने की तमन्ना थी,उन्ही आँखों से बहते अस्क देख कर मै तो बिल्कुल लाचार हो गया था।जिन होंठों से तुम्हारे अपने प्रणय गीतों को सुनकर अपने आप में ही खो जाता था और खुद में उन्हें महसूस करने लगता था,उन होंठों से पीड़ा भरे स्वर कैसे सुन पाता मै?
यूँ तो टुट जाता है सपना,पर सच में अगर ऐसे ही रुलायेगा वो तुमको,तो मै खुद ही तोड़ दूँगा उसे।मिटा दूँगा अस्तित्व उसका और अगर वो ना मिटा तो मिटा दूँगा खुद का वजूद बस एक तुम्हारी खुशी के वास्ते।नहीं डरता मै सपनों की झुठी कहानियों से,नहीं भ्रमा सकता कोई ख्वाब मुझे और मेरे प्यार को।जिन लोगों का सदियों से सदियों का साथ हो उनके लिए कई बरस बिताना,तो बस दो पल बिताने जैसा है।तुम्हारे गोद में पड़ा हुआ मै समय के सारे बंधनों से आज दूर चला आया हूँ।एक साया मेरा और दूसरा तुम्हारा बस साथ अपने लाया हूँ।दूर तक नहीं कोई,बस तुम्ही मुझे दिख जाती हो।कभी पास हो और कभी दूर से मुझे बुलाती हो।
यकीन हुआ आज उस ख्वाब पर जो कई बरस पहले देखा था मैने और टुटने पर उसके दिल को एक सुकुन सा मिला था।पर आज जब नहीं हो तुम,ना इस जहाँ में और ना उस जहाँ में।तब उस झूठे ख्वाब पर भरोसा हो आया है।आज सच में छिन लिया है उसने मुझसे,तुमको और मेरे सपने ने डरा दिया है मुझे।अब बस यही सोचता हूँ ऐसे ही किसी सपने में फिर मिल जाती तुम और टुटते हुएँ उस सपने में ही बस कुछ टुकड़ों में ही फिर से जी लेता मै कई सदियाँ तुम्हारे साथ.......।
यथार्थ से बिल्कुल उल्टा और मीलों दूर होती है सपनों की नगरी।इंसान सपने संजोता है,खुश होता है,और उसके टुट जाने पर खुद भी टुट कर बिखर जाता है।इक स्वप्न निंद के आगोश में ही पैठ बनाता है,और दूसरा वो स्वप्न होता है जिसे इंसान अपनी जागती हुई आँखों से देखता है।रात का ख्वाब टुटता है और इंसान ये कह कर दिल को तसल्ली दे लेता है,कि वो तो बस मेरा एक भ्रम था।एक सैर थी मेरे स्थूल शरीर और विचारों की मिथ्याकाश में।पर जब टुटता है,व्यक्ति का दिवा स्वप्न तो वो बिल्कुल अधीर हो जाता है।क्योंकि न चाहते हुए भी उसे सत्य की चादर में समेटने की कोशिश करता है इंसान।
आज फिर टुट गएँ मेरे कई ख्वाब एक साथ और तुमसे जुदाई का डर सताने लगा।आज सच में मुझे बेवजह ही उस रात के सपने पर विश्वास होने लगा।कभी कभी प्यार का अनोखा एहसास होता और कभी जुदाई का भयावह डर सताता।बिल्कुल किसी असहाय प्रेमी की भाँति मेरा प्रेम भी अब समाज की कुंठित मान्यताओं की बलि चढ़ने वाला था।पर चाह कर भी तुमसे एक पल भी जुदा होना मेरे लिएँ गँवारा न था।तुम्हारा प्रीत भले आज कच्चे धागों में बदल गया हो,पर मेरे प्रीत की डोर तो अब भी बिल्कुल वैसी ही है,जेसी हुआ करती थी पहले।
बस गिने चुने दिन ही गुजार पाया था मै संग तुम्हारे और अचानक एक भयंकर तूफान सा ले के आया मेरी जिंदगी में आज का वो स्वप्न।जिन हाथों को थामा था मैने,जिन पलकों पर हौले से अपने कुछ अधूरे ख्वाबों को पनाह दी थी।जिन होंठों पर थे हमारे प्रीत के गीत।वो सब जुदा कर बैठा था मेरा वो भयानक स्वप्न।अभी तो अच्छे से एक बार तुम्हारी आँखों को भी नहीं देखा था।जिन आँखों की गहराई में ही कही डूबने की तमन्ना थी,उन्ही आँखों से बहते अस्क देख कर मै तो बिल्कुल लाचार हो गया था।जिन होंठों से तुम्हारे अपने प्रणय गीतों को सुनकर अपने आप में ही खो जाता था और खुद में उन्हें महसूस करने लगता था,उन होंठों से पीड़ा भरे स्वर कैसे सुन पाता मै?
यूँ तो टुट जाता है सपना,पर सच में अगर ऐसे ही रुलायेगा वो तुमको,तो मै खुद ही तोड़ दूँगा उसे।मिटा दूँगा अस्तित्व उसका और अगर वो ना मिटा तो मिटा दूँगा खुद का वजूद बस एक तुम्हारी खुशी के वास्ते।नहीं डरता मै सपनों की झुठी कहानियों से,नहीं भ्रमा सकता कोई ख्वाब मुझे और मेरे प्यार को।जिन लोगों का सदियों से सदियों का साथ हो उनके लिए कई बरस बिताना,तो बस दो पल बिताने जैसा है।तुम्हारे गोद में पड़ा हुआ मै समय के सारे बंधनों से आज दूर चला आया हूँ।एक साया मेरा और दूसरा तुम्हारा बस साथ अपने लाया हूँ।दूर तक नहीं कोई,बस तुम्ही मुझे दिख जाती हो।कभी पास हो और कभी दूर से मुझे बुलाती हो।
यकीन हुआ आज उस ख्वाब पर जो कई बरस पहले देखा था मैने और टुटने पर उसके दिल को एक सुकुन सा मिला था।पर आज जब नहीं हो तुम,ना इस जहाँ में और ना उस जहाँ में।तब उस झूठे ख्वाब पर भरोसा हो आया है।आज सच में छिन लिया है उसने मुझसे,तुमको और मेरे सपने ने डरा दिया है मुझे।अब बस यही सोचता हूँ ऐसे ही किसी सपने में फिर मिल जाती तुम और टुटते हुएँ उस सपने में ही बस कुछ टुकड़ों में ही फिर से जी लेता मै कई सदियाँ तुम्हारे साथ.......।